पाकिस्तान में मिले 1200 वर्ष पुराने हिंदू मंदिर के अवशेष

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पुरातत्व उत्खनन के दौरान स्वात से तक्षशिला तक आठ नए प्राचीन स्थलों की खोज हुई है। इनमें बुद्ध की मूर्तियां, एक विशाल स्तूप और स्वात के बारिकोट क्षेत्र में करीब 1,200 वर्ष पुराने हिंदू मंदिर के अवशेष मिले हैं। यह खोज बौद्ध और हिंदू शाही काल की साझा सांस्कृतिक विरासत को उजागर करती है।

पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्वात से तक्षशिला तक फैले आठ नए प्राचीन स्थलों की खोज इस क्षेत्र में चल रहे उत्खनन और अन्वेषण कार्य के दौरान हुई है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्राचीन स्थलों की इस खोज में बौद्ध धर्म और शाही हिंदूवादी राजवंश से जुड़े कई पुरातात्विक अवशेष भी मिले हैं। अन्वेषण में बुद्ध की कई मूर्तियां व एक विशाल स्तूप व स्वात के बारिकोट में करीब 1,200 वर्ष पुराने हिंदू मंदिर के अवशेष भी मिले हैं।

इतालवी पुरातत्वविदों द्वारा खैबर पख्तूनख्वा पुरातत्व निदेशालय के सहयोग से की गई इन खोजों को पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण सफलता मान रहा है। इतालवी पुरातत्व मिशन के निदेशक डॉ. लुका ने कहा कि बारिकोट (प्राचीन बजीरा) में उत्खनन के दौरान छोटे मंदिर के अवशेष उस वक्त की हिंदू शैली व परंपरा की बेजोड़ गवाही पेश करते हैं।

मंदिर के अवशेषों में स्वात के बारिकोट क्षेत्र की सतत सांस्कृतिक व सभ्यतागत विरासत के दुर्लभ प्रमाण मिलते हैं। ये खोजें पाषाण युग से लेकर सिकंदर, बौद्ध धर्म, हिंदू शाही राजवंश, यूनानी युग व इस्लामी काल तक फैली हुई हैं। स्वात के टोकरदरा में उत्खनन में बौद्ध काल के अहम अवशेष मिले हैं। इन खोजों में बुद्ध की मूर्तियां व विशाल स्तूप शामिल हैं।

उत्खनन क्षेत्र का अब स्वात नदी की तरफ विस्तार

इतालवी पुरातत्व मिशन के निदेशक डॉ. लुका ने कहा, हिंदू मंदिर और आसपास की पुरातात्विक परतों के चारों तरफ एक सुरक्षात्मक बफर जोन स्थापित करने के लिए उत्खनन क्षेत्र का अब स्वात नदी की ओर विस्तार किया गया है। खैबर पथ परियोजना नाम से जानी जाने वाली इस तीन वर्षीय पहल के तहत, 400 से अधिक स्थानीय श्रमिकों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएंगे।

50 से ज्यादा पुरातात्विक स्थल

अब तक खैबर पख्तूनख्वा में 50 से अधिक पुरातात्विक स्थलों की खोज हुई है। ये हालिया खोजें गांधार सभ्यता की ऐतिहासिक भव्यता को बताते हैं। इनमें स्वात घाटी के समृद्ध सांस्कृतिक महत्व का वैभव दिखता है। ये स्थल धार्मिक पर्यटन व शैक्षणिक अनुसंधान, के लिए अमूल्य विरासत बन सकते हैं। इनसे पता चलता है कि इस्लामी संस्कृति के विकास से पहले हिंदू व बौद्ध सभ्यता कितनी भव्यता लिए हुए थी।

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