मुस्लिम बहुल 96 सीटों पर भी कम चुने जाते हैं मुस्लिम सांसद : रिपोर्ट

इंस्टिट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज की ताजा रिपोर्ट भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को उजागर करने वाली है। इसमें सबसे चिंताजनक स्थिति मुसलमानों की है। देश में 20 फीसदी आबादी के बाद भी मुसलमानों का संसद में प्रतिनिधित्व कभी तय मानकों के अनुरूप नहीं रहा। देश की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाली 96 सीटों पर भी मुसलमानों को कभी 9 फीसदी से अधिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला। मुस्लिम बहुल 96 सीटों पर भी कम चुने जाते हैं मुस्लिम सांसद : रिपोर्ट

संसद में प्रतिनिधित्व की बात करें तो सर्वाधिक प्रतिनिधित्व 1980 में रहा। इस कार्यकाल में लोकसभा में 49 उम्मीदवार अल्पसंख्यक वर्ग से थे। बात करें सबसे कम प्रतिनिधित्व की तो 16वीं लोकसभा में सबसे कम 23 सांसद अल्पसंख्यक वर्ग से थे। एससी एसटी की तरह अल्पसंख्यक वर्ग के लिए संसद में किसी भी तरह के आरक्षण करने का प्रावधान नहीं है।  दूसरे 2008 में परिसीमन आयोग ने विधायिका में मुस्लिम और एससी, एसटी आबादी की हिस्सेदारी को ध्यान में रखकर विधानसभाओं का सीमांकन किया है। इसमें 2001 की जनगणना को आधार मानते हुए 2026 तक के लिए परिसीमन कर आरक्षित सीटों का फैसला कर दिया है। इसलिए इस आधार पर अब बदलाव की गुंजाइश भी नहीं है।

संसद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर शोध में सामने आया है कि मुसलमानों को प्रतिनिधत्व न मिलने की बड़ी वजह परिसीमन विसंगतियां हैं। जिसके चलते इन सीटों पर ज्यादातर राजनीतिक दल मुसलमानों के बजाए अनुसूचित जाति और जनजातियों के उम्मीदवारों पर भरोसा कर रहे हैं। इसके अलावा इन 96 सीटों में से 9 सीटें अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित होने के कारण इन सीटों पर मुसलमानों का प्रतिनिधित्व खत्म सा माना जाता है। यह सीटे हैं, उत्तर प्रदेश की नगीना, बाराबंकी और बहराइच, असम की करीमगंज तथा पश्चिम बंगाल की बोलपुर, बर्धमान पूर्व, मथुरापुर, जायनगर, कूच बिहार हैं। 

मुसलमानों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिलने की दूसरी वजह है परिसीमन की अव्यवस्थाएं। इसमें अनुसूचित जनजातियों के लिए सीट आरक्षित करने का फॉर्मूला तो है लेकिन अनुसूचित जातियों के लिए कोई तरीका निर्धारित नहीं है। इन सीटों पर परिसीमन पूरी तरह से आयोग के विवेक पर निर्धारित होता है। इसके चलते भी यह असमानता अधिक हो गई। इनकी बानगी हम इस तरह से देख सकते हैं। मुस्लिम बहुलता वाली असम की सिलचर, यूपी की धरोरा, अमेठी, रायबरेली उन्नाव और सीतापुर सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी के बाद भी यह अनारक्षित हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में 96 मुस्लिम बहुल सीट पर सभी राजनीतिक दल निगाहें गड़ाए हैं। इसके लिए मतविभाजन से लेकर वोटों के ध्रुवीकरण की कवायद भी जोरों पर है।  
      
इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 20 फीसदी से अधिक आबादी वाली सीटों में सर्वाधिक यूपी में 28, पश्चिम बंगाल में 20, बिहार, असम और केरल सरीखे राज्यो में 9, जम्मू कश्मीर में 6 और महाराष्ट्र में 5 लोकसभा क्षेत्र हैं। शोध में सुझाव भी दिए गए हैं। जिसकी मदद से अल्पसंख्यक वर्ग अपना प्रतिनिधित्व विधायिका के स्तर पर भी सुरक्षित कर सकता है।

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