युद्ध हुआ तो दिवालिया हो जाएगा पाकिस्तान, जानिए कैसी है पड़ोसी देश की आर्थिक हालत

पाकिस्तान एक तरफ भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा है, तो दूसरी तरफ उसकी आर्थिक हालत दशकों से लगातार बिगड़ती जा रही है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किस हाल में है, इसे वहां के नागरिकों की ही सोशल मीडिया टिप्पणियों से समझा जा सकता है। पहलगाम घटना (Pahalgam Attack) के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा तो एक पाकिस्तानी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हमने आधी दुनिया का कर्ज देना है, इसलिए कोई भी इंडिया को हम पर हमला नहीं करने देगा।” दूसरे की टिप्पणी थी, “जंग करनी हो तो 9 बजे से पहले कर लेना, 9:15 पर गैस चली जाती है हमारी।”
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत से टकराव होने पर पाकिस्तान की जर्जर अर्थव्यवस्था पूरी तरह बिखर जाएगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त वर्ष 2024-25 (जुलाई-जून) में पाकिस्तान की जीडीपी ग्रोथ (Pakistan GDP Growth) का अनुमान 3% से घटाकर 2.6% कर दिया है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार राजकोषीय घाटा 6.7% रहने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष में GDP का 7.4% था। विदेशी मुद्रा भंडार (Pakistan Forex Reserves) 3 अरब डॉलर से सुधरकर 15.4 अरब डॉलर तक पहुंचा है, लेकिन यह विदेशी कर्ज के बूते हुआ है। पाकिस्तान में रेपो रेट अभी 12% है, जो जून 2024 में रिकॉर्ड 22% पर था। एक डॉलर की कीमत 280 पाकिस्तानी रुपये के बराबर है।
मई 2023 में महंगाई दर (Pakistan Inflation Rate) रिकॉर्ड 38% पर पहुंचने के बाद मार्च 2025 में तीन दशक के सबसे निचले स्तर, 0.7% पर आई है लेकिन भारत के साथ तनाव बढ़ने के बाद अप्रैल में वहां चीजों के दाम जिस तरह बढ़े हैं उससे महंगाई एक बार फिर आसमान छू सकती है। खबरों के अनुसार वहां चावल की कीमत 350 रुपये तक पहुंच गई है। लोगों की माली हालत का आलम यह है कि 40% से अधिक जनता गरीबी रेखा (Pakistan Poverty Rate) से नीचे है। अनेक इलाकों में 18-18 घंटे तक बिजली नहीं आने से उद्योग बंद हैं। बेरोजगारी दर (Unemployment Rate Pakistan) 8% पहुंच चुकी है। बिगड़ते आंतरिक हालात के कारण विदेशी निवेश भी नहीं के बराबर हो रहा है।
स्थिति में सुधार का दावा कितना सच
हाल के महीनों में महंगाई में गिरावट को पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (PBS) आर्थिक सुधार के तौर पर बता रहा है। लेकिन नई दिल्ली स्थित थिंकटैंक इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में रिसर्च फेलो डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्य सवाल करते हैं, “यह बेहतरी कहां है- क्या निर्यात बढ़ा है, क्या जीडीपी में ग्रोथ हुई है, क्या बेरोजगारी कम हुई है? इनमें से कुछ भी नहीं हुआ है। फिस्कल पॉलिसी भी नहीं बदली है। सऊदी अरब और कतर ने जो निवेश की बात कही थी, वह अभी एमओयू स्तर पर ही है। पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) के निजीकरण की बात थी, वह भी नहीं हुआ है।”
वे बताते हैं, “महंगाई जरूर कम हुई है, लेकिन वह भी खाद्य महंगाई तक सीमित है। सिर्फ महंगाई के आंकड़ों के आधार पर कैसे कह सकते हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है? दरअसल, अक्टूबर से मार्च के दौरान पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में कृषि उत्पादन बेहतर रहा है। इसी का असर पाकिस्तान में खाद्य महंगाई (Pakistan Food Inflation) पर दिख रहा है। बाकी आर्थिक परिस्थितियों में कोई सुधार नहीं आया है।” उसका विदेशी मुद्रा भंडार जो बढ़ा है, उसमें विदेशी कर्ज शामिल है। आईएमएफ ने जो 6 अरब डॉलर देने का वादा किया था, उसमें अभी 2.75 अरब डॉलर देना बाकी है।डॉ. भट्टाचार्य के शब्दों में, “पाकिस्तान की इकोनॉमी 75 वर्ष पहले जिस नाजुक मोड़ पर थी, आज भी उसी मोड़ पर है। बेरोजगारी ज्यादा है और रोजगार के साधन नहीं हैं। ग्रोथ के कुछ सामान्य इंडिकेटर होते हैं। जैसे, निर्यात बढ़ना, करेंसी की वैल्यू बढ़ना, रोजगार बढ़ना- यह सब नहीं हो रहा है।”
