दिल्लीः जहरीली हवा से ट्रैफिक पुलिसकर्मी बन रहे सांस के रोगी , करना पड़ता है प्रदूषण का सामना

दिल्ली की जहरीली हवा जहां अब तक सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए लाखों-करोड़ों जिंदगियों पर भारी पड़ने लगी है, वहीं इसके कारण दिल्ली के ट्रैफिक पुलिसकर्मी भी गंभीर श्वसन रोगों की गिरफ्त में आ रहे हैं। 

 

आमतौर पर देखने को मिल रहा है कि सेवानिवृत्त होने के दो से तीन वर्ष के भीतर इन्हें घुटना प्रत्यारोपण कराना पड़ रहा है। ऐसे कई केस अब तक सामने आ चुके हैं।

इससे पहले एम्स और सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर भी कई बार प्रदूषण की सीधी चपेट में आ रहे ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को लेकर गंभीरता जता चुके हैं। वहीं चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, वायु प्रदूषण की वजह से देशभर में श्वसन संबंधी रोगियों की संख्या सर्वाधिक है। 

साल 2016 में फाउंडेशन ने एक अध्ययन के जरिये दावा किया कि देश में सबसे ज्यादा मरीज सांस लेने से जुड़ी परेशानी लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। यहां दुर्भाग्य यह भी है कि मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा होने के बावजूद देश में पल्मोनरी विशेषज्ञों की भारी कमी है।

बीएलके अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. संदीप नायर ने एक स्वास्थ्य शिविर में 200 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की जांच की थी। इस दौरान स्पाइरोमीटर के जरिये उन्होंने ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के फेफड़ों की गति का पता भी लगाया।

8 से 10 घंटे प्रदूषण में सिपाही

जांच के बाद डॉ. नायर ने गंभीरता व्यक्त करते हुए बताया कि ट्रैफिक पुलिसकर्मी तेजी से श्वसन रोगों की चपेट में आ रहे हैं। शिविर के दौरान करीब 20 फीसदी पुलिसकर्मियों में रेस्पिरेटरी डिसऑर्डर की पहचान हुई है। इतना ही नहीं दिनभर प्रदूषण के बीच 8 से 10 घंटे खड़े रहने वाले ज्यादातर पुलिसकर्मियों के पास सामान्य सर्जिकल मास्क होते हैं, जिनसे प्रदूषित कण सांस के जरिये शरीर में जाने से नहीं रुक पाते।

हर पुलिसकर्मी की इस तरह हुई जांच

डॉ. नायर ने बताया कि ब्लड काउंट, कद और वजन का मापन, बीएमडी, ब्लड शुगर, रक्तचाप, ईसीजी और पीक फ्लो मेटरी जैसे नियमित परीक्षण किए गए। पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट से पता चला कि 200 में से लगभग 35-40 सांस लेने की समस्या से पीड़ित थे। लंग कंजेशन, अस्थमा और गले में जलन सामान्य समस्याएं थीं।

सांस के अलावा घुटने व कोलेस्ट्रॉल की भी शिकायत

डॉक्टरों के अनुसार, शिविर के दौरान ट्रैफिक पुलिसकर्मियों में सांस के अलावा घुटने और कोलेस्ट्रॉल संबंधी परेशानियां भी देखने को मिलीं। डॉक्टरों के अनुसार, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप, हाई ब्लड शुगर लेवल के शिकार मिले। उनमें से कुछ को लंबे समय तक काम करने के कारण जोड़ों में दर्द का सामना करना पड़ रहा था और हड्डियों का घनत्व कम था। आरएमएल के हड्डी रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अजय शुक्ला का कहना है कि उनके पास अब तक कई पुलिस के जवान आ चुके हैं, जिन्हें सेवानिवृत्त होने के कुछ ही समय बाद घुटना प्रत्यारोपण की नौबत आ गई। हालांकि अभी तक पुलिस जवानों की इस परेशानी पर कोई शोध नहीं हुआ है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार ज्यादा देर तक खड़े रहकर ड्यूटी देना भी इसकी एक वजह हो सकता है। 

जवानों को मिलना चाहिए बेहतर मास्क

डॉ. संदीप नायर का कहना है कि हर पुलिसकर्मी को बेहतर गुणवत्ता रखने वाला मास्क दिया जाना चाहिए। वे स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और वाहनों के बढ़ते जहरीले उत्सर्जन को देखते हुए अच्छी गुणवत्ता वाले प्रदूषण रोधी मास्क पहनें।

क्या कहते हैं आंकड़े

लासेंट मेडिकल जर्नल पत्रिका में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से लेकर 2016 के बीच गैर संक्रमणकारी रोगों की स्थिति और भी ज्यादा भयावह हुई है। हार्ट अटैक के बाद सीओपीडी दूसरी ऐसी बीमारी है, जिससे देश में सबसे ज्यादा मरीजों की मौत हो रही है। सीओपीडी और अस्थमा सीधे तौर पर प्रदूषण से जुड़े होने के कारण इनके मरीज लाखों से अब करोड़ों में पहुंच रहे हैं।

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