राजस्थान की फड़ लोककला में तकनीकी क्रांति; अब चित्र बोलेंगे, कहानियां सुनाई देंगी

कलाकार विजय जोशी मानते हैं कि आज की पीढ़ी तकनीक से घिरी हुई है और ऐसे में यदि हमें अपनी लोककला को जीवित रखना है तो उसे उन्हीं के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा। यही सोचकर उन्होंने यह ऑडियो-इनेबल्ड फड़ तैयार की है।

राजस्थान की प्राचीन और समृद्ध फड़ चित्रकला अब एक नई तकनीकी क्रांति के साथ और भी जीवंत हो उठी है। शाहपुरा की इस परंपरागत लोककला को अंतरराष्ट्रीय फड़ चित्रकार विजय जोशी ने डिजिटल नवाचार के जरिए एक नया आयाम दिया है। अब फड़ केवल देखने भर की चीज नहीं रही, बल्कि वह कहानियों को सुनने का अनुभव भी देती है। यह अनूठा प्रयोग न केवल कला प्रेमियों को रोमांचित कर रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपनी परंपरा से जुड़ने का सशक्त माध्यम बन रहा है।

बोलने लगी फड़: चित्र के साथ हेडफोन में सुनाई देती है कथा
विजय जोशी द्वारा बनाई गई यह फड़ लगभग पांच फीट चौड़ी और 15 फीट लंबी है। इसमें रामायण, पाबूजी और अन्य लोकगाथाओं के दृश्य दर्शाए गए हैं। लेकिन इसकी सबसे खास बात यह है कि इन चित्रों के पास लगाए गए क्यूआर कोड, एनएफसी टैग और डिजिटल लालटेन की मदद से जैसे ही दर्शक किसी चित्र को स्कैन करते हैं, हेडफोन में उससे जुड़ी कहानी सुनाई देती है। यह सजीवता और संवाद का संयोजन फड़ को इंटरऐक्टिव और समावेशी कला में बदल देता है।

भोपाओं की वाणी से सरल हिंदी तक की यात्रा
पारंपरिक रूप से फड़ चित्रों की कथा भोपाओं की वाणी और लोकशैली में प्रस्तुत की जाती थी, जिसे आज की पीढ़ी आसानी से समझ नहीं पाती। इसी बात को ध्यान में रखते हुए जोशी ने सभी कहानियों को सरल हिंदी भाषा में रिकॉर्ड किया है, ताकि युवा, बच्चे और यहां तक कि विदेशी पर्यटक भी इसकी गहराई तक पहुंच सकें। यह तकनीकी पहल लोकसंस्कृति और जनसंचार के बीच की दूरी को पाटने का एक सुंदर प्रयास है।

तकनीक और परंपरा का सुंदर संगम
यह नवाचार सिर्फ एक कला प्रस्तुति नहीं, बल्कि शैक्षणिक, पर्यटन और संग्रहालयों के लिए भी बेहद उपयोगी और आकर्षक उपकरण बन सकता है। सबसे खास बात यह है कि यह तकनीक दृष्टिबाधित लोगों के लिए भी उपयोगी है। वे चित्रों को देख नहीं सकते, लेकिन ध्वनि के माध्यम से उन कहानियों को महसूस जरूर कर सकते हैं। यह एक समावेशी दृष्टिकोण है, जो कला को सभी के लिए सुलभ बनाता है।

विजय जोशी: साधना से सिद्धि तक का सफर
फड़ चित्रकला के क्षेत्र में विजय जोशी एक जाना-पहचाना नाम हैं। उन्होंने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती, अमिताभ बच्चन, रामायण, महाभारत जैसे विविध विषयों पर 100 से अधिक फड़ चित्र बना चुके हैं। उनके पिता शांतिलाल जोशी, जो खुद भी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित कलाकार थे, से उन्हें यह कला विरासत में मिली। विजय जोशी ने अमेरिका, फ्रांस, जापान, कोलंबिया, जर्मनी तथा मेक्सिको जैसे देशों में प्रदर्शनियां और कार्यशालाएं आयोजित कर फड़ को वैश्विक पहचान दिलाई है।

मोबाइल युग में लोककला की नई भाषा
विजय जोशी मानते हैं कि आज की पीढ़ी तकनीक से घिरी हुई है और ऐसे में यदि हमें अपनी लोककला को जीवित रखना है तो उसे उन्हीं के माध्यम से प्रस्तुत करना होगा। यही सोचकर उन्होंने यह ऑडियो-इनेबल्ड फड़ तैयार की है, जो न केवल देखने में सुंदर है, बल्कि सुनने में भी समृद्ध अनुभव देती है। यह तकनीक विशेष रूप से पर्यटकों और छात्रों के बीच लोकप्रिय हो रही है, जो इतिहास को केवल पढ़ने नहीं, बल्कि अनुभव करने की चाहत रखते हैं।

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