कालभैरव जयंती पर बन रहे ये योग

आज यानी 12 नवंबर को मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर भगवान शिव के उग्र रूप भैरव देव अवतरित हुए थे। इसलिए इस तिथि पर कालभैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन कालभैरव देव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। कालभैरव जयंती के दिन कई योग भी बन रहे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं आज का पंचांग के बारे में।

तिथि: कृष्ण अष्टमी
मास पूर्णिमांत: मार्गशीर्ष
दिन: बुधवार
संवत्: 2082

तिथि: सप्तमी रात्रि 11 बजकर 08 मिनट तक
योग: शुभ प्रातः 09 बजकर 44 मिनट तक
करण: विष्टि प्रातः 11 बजकर 32 मिनट तक
करण: बव रात्रि 11 बजकर 08 मिनट तक

सूर्योदय और सूर्यास्त का समय

सूर्योदय: प्रातः 06 बजकर 41 मिनट पर
सूर्यास्त: सायं 05 बजकर 29 मिनट पर
चंद्रोदय: 13 नवंबर को रात 12 बजकर 22 मिनट पर
चन्द्रास्त: दोपहर 01 बजकर 19 मिनट पर

सूर्य राशि: तुला
चंद्र राशि: कर्क
पक्ष: कृष्ण

आज के शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त: कोई नहीं
अमृत काल: सायं 04 बजकर 58 मिनट से सायं 06 बजकर 35 मिनट तक

आज के अशुभ समय

राहुकाल: दोपहर 12 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 26 मिनट तक
गुलिकाल: प्रातः 10 बजकर 44 मिनट से प्रातः 12 बजकर 05 मिनट तक
यमगण्ड: प्रातः 08 बजकर 02 मिनट से प्रातः 09 बजकर 23 मिनट तक

आज का नक्षत्र

चंद्रदेव आज आश्लेषा नक्षत्र में रहेंगे।
आश्लेषा नक्षत्र: सायं 06:35 बजे तक
सामान्य विशेषताएं: मजबूत, हंसमुख, उत्साही, चालाक, कूटनीतिक, स्वार्थी, गुप्त स्वभाव वाले, बुद्धिमान, रहस्यवादी, तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वाले, तीव्र स्मृति वाले, नेतृत्वक्षम और यात्रा प्रिय।
नक्षत्र स्वामी: बुध देव
राशि स्वामी: चंद्र देव
देवता: नाग
प्रतीक: सर्प

कालभैरव जयंती का धार्मिक महत्व
कालभैरव जयंती भगवान शिव के उग्र रूप भैरव देव की अवतार तिथि के रूप में श्रद्धा से मनाई जाती है। यह दिन मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी, यानी 12 नवंबर 2025, बुधवार को है। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के अहंकार का दमन करने हेतु कालभैरव रूप धारण किया था। इस दिन भक्त तेल का दीपक जलाकर, अभिषेक कर और भैरव अष्टक, भैरव चालीसा का पाठ कर आराधना करते हैं। मान्यता है कि कालभैरव पूजा से भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है। यह पावन जयंती हमें यह संदेश देती है कि धर्म की रक्षा और अहंकार के विनाश के लिए कालभैरव देव सदैव जाग्रत हैं।

कालभैरव जयंती पूजा विधि
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
भगवान शिव और भैरव देव का ध्यान करें।
भैरव देव की मूर्ति या चित्र के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
काले तिल, उड़द, नारियल, इत्र, सुपारी और पुष्प अर्पित करें।
भैरव चालीसा, भैरव अष्टक या कालभैरव स्तोत्र का पाठ करें।
कुत्ते को भोजन कराएं, यह भैरव देव को प्रिय है।
भैरव मंदिर में दीपदान और रात्रि जागरण करें।
यह पूजा भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती है।
श्रद्धापूर्वक पूजा करने से साहस, आत्मबल और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

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