गरीबी दर 42% से अधिक रहने की संभावना
वर्ल्ड बैंक का कहना है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था राजकोषीय और चालू खाता घाटे की लगातार ऊंची दर, संरक्षणवादी व्यापार नीतियां, कृषि क्षेत्र की उत्पादकता, व्यापार का मुश्किल वातावरण, ऊर्जा क्षेत्र पर भारी-भरकम कर्ज जैसी समस्याओं से जूझ रही है…। वर्ष 2023-24 में 26 लाख अतिरिक्त पाकिस्तानी गरीबी रेखा से नीचे चले गए। 2024-25 में और 18 लाख लोग गरीबी में चले जाएंगे तथा गरीबी दर (Pakistan Poverty Rate) 42.3% रहने की संभावना है।इस आर्थिक कमजोरी का असर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर हो रहा है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, “स्कूल जाने योग्य उम्र के एक-तिहाई से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर हैं, स्कूल जाने वाले बच्चों में भी (2024 में) लगभग दो-तिहाई किसी भी तरह की लर्निंग से वंचित हैं, और 40% बच्चे स्टंटिंग की समस्या से ग्रस्त हैं।”
दक्षिण एशिया की सबसे कमजोर इकोनॉमी है पाकिस्तान
वर्ल्ड बैंक ने करीब दो साल पहले पाकिस्तान को दक्षिण एशिया की सबसे कमजोर इकोनॉमी बताया था। जनवरी 2023 में उसका विदेशी मुद्रा भंडार 3.1 अरब डॉलर के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था, जिससे सिर्फ दो हफ्ते का आयात किया जा सकता था। तुलनात्मक रूप से भारत का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार करीब 686 अरब डॉलर का है, जो करीब एक साल के आयात के लिए पर्याप्त है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक दुनिया का पांचवां सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद पाकिस्तान अर्थव्यवस्था के आकार (Pakistan economy ranking) में 41वें स्थान पर है। भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश है तो इकोनॉमी के आकार में पांचवें स्थान पर है, और जल्दी ही यह तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
वित्त वर्ष 2021-22 में पाकिस्तान का टैक्स-जीडीपी अनुपात 9.22% था जो पिछले वित्त वर्ष (2023-24) में घटकर 8.77% पर आ गया। इस लिहाज से पाकिस्तान दुनिया के सबसे कमजोर देशों में शुमार होता है। वर्ष 2021 में 100 में से सिर्फ एक पाकिस्तानी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करता था।
कृषि और रिटेल सेक्टर अर्थव्यवस्था में आधा योगदान करते हैं लेकिन इनकम टैक्स में इनका योगदान बहुत कम है। FAO के मुताबिक पाकिस्तान की इकोनॉमी में कृषि 23% है। देश की 36.4% लेबर फोर्स कृषि में ही है। निर्यात में 70% योगदान कृषि का है।
मदद और अनुदानों पर निर्भर अर्थव्यवस्था
सही मायने में कहा जाए तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक चीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे मित्र देशों और IMF जैसी संस्थाओं से मिलने वाली मदद (IMF Loan Pakistan) और अनुदानों पर निर्भर है। कर आधार और आय के स्रोत बढ़ाने के लिए सरकारों ने गंभीर प्रयास नहीं किए। दूसरी तरफ, बिजली और पेट्रोल-डीजल पर काफी सब्सिडी दी जाती रही। डॉ. भट्टाचार्य के अनुसार, “अभी तक की स्थिति के हिसाब से कहें तो वह जून तक डिफॉल्ट नहीं करेगा, लेकिन जुलाई में क्या होगा यह कोई नहीं जानता।”
पाकिस्तान को पूर्ण आर्थिक पतन से बचाने के लिए आईएमएफ का बेलआउट पैकेज जरूरी है। आईएमएफ सितंबर 2024 में पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर का कर्ज देने पर राजी हुआ था। IMF की शर्तों के तहत (Pakistan IMF Negotiations) अमेरिकी डॉलर और पाकिस्तानी रुपये की विनिमय दर पर अनौपचारिक नियंत्रण हटा दिया गया। इसके बाद पाक करेंसी में काफी गिरावट आई। अभी एक डॉलर 280 पाकिस्तानी रुपये का है। सितंबर 2023 में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी करेंसी की कीमत 306 रुपये तक गिर गई थी।
