राज्यों में मिली जीत से उत्साहित मोदी सरकार ले सकती है कड़े फैसले
नई दिल्ली। 1977 के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार किसी दल को इतना बड़ा बहुमत मिला है। इस जीत के जहां सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। वहीं जानकारों का कहना है कि ये जीत मोदी सरकार के लिए बेहद जरूरी थी। यूपी में शानदार विजय के बाद पीएम नरेंद्र मोदी आर्थिक सुधारों की गति को और बढ़ा सकते हैं। कुछ बुनियादी कमियों की वजह से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था नें शुमार भारत रफ्तार को नहीं पकड़ पा रहा था, लेकिन अब हालात तेजी से बदलेंगे। 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के फैसले के बाद राजनीतिक हल्कों में केंद्र सरकार का जमकर विरोध हुआ। सड़क से लेकर संसद तक विरोधी दलों ने मोदी सरकार को निशाने पर लिया। बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें, कतारों में 100 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद इस धारणा को बल मिलने लगा था कि आने वाले समय में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मोदी सरकार को खामियाजा उठाना पड़े।लेकिन विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सभी तरह की आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया।
जनता के प्रचंड समर्थन के बाद केंद्र सरकार जीएसटी, बैड बैंक और श्रम सुधारों पर अपने कदम को और बढ़ा सकती है।
जीएसटी
भारत के कर प्रणाली में ढांचागत सुधार के लिए जीएसटी को अहम बताया जा रहा है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक जीएसटी को जुलाई 2017 से लागू कर दिया जाएगा। इस नई व्यवस्था के तहत व्यापारियों के सामने 5, 12, 18 और 28 फीसद की कैटेगरी में चार टैक्स स्लैब होंगे। लग्जरी सामानों पर अलग से लेवी टैक्स लगाया जाएगा। केंद्र सरकार अगले पांच साल तक राज्यों को होने वाले कर राजस्व हानि की भरपाई करेगी। केंद्र सरकार को उम्मीद है कि इसी सत्र में जीएसटी से संबंधित सभी कानूनी प्रावधानों को पारित करा लिया जाएगा। जानकारों का कहना है कि तात्कालिक तौर पर सरकार को राजस्व की प्राप्ति भले ही न हो,आर्थिक रफ्तार की गति में .5 फीसद का इजाफा होगा। जीएसटी लागू हो जाने के बाद कर राजस्व का दायरा बढ़ जाएगा।
बैड बैंक
केंद्र सरकार के सामने एनपीए सबसे बड़ी चुनौती है। बैंको को डिफॉल्टर्स की बढ़ती संख्या परेशान कर रही है। इन हालात से निपटने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय की तरफ से पब्लिक सेक्टर असेट रिहैब्लिटेशन एजेंसी बनाने की बातचीत चल रही है। आरबीआई और वित्त मंत्रालय के तकनीकी अधिकारी भी बैड बैंक के गठन के पक्ष में हैं। हालांकि बताया जा रहा है कि वित्त मंत्री अभी पूरी तरह से इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हैं।
श्रम सुधार
मोदी सरकार के एजेंडे में श्रम सुधार एक प्रमुख विषय रहा है। श्रमिकों के भुगतान और औद्योगिक संस्थानों के बीत रिश्ते को लेकर केंद्र सरकार संवेदनशील रही है। श्रम मंत्री ने 44 औद्योगिक कानूनों को चार कोड में बदलने का प्रस्ताव रखा है। सरकार की मंशा है कि श्रम कानून इस तरह के हों जिससे नियोक्ता और श्रमिकों के बीच एक बेहतर समन्वय स्थापित हो सके। श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा पर किसी तरह का नकारात्मक असर न हो। केंद्र सरकार ने इस संबंध में पहले ही कुछ फैसले किए हैं जिसमें मातृत्व अवकाश को 12 हफ्ते से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया है। हालांकि सरकार द्वारा प्रस्तावित कुछ सुधारों की ट्रेड यूनियन और दूसरे राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अगर राज्यों में आम सहमति नहीं बनती है तो सरकार भाजपा शासित राज्यों में श्रम सुधारों को लागू कराने पर जोर देगी।