दरिंदों के कैसे मानवाधिकार?

मानव कौन है? किसे मानव माना जाए? इन प्रश्नों के उत्तर के बिना मानवाधिकार के संप्रत्य का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता| जो मानव ही नहीं उसके लिए कैसे मानवाधिकार? जिसे समाज की फ़िक्र नहीं, जो समाजिक आदर्शों को ठेंगा दिखाने में अपनी शान समझता हो| वो तो मानवता के लिए एक संकट है| उसके लिए न तो कानून का कोई डर है और न ही न्याय और इंसाफ का कोई सम्मान| वो अपने आप को जंगल का सेर समझता है और नागरिकों को अपना शिकार जिसे वे जब चाहे मारे या फिर अधमरा कर दे| मैं यहाँ बात कर रहा हूँ समाज के उन दरिंदों की जो अपने वहशीपन में पहले तो जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं और फिर अपराध से बच निकलने की उस पतली गली को ढूंढने में लग जाते हैं जिसे हमारे ही समाज में रह रहे कुछ सफेदपोश मुजरिमों के रहनुमा बना कर रखते हैं| 

यहाँ बात निर्भया के अपराधियों की हो रही है जिन्होंने 16 दिसम्बर 2012 को रात के अँधेरे में देश के दामन को इस कद्र कलंकित कर दिया कि आज 7 साल और एक महीने तक लगातार आने वाली सुबह भी उस कलंक के काले दाग को धो नहीं पाई है| उन दरिंदों ने तो जो करना था वो कर दिया एक होनहार बेटी जो 23 वर्ष की अल्पआयु में ही वो दर्दनाक मौत दी जिसका की शायद ही कानून की किताब में कोई इंसाफ हो| एक माँ को सात सालों तक न्यायालय में अपनी एड़ियाँ रगड़ने पर मजबूर कर दिया| 
लेकिन आज इतने अरसे के बाद जब उस माँ और स्वयं निर्भया को क़ानूनी इंसाफ ही सही मिलने की एक उम्मीद जगी है तो फिर समाज के वही सफेदपोश मानवाधिकार के ठेकेदार क़ानूनी दांवपेच अपनाने से बाज नहीं आ रहे| एक एक दिन इंसाफ की घड़ी को उस माँ से  दूर किया जा रहा है| ये कैसी मानवाधिकार की फरेबी दुनिया है जो अपराधी के मानवाधिकार की बात तो करती है लेकिन जिस पर अपराध हुआ है उसके लिए कोई आवाज नहीं उठाती| क्या 23 वर्ष की उस निर्भया का इसलिए कोई मानवाधिकार नहीं था क्योंकि कुछ मनचले दरिन्दे बहक गये और भूल गए कि जो बस में बैठी है वो केवल एक लड़की नहीं इन्सान है| 
अगर उन दरिंदों ने अपने कुछ पल के आराम के लिए किसी की आबरू को तार तार कर दिया और किसी मासूम को इतना प्रताड़ित किया की वो कुछ दिन जिन्दा तो रहे लेकिन दर्द को सहन करने के लिए| तो ऐसे में उन दरिंदों को भला कैसे मानव की श्रेणी में रख सकते हैं|

नीतिशास्त्र भी इसे पुरुषों के सन्दर्भ में कहता है कि_‘‘येषां न विद्या न तपो न दानं न शीलं न गुणो न धर्मः |ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति||’’ मानव अधिकारों का अर्थ उस मौलिक अधिकार व स्वतन्त्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार हैं न कि निर्भया के दरिंदों जैसे दानव| मानव अधिकार वे अधिकार होते हैं जो एक मानव को मानव होने के नाते प्राप्त होते हैं| लेकिन ऐसे दरिन्दे मानव होने की कौन सी परिभाषा में समाहित हैं यह केवल समाज के दानव कहलाने के अधिकारी हैं|
दुनिया में मानवाधिकारों की शुरुआत 10 दिसम्बर 1950 को यू एन जनरल असेम्बली में ऐलान के साथ की गई थी| अगर अपने देश की बात करें तो 28 सितम्बर 1993 से मानव अधिकारों को लेकर कानून अम्ल में आये हैं| 12 अक्तूबर 1993 को जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बना तो उसके कार्यक्षेत्र में कहीं भी अपराधियों और विशेष रूप से जघन्य अपराधों में संलिप्त अपराधियों के को जगह नहीं दी गई है| फिर भी दुःख की बात है कि कुछ संस्थाएं व व्यक्ति मानवाधिकार के नाम पर इनके अपराधों पर पर्दा डालने व इनके बूते अपनी रोटियाँ सेंकने का कार्य करते हैं|

आज जब इतने लम्बे संघर्ष के बाद निर्भया के दोषियों को फांसी देने का समय आया है| ऐसे में मानवाधिकारों की दुहाई देकर उनको माफ़ करने की अपील निर्भया की माँ से करना क्या उस माँ के मानवाधिकार का हनन नहीं है| सही कहा उस माँ ने कि वो भगवान नहीं वो माँ है और उसे अपनी बेटी का इंसाफ चाहिए| क्यों माफ़ करे वो माँ उन दरिंदों को ताकि आने वाले समय में इस तरह के काम करने वालों के नापाक होंसलों और भी बल मिले| नहीं! उस माँ को अपनी लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाना ही चाहिए| और यह अंजाम सिर्फ उन दरिंदों की फांसी है| क्यों पालें ऐसे सपोलों और समाज के दुश्मनों को हम देशवासी अपने टैक्स के पैसों से? जिन्होंने निर्भया के प्रति बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं उनकी फांसी का तो लाइव टेलीकास्ट राष्ट्रीय चैनलों पर होना जरूरी है है ताकि एक सबक मिले उनकी जैसी मानसिकता वाली दरिंदों को| पश्चाताप का भाव अगर जरा सा भी इन अपराधियों में होता तो ये अपनी करतूत पर स्वयं की अन्न जल त्याग अपनी फांसी की गुहार देश के न्यायालय के समक्ष लगाते| लेकिन ये तो नित नये दांव पेच फंसा कर अपनी फांसी को टालने की नाकाम कोशिशों में लगे हुए हैं| 

लेकिन देश के संविधान और सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है| अब इंतजार है तो उस घड़ी का जब इन दरिंदों को इनके किए की सजा मिलेगी और देश इनके कुकृत्यों का अंजाम देखेगा| यह जरूरी भी है ताकि लोगों का न्याय प्रक्रिया में और देश के संविधान में विश्वास बना रहे| इन दरिंदों की फांसी एक सबक होगी हर एक अपराधी के लिए जो अपराध करने के बाद बचने की सोचते हैं| इससे समाज में एक कड़ा संदेश भी जायेगा की भारत अपने देश की महिलाओं के लिए, उनके हुकुक के लिए एक चट्टान की भांति उनके साथ खड़ा है| 

देश के बहादुर बेटी ‘निर्भया’ और उसकी माँ को समर्पित|

युद्धवीर टण्डन (स्टेट अवार्डी 2019) 
7807223683
yudhveertandon24@gmail.com
कनिष्ठ अध्यापक, राजकीय प्राथमिक पाठशाला अनोगागावँ तेलका, डाकघर मौड़ा, तहसील सलूणी, जिला चम्बा, हिमाचल प्रदेश 176312.

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