पिछले पांच दशकों में पाकिस्तान का आर्थिक प्रदर्शन (Pakistan Economic Crisis) खराब रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का पर्याप्त विस्तार नहीं होने के कारण लोगों के जीवन स्तर में सुधार भी दक्षिण एशिया के बाकी देशों की तुलना में धीमा है। कमजोर आर्थिक नीतियों के कारण लगातार असंतुलन बना रहा। हाल के संकट की शुरुआत COVID-19 महामारी के दौरान मानी जाती है। उसके बाद सार्वजनिक कर्ज (Pakistan Debt Crisis) पर ब्याज का खर्च इतना बढ़ गया कि सरकार की लगभग दो-तिहाई आमदनी ब्याज लौटाने में जाने लगी।
विदेशी मुद्रा भंडार लगातार गिरने लगा और विदेशी कर्ज लौटाने में डिफॉल्ट का खतरा मंडराने लगा, क्योंकि कर्ज लौटाने की किस्त विदेशी मुद्रा भंडार से कहीं अधिक थी। जून 2023 तक पाकिस्तान के पास चार अरब डॉलर से भी कम विदेशी मुद्रा भंडार रह गया था, जो मुश्किल से दो हफ्तों के आयात के लिए पर्याप्त था। संकट को नियंत्रित करने के लिए कठोर आयात प्रतिबंध लगाए गए और ब्याज दरें काफी बढ़ा दी गईं। लेकिन इन उपायों से आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह बाधित हुईं। दो वर्षों में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये की वैल्यू आधी रह गई और महंगाई दर 38% तक पहुंच गई, जिससे आम पाकिस्तानी नागरिकों के जीवन स्तर पर गहरा असर पड़ा।
निवेश की दर क्षेत्रीय देशों की तुलना में नीचे
पर्याप्त निवेश न होने के कारण पाकिस्तान का न तो आर्थिक विकास हो पा रहा है, न ही मानव विकास सूचकांकों में वह ऊपर उठ रहा है। क्षेत्रीय देशों से तुलना करें तो पाकिस्तान की निवेश दर (जीडीपी के अनुपात में) 1980 के दशक से लगातार श्रीलंका की तुलना में कम रही है और 1990 के मध्य से यह बांग्लादेश की तुलना में भी काफी कम हो गई है। जीडीपी की तुलना में भारत का निवेश 1970 के दशक में 20% और 1990 के दशक में 25% को पार कर गया था। वर्ष 2000 के दशक में यह अनुपात 35% तक पहुंच गया था। लेकिन पाकिस्तान में निवेश कभी 20% तक नहीं पहुंच सका। पिछले करीब डेढ़ दशक से यह लगातार 15% से नीचे बना हुआ है।
पाकिस्तान की जनसंख्या वृद्धि भी अन्य क्षेत्रीय देशों की तुलना में तेज रही है। पिछले पचास वर्षों में पाकिस्तान की जनसंख्या चार गुना बढ़ चुकी है, जबकि श्रीलंका की जनसंख्या दोगुनी से कम और बांग्लादेश तथा भारत की जनसंख्या लगभग ढाई गुना बढ़ी है। इसका नतीजा यह हुआ कि कामकाजी लोगों की संख्या कम थी जबकि आश्रितों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
कर्ज लौटाने के पैसे नहीं, फिर भी रक्षा पर बड़ा खर्च
बता दें, अर्थव्यवस्था की इतनी खराब हालात होने के बावजूद पाकिस्तान अपने कुल बजट का बड़ा हिस्सा डिफेंस (Pakistan defence budget) पर खर्च करता है। वर्ष 2024-25 के बजट में पाकिस्तान ने डिफेंस के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जो एक साल पहले की तुलना में 17.6% अधिक था। डिफेंस बजट कुल बजट का लगभग 11% था।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की मार्च 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-24 के दौरान भारत दुनिया का दूसरा और पाकिस्तान पांचवां सबसे बड़ा हथियार खरीदने वाला देश रहा। दुनिया में हथियारों की कुल खरीद में भारत ने 8.3% और पाकिस्तान ने 4.6% खरीदा। 2015-19 की तुलना में भारत की खरीद 9.3% कम हुई, लेकिन पाकिस्तान की 61% बढ़ गई। पाकिस्तान ने अपने 81% हथियार चीन से खरीदे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि युद्ध हुआ तो पाकिस्तान का डिफेंस खर्च और बढ़ जाएगा। यह रकम अन्य मदों से काट कर लानी होगी। इससे पाकिस्तान के लिए दूसरे देशों का कर्ज चुकाने का भी पैसा नहीं बचेगा और वह दिवालिया हो जाएगा।