शीला दीक्षित के कुशल प्रबंधन और दूरदर्शी सोच का ही नतीजा है कि राजधानी में आज मेट्रो, सीएनजी वाहन, सिग्नेचर ब्रिज, बारापूला एलीवेटेड रोड समेत फ्लाईओवर व अंडरपास का जाल का बिछा है। बिजली का निजीकरण करने के साथ ही अनधिकृत कॉलोनियों में विकास की शुरुआत का पूरा श्रेय शीला दीक्षित को जाता है। शीला अपने पीछे दिल्ली के विकास की अनगिनत निशानियां छोड़ गई हैं। कहा जा सकता है कि मौजूदा दिल्ली की कल्पना शीला दीक्षित के बिना नहीं हो सकती।
लगातार पंद्रह साल तक मुख्यमंत्री का गद्दी संभालने वाली देश की इकलौती महिला रहीं शीला दीक्षित के प्रशासनिक कौशल पर दलीय बंदिशें भी हावी नहीं हो सकीं। पांच साल केंद्र में विरोधी भाजपा की सरकार होने के बावजूद उन्होंने दिल्ली के विकास का पहिया थमने नहीं दिया। यह वही दौर था, जब दिल्ली की सबसे महत्वाकांक्षी योजना दिल्ली मेट्रो का पहिया ट्रैक पर आ रहा था। दिल्ली सरकार के तत्कालीन परिवहन मंत्री अजय माकन बताते हैं कि 24 दिसंबर 2002 को दिल्ली मेट्रो का उद्घाटन होना था। इससे हफ्ते भर पहले केंद्र सरकार ने मदन लाल खुराना को डीएमआरसी बोर्ड का चेयनमैन बना दिया। बतौर परिवहन मंत्री अजय माकन ने मुख्यमंत्री से इसके विरोध की सलाह दी। इस पर शीला दीक्षित ने कहा कि विकास के काम में सियासत नहीं करनी है। अभी दिल्ली की जरूरत मेट्रो है।
एलिवेटेड रोड तैयार करवाने में दिखाया प्रशासनिक कौशल
कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले बारापूरा नाले के ऊपर दिल्ली की पहली एलिवेटर रोड तैयार करवा ले जाना शीला दीक्षित के प्रशासनिक कौशल का ही कमाल था। हालांकि, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम की तरफ की झुग्गी-बस्तियों को लेकर केंद्र की कांग्रेस सरकार इसके लिए पहले तैयार नहीं थी। वहीं, अक्षरधाम से पंजाबी बाग के लिए एलिवेटेड कॉरिडोर की रूपरेखा भी तैयार कर ली थी। इसके अलावा शांति वन से नोएडा तक सिग्नल फ्री कॉरिडोर, गाजीपुर व अप्सरा बॉर्डर, लक्ष्मी नगर चुंगी, धौला कुआं, जनकपुरी-मुकरबा चौक सिग्नल-फ्री कॉरिडोर जैसी विकास की अनगिनत निशानियां शीला दीक्षित अपने पीछे छोड़ गई हैं, जिससे दिल्लीवालों को जाम से निजात मिली और प्रदूषण में कमी लाने में भी मददगार साबित हुए।
केरोसिन फ्री दिल्ली के लिए केंद्र से किए दो-दो हाथ
शीला दीक्षित ने ही दिल्ली को केरोसिन फ्री करने की योजना तैयार की थी। वर्ष 2012 में लांच हुई इस योजना के तहत 3.5 लाख से ज्यादा गरीब परिवारों को एलपीजी कनेक्शन और चूल्हा दिया गया। दिल्ली सरकार में तत्कालीन खाद्य व आपूर्ति मंत्री हारून युसुफ बताते हैं कि जब वह इसका प्रस्ताव लेकर मुख्यमंत्री के पास गए तो वह एक पल में तैयार हो गईं। इसके लिए केंद्र के सहयोग की जरूरत थी। अगले दिन केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी के पास पहुंच गए, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद वह तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से मिलीं। तीनों के बीच इस पर लंबी चर्चा हुई। घंटे भर से ज्यादा की बातचीत के बाद प्रणब मुखर्जी इस पर तैयार हुए। आगे आई बाधाओं के बाद भी उन्होंने 2012 में योजना को लागू करवा लिया।
दिल्ली को बनाया सांस्कृतिक राजधानी
दिल्ली का कायाकल्प करने के साथ शीला दीक्षित ने इसे देश की सांस्कृतिक राजधानी भी बनाया। दिल्ली प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष शर्मिष्ठा मुखर्जी के मुताबिक, मेरा राजनीति में आने के पहले से उनसे परिचय था। बतौर डांसर मेरे ऊपर उनका बहुत स्नेह रहा। उन्होंने दिल्ली में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों को सीरीज के तौर पर शुरू किया। वह हर कार्यक्रम में जातीं और पूरे वक्त लुत्फ उठाती थीं। कालाकारों को वह निजी तौर पर प्रोत्साहित करती थीं। पंद्रह दिन पहले उनसे मुलाकात हुई थी। मिलते ही उन्होंने कहा, अरे शर्मिष्ठा, डांस करना क्यों छोड़ दिया। उनकी सलाह थी संस्कृतिधर्मिता नहीं छोड़नी चाहिए।
दिल्ली की आबोहवा साफ रखने की दिशा में उठाया बड़ा कदम
21वीं सदी के मुहाने पर खड़ी दिल्ली की आबोहवा दमघोंटू हो चली थी। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद दिल्ली में डीजल से चलने वाली डीटीसी बसों को सीएनजी में बदलने का फैसला लिया गया। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्रित्व काल में 2001 में 2000 डीटीसी बसों की पहली खेप सड़कों पर आई। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से डीटीसी के पूरे बेड़े को सीएनजी में बदल दिया गया। लो फ्लोर सीएनजी और वातानुकूलित बसों का संचालन शीला दीक्षित की देन है। प्रकृति प्रेमी दिवंगत मुख्यमंत्री दिल्ली की हरियाली बढ़ाने को लेकर भी सजग थीं।
बिजली वितरण व्यस्था का निजीकरण, 24 घंटे बिजली
शीला दीक्षित सरकार ने बिजली वितरण व्यवस्था का निजीकरण किया। इसके लिए तीन अधिकारियों की कमेटी की नियुक्ति की थी। इस पर सीधी निगरानी शीला दीक्षित की थी। निजीकरण के बाद राजधानी में बिजली की कटौती तकरीबन खत्म हो गई है। वहीं, प्रेषण व वितरण में होने वाला नुकसान भी काबू में आया।