मैं आपका मुख्यमंत्री बोल रहा हूं


मैं आपका मुख्यमंत्री बोल रहा हूं। यह इसलिए बोला कि कहीं आप भूल न जाएं कि बोल कौन रहा है। एक बात सभी मानते हैं कि बंदा, बोलता धड़ल्ले से है, फिर भले किसी के पल्ले कुछ भी न पड़े। वैसे, मैं भी कहां चाहता हूं कि मेरी बात आपके पल्ले पड़े, क्योंकि अफसरों का लिखा हुआ भाषण मुझे ही कहां समझ आता है?
कई लोग कह चुके हैं कि रेडियो पर मेरी आवाज सुनकर ऐसा लगता है, जैसे कोई प्राइम मिनिस्टर बोल रहा हो। बन नहीं पाया, तो क्या, बोल के तो बन ही सकता हूं न! पिछले हफ्ते फसलों पर कीड़े लगने की शिकायतें किसान कर रहे थे। खेती तो मेरे बाप ने भी कभी नहीं की, तो मैं क्या जानूं कि फसलों में कीड़े कैसे लगते हैं। बस, दो-चार कृषि अधिकारियों को बुलाया और उनसे लिखवा लिया। किसानों को बता भी दिया रेडियो पर बोलकर कि क्या करने से फसलें बच जाएंगी। किसान अगर रेडियो ही नहीं सुनते हैं, तो कोई, क्या कर सकता है। मुख्यमंत्री हर एक के खेत में तो जाने से रहा। वैसे मैं भी क्या कर लूंगा, जो करना है, कीड़ों को ही करना है।
हां, तो मैं आपका मुख्यमंत्री बोल रहा हूं। इस बार स्वाइन-फ्लू का मामला है। वैसे तो इतनी बार इस प्रदेश में हो चुका है कि लोग खुद ही जान गए हैं कि इस बीमारी से कैसे और कब मरना है, लेकिन मुख्यमंत्री होने के नाते मेरी भी तो जिम्मेदारी है। मैं दवा भले न दे सकूं, यह तो बता ही सकता हूं कि नजदीक के अस्पताल जाएं और इस बीमारी की जांच करवाएं। मेरी जब भी जरूरत हो, बोल दीजिएगा, रेडियो पर बोलने आ जाऊंगा (टीवी पर इसलिए नहीं बोलता कि लोग समझ जाते हैं कि लिखा हुआ पढ़ रहा हूं।) जय हिंद!