गुलाल गोटा अभी भी जयपुर के पूर्व शाही परिवारों का पसंदीदा रंग है..

होली के दिनों में अब केमिकल रंगों की जगह पर इको फ्रेंडली हर्बल रंगों से तैयार गुलाल गोटों की बिक्री जोर पकड़ रही है। गुलाल गोटा का उपयोग करने की परंपरा 400साल पहले की है जब जयपुर के तत्कालीन शाही परिवार के सदस्य आपस में इसके साथ होली खेलते थे।

उन्होंने आगे कहा ‘गुलाल गोटे की सबसे अच्छी बात यह है कि यह इतने पतले और नाजुक होते हैं कि इन्हें आसानी से हाथ से तोड़ा जा सकता है। गुलाल गोटा अभी भी पूर्व शाही परिवारों का पसंदीदा है और उनके होली समारोह का एक हिस्सा है।’

मोहम्मद राजस्थान स्टूडियो के साथ गुलाल गोटा बनाने की कला का प्रसार कर रहे हैं, यह एक ऐसा संगठन है जो कला प्रेमियों को मास्टर कलाकारों के साथ व्यक्तिगत कला स्मृति चिन्ह बनाने के लिए एक मंच दे रहा है। गुलाल गोटा निर्माण उन कलाओं में से एक है जिसे संगठन बढ़ावा दे रहा है।

 रंगों का त्योहार होली करीब है। होली आते ही केमिकल वाले गुलाल और रंग बाजार में दिखने शुरू हो जाते हैं। बाजार में सस्ते सिंथेटिक विकल्पों के बावजूद पारंपरिक ‘गुलाल गोटा’ या प्राकृतिक सूखे रंगों से भरे लाख के गोले एक बार फिर होली मनाने वालों के लिए पसंदीदा हो रहे हैं।

गोल आकार का गुलाल गोटा पारंपरिक रूप से जयपुर में बनाया जाता है जहां कुछ मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से इस काम में लगे हुए हैं।

गुलाल गोटा का उपयोग करने की परंपरा 400 साल पहले की है जब जयपुर के तत्कालीन शाही परिवार के सदस्य उनके साथ होली खेलते थे। कलाकार आवाज़ मोहम्मद ने बताया कि लाख से बनी ये गेंदें प्राकृतिक रंगों से भरी होती हैं। पानी के गुब्बारे और पानी की बंदूकें के बिल्कुल विपरीत, गुलाल गोटा कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।

ऐसे बनता है गुलाल गोटा

आवाज़ मोहम्मद आगे कहते है कि इसे बनाने के लिए लाख को गर्म कर, फिर फूंकनी की मदद से इसे फुलाया जाता है। फिर उसे गुलाल भरकर बंद कर देते हैं। इसे जैसे ही किसी पर फेंका जाता है, लाख की पतली परत टूट जाती है और बिखरते गुलाल से आदमी सराबोर हो जाता है। उन्होंने बताया कि इसमें इको फ्रैंडली आरारोट के रंग भरे जाते है जिससे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। 

कारीगरों और निर्माताओं का कहना है कि गुलाल गोटा की मांग में हाल के दिनों में तेजी देखी गई है।

दो महीने पहले से ही बनने लगता है गुलाल गोटा

मोहम्मद कहते हैं कि उनके बच्चों ने भी दशकों में गेंद बनाने की कला सीखी है। थोक ऑर्डर के कारण, कारीगर होली के त्योहार से लगभग दो महीने पहले गुलाल गोटा बनाना शुरू कर देते हैं।

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