अभी अभी: पीएम मोदी की इस बड़ी गलती से हिल गया पूरा देश, पार्टी में…
नोटबंदी के जरिए भले ही पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका हो लेकिन इसमें रह गई एक कमी के चलते सरकार सुप्रीम कोर्ट में घिर गई है। केंद्र सरकार से उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि पुराने नोट जमा करने की सीमा के बाद कानूनी विकल्प प्रदान क्यों नहीं किया।
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सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने मंगलवार को केंद्र सरकार से पूछा कि उसने लोगों को नोटबंदी के बाद अमान्य हुए अपने पुराने नोट 31 दिसंबर के बाद जमा जो अपने पुराने नोट जमा नहीं करा पाए, उनके लिए ऐसी व्यवस्था का प्रावधान क्यों नहीं किया गया।
अदालत ने सरकार को इस संबंध में शपथपत्र दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। अदालत ने सवाल किया, ‘आपने (कानून के तहत) एक और खिड़की खोलने का विकल्प क्यों नहीं दिया। आपके पास 20 कारण हो सकते हैं।’ बेंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को दिए गए भाषण का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो लोग 30 दिसंबर पर अपने पुराने नोट वाजिब कारणों के चलते जमा नहीं करा पाएंगे, उन्हें 31 मार्च तक मौका दिया जाएगा। अदालत ने यह सवाल तब पूछा जब अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि संसद ने सरकार को विकल्प दिया था, लेकिन सरकार ने उसे नहीं अपनाने का फैसला किया, क्योंकि उसे ऐसा करना उचित नहीं लगा। उन्होंने कहा, ‘मैं (सरकार) नहीं समझता कि इस विकल्प का इस्तेमाल करना उचित रहेगा।’
अदालत ने केंद्र सरकार को शपथपत्र दायर करने के लिए कहा। अदालत ने अटॉर्नी जनरल से कहा, ‘भले ही संसद ने आपको कुछ श्रेणियों के लोगों के संबंध में खिड़की (विकल्प) का प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया।’ अदालत ने अटार्नी जनरल से यह पूछा कि सरकार ने पुराने नोट जमा कराने की खिड़कियों को मनमाने ढंग से क्यों बंद किया। इस पर, अटॉर्नी जनरल रोहतगी ने कहा कि कानून पारित करने के लिए लोगों को किसी प्रकार का नोटिस देने की कोई जरूरत नहीं है।