करगिल दिवस 2018 : पुत्र के साथ पिता ने भी एक साथ सम्हाला आतंकियों से मोर्चा, आप भी गर्व करेंगे इस फौजी की वीरगाथा जान कर
उन्होंने तो अपना फर्ज निभाने के साथ ही माटी का कर्ज भी चुका दिया, लेकिन सरकारी अधिकारी इस परिवार का दर्द अभी भी नहीं समझ रहे।करगिल में सरहद की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवाने वाले शहीद विनोद कुमार नागा की वीरांगना सुबिता आज भी सरकारी नौकरी के लिए भटक रही है।
कसम मुझे इस माटी की, कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा,
हां मैं इस देश का वासी हूं, इस माटी का कर्ज चुकाऊंगा।
बर्फीली चोटियों में दुश्मन को मुंहतोड जवाब देते समय कुछ इसी प्रकार माटी का कर्ज चुका कर अमर हो गए थे शहीद विनोद कुमार नागा।
ना उसे नौकरी मिली ना ही उसके परिवार के सदस्य को। उसने कभी अधिकारियों के चक्कर लगाए तो कभी जनप्रतिनिधियों के यहां गुहार लगाई। सभी जगह से केवल आश्वासन ही मिला, नौकरी का इंतजार आज भी बढ़ता ही जा रहा है।
ऑपरेशन विजय के दौरान करगिल में 30 मई 1999 में देश की सरहद की रक्षा करते हुए शहीद हुए सिपाही विनोद कुमार नागा के परिजनों का दर्द जानने पत्रिका टीम उनके गांव रामपुरा पहुंची। परिजनों ने कहा, हमें हमारे लाडले पर फर्क है।
उन्होंने देश के लिए जान लगा दी। केवल रामपुरा ही नहीं बल्कि पूरे सीकर जिले व राजस्थान का मान बढ़ाया। उस समय राजस्थान पत्रिका ने भी सम्बल दिया। सरकार ने भी पेट्रोल पम्प, जमीन, पेंशन सहित अनेक सुविधाएं दी। लेकिन अभी भी एक टीस शेष है। कई बार गुहार लगाने के बावजूद परिवार के किसी सदस्य को अभी तक घोषणा के अनुसार सरकारी नौकरी नहीं दी गई।
विनोद के पिता भागीरथ सिंह भी सेना से रिटायर्ड सूबेदार हैं। जब उनसे शहीद का जिक्र किया तो पहले बूढी आंखे छलक पड़ी, लेकिन फिर हिम्मत कर बोले, नाज है मेरे बेटे पर। जिसने अपनी माटी का कर्ज पूरा किया। मेरा बेटा मरा नहीं अमर हो गया। वह आज भी जिंदा है हमारे दिलों में, हमारी हर यादों में।
शादियों के आयोजन होते हैं, बेटे को याद कर आंखे भर आती है, लेकिन साथ ही नाज है उसने पूरे जिले का मान बढ़ाया। सरकार ने बहुत कुछ दिया अब एक ही मांग है पोते की सरकारी नौकरी लग जाए।
खूब लगा लिए चक्कर
वीरांगना सुबिता देवी ने बताया, उस समय सरकार ने कहा था करगिल शहीद के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। कई बार अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। परिवार के किसी सदस्य को अभी तक नौकरी नहीं दी गई है। अब जल्द से जल्द नौकरी मिल जाए तो परिवार को सहारा मिल जाए।