पितृपक्ष: अतृप्त आत्माएं ही हमारी उन्नति में होती है बाधक
period of Ashwin’s new moon is known as Mahalayana
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक की अवधि को महालय या पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि पितृलोक को गए पूर्वज सूक्ष्म शरीर के साथ पृथ्वी पर आते हैं और परिवार के सदस्यों के बीच रहते हैं। जिन परिवारों में पितरों की पूजा नहीं होती, और परिवार को पितृदोष लग जाता है।
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अतृप्त आत्माएं ही हमारी उन्नति में बाधक होती है। तर्पण, पिंडदान और धूप देने से यह आत्माएं तृप्त होती हैं। उन्हें शांति देने तथा उनका आशीर्वाद पाने के लिए हमें जाने अनजाने जिनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ, जिनका विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं हुआ, जिन्हें कोई जल नहीं देता है ऐसी असंख्य आत्माएं सूक्ष्म जगत में भटकती रहती हैं।
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यह अतृप्त आत्माएं ही हमारी उन्नति में बाधक होती है। तर्पण, पिंडदान और धूप देने से यह आत्माएं तृप्त होती हैं। उन्हें शांति देने तथा उनका आशीर्वाद पाने के लिए भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक की अवधि में हम पिंड दान और तर्पण करते हैं। परिवार के जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को हुई हो उसी तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए। मृत्यु की तिथि अज्ञात नहीं हो तो अमावस्या को श्राद्ध करें। अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
ऐसे करे श्राद्ध
ब्राह्मण को भोजन कराएं। पशु-पक्षी विशेष रूप से कौवे को अन्न जल आदि अवश्य दें। काले तिल से अंजलि दें ।
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ऐसे कार्य पितृपक्ष में ना करें
पितृपक्ष में पेड़-पौधे ना काटे।
पितृपक्ष में नया वस्त्र धारण न करें।
अगर मांस मदिरा लेते हो तो पितृपक्ष में इसका अवश्य त्याग करें।
पितृपक्ष की इस अवधि में अपने घर किसी भी रुप में आए अतिथि का अनादर न करें।
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पितृपक्ष में किसी भी जीव को परेशान ना करें।
पितृपक्ष में बासी भोजन ना करें।