विलुप्ति की कगार से लौटे पर्यावरण प्रहरी, एक दशक के बाद पहली बार बड़ी संख्या में दिखाई दिए गिद्ध

जिले के एक गांव में बड़ी संख्या में गिद्ध देखे गए हैं। वर्ष 2008 के बाद से यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी थी। यह खुशी की बात है कि हाड़ौती क्षेत्र में एक बार फिर गिद्धों की बड़ी संख्या देखी गई है।

राजस्थान के बारां जिले से एक बार फिर पर्यावरण प्रेमियों के लिए खुशखबरी आई है। जिले के एक गांव के खेतों में बड़ी संख्या में गिद्ध देखे गए हैं, जो न केवल राहत की बात है, बल्कि इससे किसानों को भी लाभ होने की संभावना है। गिद्ध, जिन्हें अंग्रेजी में वल्चर कहा जाता है, मांसभक्षी पक्षियों की प्रमुख प्रजातियों में से एक हैं। ये पक्षी गांव में हल्की बारिश के दौरान दिखाई दिए, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

विशेषज्ञों के अनुसार गिद्धों को किसानों का मित्र माना जाता है क्योंकि ये सड़े-गले मांस को खाकर वातावरण को प्रदूषण से बचाते हैं। मृत पशुओं को खाकर ये पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में गिद्धों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें भारतीय सफेद पीठ वाला गिद्ध, हिमालयन गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध और पतली चोंच वाला गिद्ध शामिल हैं। ये पक्षी ऊंचे पेड़ों या चट्टानों पर अपना घोंसला बनाते हैं। सिनेरियस और इजिप्शियन प्रजातियों के गिद्ध पूरे साल देखे जा सकते हैं, जबकि सर्दियों में हिमालय से ग्रिफन वल्चर भी इस क्षेत्र में पहुंचते हैं।

पर्यावरण प्रेमी ए.एच. जेदी ने जानकारी देते हुए बताया कि यह खुशी की बात है कि हाड़ौती क्षेत्र में एक बार फिर गिद्धों की बड़ी संख्या देखी गई है। बारां के कई गांवों में इन पक्षियों को देखा गया है। वर्ष 2008 के बाद से यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी थी। खास बात यह है कि गिद्ध न तो कभी शिकार करते हैं और न ही इंसानों को कोई नुकसान पहुंचाते हैं। ये केवल मरे हुए जानवरों को खाते हैं और लगभग 3 किलोमीटर दूर से ही मृत जानवर की गंध महसूस कर लेते हैं और पूरे झुंड के साथ वहां पहुंच जाते हैं।

गिद्ध साल में केवल एक अंडा देते हैं और इनकी संख्या साल भर में लगभग 10 से 20 तक बढ़ सकती है। इनका संरक्षण न केवल जैव विविधता के लिए आवश्यक है, बल्कि ग्रामीण पर्यावरण संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है।

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