जो किसी ने नहीं किया, वो मोदी सरकार के बजट में हुआ: अर्थशास्त्री

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी का पहला बजट शुक्रवार को संसद में पेश किया. सरकार ने पहली बार सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बीएसई की तर्ज पर सोशल स्टॉक एक्सचेंज की बात की है. सामाजिक सरोकारों से उद्यमों को जोड़ने के लिहाज से इसे अर्थशास्त्री बेहद सकारात्मक कदम मानते हैं. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, यूं तो इस बजट में बहुत सी चीजें गुम हैं, कई योजनाओं की पूरी रूपरेखा अभी साफ नहीं की गई है. मगर फिर भी इसमें एक विजन दिखता है, जो आने वाले वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव का संकेत देता है.

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संकट से जूझ रहे एविएशन और बाकी सेक्टर्स में एफडीआई का रास्ता खोले जाने से उन्हें संकट से उबारने में मदद मिलेगी. सरकार की ओर से 100 से अधिक श्रम कानूनों की जगह सिर्फ चार तरह के कानून लाने की व्यवस्था को एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि श्रम कानूनों में सुधार की पहल से पता चलता है मोदी सरकार ने उस कमजोर नस को पकड़ लिया है, जिसके चलते चीन से कई समानताएं होने के बावजूद उसके मुकाबले भारत मैन्यूफैक्चरिंग हब नहीं बन पाया. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, पिछली कई सरकारें लेबर कानूनों में सुधार का साहस नहीं जुटा पाईं, मगर मोदी सरकार ने इसे बदलने की पहल की है. यह शुभ संकेत है.

 

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