बड़ा ख़ुलासा : महाराष्ट्र के किसान आंदोलन और सिंचाई घोटाले के ऐसे जुड़े हैं तार !

सर्वविदित है कि महाराष्ट्र में फडनवीश सरकार के आने से पहले पंन्द्रह वर्षों तक कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी सत्ता में थी , इसी दौरान शरद पवार और उसके भतीजे अजित पवार के राज में एक बहुत ही बड़ा घोटाला हुआ था जो कि सिंचाई विभाग से संबंधित था और जिसके दाग़ अजित पवार के दामन पर भी लगे थे हालाँकि इस घोटाले के मामले की अभी जाँच हो रही है ।
मीडिया में आयी ख़बरों के अनुसार पवार चाचा भतीजे ने कांग्रेस के शासन में करोड़ों रुपये का घोटाला करके किसानों को मरने के लिए मजबूर किया था । महाराष्ट्र में अपने शासन काल के दौरान एनसीपी और कांग्रेस के नेता किसानों के हिस्से का और सिंचाई परियोजनाओं का पैसा खाते रहे लेकिन अब बड़ी बेशर्मी से महाराष्ट्र के किसान आन्दोलन को समर्थन देने पहुँच गए है बल्कि यूँ कहें की आग में घी डालने का काम कर रहे हैं और किसानों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिशें की जा रही हैं ।
शिवपाल धरने से हटे, थाने पर पथराव, दो सिपाही…
जानिए किसान आन्दोलन के पीछे का सच :
मोदी सरकार द्वारा की गई नोट बंदी के दौरान सहकारी बैकों को किसानों के हित को ध्यान में रखकर कुछ छुट दी गई थी. जिसका फायदा पवार चाचा भतीजे और कई बड़े कांग्रेस नेताओं ने अपने काले धन को खपाने में उठाया था . सहकारी बैकों में कांग्रेस का वर्चस्व का तो सभी को पता ही है जिस कारण रातों रात गरीब और भोले-भाले किसानों को कर्ज दिए गए .ताकि बाद में कर्ज माफ करवा कर नकद वापिस ले सके या फिर उनकी जमीन हड़प सके. लेकिन जब फडनवीश सरकार ने कर्ज माफ़ी से इंकार कर दिया और किसानों के हित में “जलयुक्त शिवार ” और “मनरेगा योजना” शुरू कर दी तो इनकी योजना की सफलता से घबरा कर पवार चाचा भतीजे और कांग्रेस नेताओं ने किसान आन्दोलन का सहारा लेकर अपनी राजनीती शुरु कर दी . इस तरह किसान आन्दोलन का सारा कुचक्र शुरु किया गया .इसके बाद फडनवीश सरकार भी दबाव में आ गयी और कर्ज माफ़ कर दिया. चूँकि अब कर्ज तो देना नहीं है, इस तरह से पूरा न सही पर 80% काला धन उनकी जेब में पहुचं जायेगा.
जानिए कैसे हुआ था ये घोटाला
महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र जहाँ बारिश बहुत कम होती है,जहाँ सुखा रहता है और बहुत गरीबी है. की इन सिंचाई परियोजनाओं की लागत 6672 करोड़ आंकी गई .काम में जानबूझकर देरी की गई और यह कीमत बढाकर 26722 करोड़ कर डी गई. स्वाभाविक था की इसमें ठेकेदार ,अफसर और नेता सब शामिल थे. मूल कीमत को करीब 300 गुना बढ़ा दिया गया.
इसे केवल तीन महीनों में पारित कर दिया गया .जून,जुलाई,अगस्त 2009को बिना किसी आपत्ति और बिना किसी जाँच के मंजूरी भी दे दी गई । सबसे हैरानी की बात या है की इन योजनाओं को मजूरी 15 अगस्त को डी गई .क्या ये लोग इतने कर्मठ थे कि 15 अगस्त को भी कामकरते थे .
24 जून एक ऐसा एतिहासिक दिन है जिस दिन दस परियोजनाओं की जाँच भी की गई और मंजूरी भी दे डी गई.मजूरी मिलने के बाद VIDC ने निविदा भी जरी कर डी.जब कर्मचारी इतनी जल्दी में थे तो पवार जी ने भी एक ही सप्ताह में सभी परियोजनाओं को मंजुरी दे दी ।