गर्मियों की छुट्टियों में बनाइए बेंगलुरु और मैसूर घूमने का प्लान…

गर्मियां आते ही सभी छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग करने लगते हैं। सबसे बड़ा मुद्दा होता है कि घूमने कहां जाएं। वैसे तो दिमाग में उन्ही जगहों का नाम आता है, जिनके बारे में आपने सुना हुआ है या पहले से जानते हैं। ये जगहें अब आम हो चुकी हैं। ऐसे में काफी असमंजस होती है तो आज हम बताएंगे कि गर्मियों की छुट्टी में घूमने जाना है तो खूबसूरत और सबसे साफ शहर में जाएं। जो शांति, कला, महल, संस्कृति और परंपरा के लिए मशहूर है।
बिना किसी संदेह के, मैसूर पैलेस शहर की सबसे शानदार इमारत है। वाडियार राजाओं के शासनकाल के दौरान की लगभग सभी चीजें इसके चारों ओर घूमती हैं। हालांकि, ये शाहीपन केवल महल तक ही सीमित नहीं है बल्कि महल की दीवारों के बाहर भी बहुत कुछ है।
जगनमोहन महल मैसूर के सबसे पुराने भवनों में गिना जाता है। इस महल का निर्माण मैसूर के राजाओं द्वारा 1961 में किया गया था। 1897 में जब पुराना लकड़ी का महल आग में जलकर नष्ट हो गया था तो मुख्य महल के निर्माण होने तक जगनमोहन महल शाही परिवारों का निवास स्थान भी रहा।
मैसूर एक ऐसा शहर है, जहां ऐतिहासिक इमारतें वंशावली को समेटे हुए हैं। महल के पास ही एक लाल रंग बड़ी सी ईमारत है। जिसे गन हाउस के नाम से जाना जाता है। यह ईमारत एक सदी से भी ज्यादा पुरानी है और यह शहर के औपनिवेशिक अतीत (colonial past ) का अवशेष है।
चामुंडी हिल्स की ऊंचाई पर स्थित, राजेंद्र विलास पैलेस वो महल था जहां शाही परिवार गर्मियां मनाता था । 1822 से यहां एक इमारत खड़ी थी, जहां नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार को पढ़ाया जाता था। हालांकि, 1920 के दशक में इसे एक बहुत बड़े महल में बदलने की योजना बनाई गई थी, लेकिन जब तक 1939 में नए महल का निर्माण पूरा हुआ, ऐसा नहीं हो पाया।लेकिन महल की खूबसूरती आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
क्रॉफर्ड हॉल को अब मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय के रूप में जाना जाता है। राजसी विंटेज 1947 की इमारत में कोरिंथियन कॉलम और प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी देवी सरस्वती की एक बड़ी सी तस्वीर है।
डीसी कार्यालय शायद सभी विरासत भवनों का सबसे ज्यादा शाही है।ये कार्यालय विशाल मैदानों के बीच स्थित है। मैसूर निवासी सर जेम्स गॉर्डन को समर्पित इस कार्यालय में जेम्स की बड़ी सी प्रतिमा बनी हुई है। इसे 1895 में खोला गया था जो ब्रिटिश प्रतिनिधियों का घर हुआ करता था। इतिहास को अगर पास से जानना चाहते हैं तो मैसूर की सैर जरूर करें।