नेपाल में युवा गुस्से का उबाल, प्रवासियों के पैसों पर टिके देश में सोशल मीडिया प्रतिबंध ने भड़काया तनाव

प्रवासियों की ओर से भेजे जाने वाले पैसे की नेपाल की राष्ट्रीय आय में बड़ी हिस्सेदारी है। 3 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले नेपाल में अवसरों की कमी के चलते 8 फीसदी से ज्यादा लोग विदेशों में काम करते हैं। वे जो पैसे अपने देश भेजते हैं, उसकी नेपाल की जीडीपी में 33 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है।
नेपाल में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों और तख्ता पलट के पीछे सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक और वाट्सएप पर प्रतिबंध तात्कालिक कारण बना। खराब आर्थिक हालात और अवसरों की कमी के चलते युवा पहले ही नाराज थे।
एप्स पर प्रतिबंध ने उनके घावों पर नमक छिड़क दिया और उनका गुस्सा फूट पड़ा। इनमें से कई एप्स भारत, खाड़ी देशों और मलेशिया जैसे देशों में बड़ी संख्या में काम करने वाले नेपाली लोगों के लिए परिजनों से संपर्क साधने और घर पैसे भेजने का जरिया थे। खास बात यह है कि प्रवासियों की ओर से भेजे जाने वाले पैसे की नेपाल की राष्ट्रीय आय में बड़ी हिस्सेदारी है। 3 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले नेपाल में अवसरों की कमी के चलते 8 फीसदी से ज्यादा लोग विदेशों में काम करते हैं। वे जो पैसे अपने देश भेजते हैं, उसकी नेपाल की जीडीपी में 33 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है।
कमजोर घरेलू अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को लेकर बढ़ते रोष को सोशल मीडिया से हवा मिली। नेपाली नेताओं और उनके बच्चों की शानो-शौकत भरी जिंदगी की सोशल मीडिया पर घूमती तस्वीरों ने भी आग में घी का काम किया। साथ में, भ्रष्टाचार की जांच का सामना कर रहे नेपाल के दोनों बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं के बीच महागठबंधन की सुगबुगाहट ने इस चिंगारी को हवा दे दी। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को इन बातों को दबाने की कोशिश माना गया, जिससे ऐसे हालात बन गए। विश्व बैंक के मुताबिक, नेपाल में गरीबी काफी कम हुई है। 1995 में 90% लोग रोजाना 6.85 डॉलर से कम में जीवन-यापन करते थे। वर्ष 2023 में यह 50% से कम हो गई। लेकिन, अर्थव्यवस्था क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर पिछड़ गई। गैर-कृषि क्षेत्र में अच्छी नौकरियां नहीं पैदा कर पाई।
वर्ष 1996 से 2023 के बीच अर्थव्यवस्था सालाना 4.2% की रफ्तार से बढ़ी, जो घरेलू दिक्कतों और बाहरी झटकों के बावजूद ठीक ही है, लेकिन दक्षिण एशिया के आठ देशों में यह छठे नंबर पर रही। इसके बावजूद, गरीबी घटने और मुश्किलों में भी मजबूत बने रहने का असली कारण विदेशों से भेजा गया पैसा है। त्रिभुवन विश्वविद्यालय के डॉ. रेशम थापा ने ग्रामीण नेपाल में घरेलू खर्च में विदेशों से भेजे जाने वाले धन की भूमिका पर अपने अध्ययन में पाया कि विदेशों से भेजा जाने वाला पैसा कुल घरेलू उपभोग को महत्वपूर्ण और सकारात्मक रूप से बढ़ाता है।
विदेशी पैसों पर टिके रहना चाहते हैं लोग
नेपाल की जनसंख्या में 16-25 साल के युवाओं की संख्या 20% से ज्यादा है। 16-40 साल के लोग 40% से ऊपर हैं, जिसे कई विशेषज्ञ जनसंख्या लाभांश कहते हैं। लेकिन, पढ़ाई और नौकरी के लिए विदेश जाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ी है। इसका दोहरा असर हुआ। एक तरफ विदेश से भेजा गया पैसा जीडीपी को बढ़ाता है, लेकिन दूसरी तरफ प्रतिभाओं का पलायन भी हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में युवा खेती छोड़कर विदेश जा रहे हैं, जिससे खेत बंजर हो रहे हैं, फसल पैदावार कम हो रही है और आयात पर निर्भरता बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशों में युवाओं का पलायन जनसंख्या लाभांश’ को कमजोर करता है। वहीं, लोग भी विदेशी पैसों पर टिके रहना पसंद करते हैं।
आर्थिक ठहराव, ढांचागत समस्याएं
नेपाल की अर्थव्यवस्था में रुकावट और ढांचागत दिक्कतें बनी हुई हैं। पिछले दशकों में मजदूरी की उत्पादकता कम रही, क्योंकि लॉजिस्टिक्स, ट्रांसपोर्ट में प्रतिस्पर्धा नहीं है, बुनियादी ढांचा कमजोर है और निर्यात सीमित है, जो असली आर्थिक विकास में मदद नहीं कर पाया। महंगी विनिमय दर, ऊंचे टैरिफ और एक्साइज टैक्स जैसी घरेलू नीतियों ने भी निर्यात को बाधित किया। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पहले से कमजोर था, जो और लुढ़क गया, जबकि टूरिज्म – जो नौकरी और विकास का बड़ा जरिया हो सकता था – विकसित नहीं हो पाया। हाइड्रोपावर का विकास भी धीमा रहा, जिससे अर्थव्यवस्था को गति देने का मौका छूट गया।