एशिया वैश्विक औसत से दोगुनी गति से हो रहा गर्म, जलवायु लक्ष्यों पर निष्क्रियता की सबसे बड़ी सजा

विश्व की लगभग 60 फीसदी आबादी वाले दुनिया के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया का तापमान वैश्विक औसत के मुकाबले लगभग दो गुना तेजी से बढ़ रहा है। यह खुलासा सोमवार को जारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की 2024 में एशिया में जलवायु की स्थिति रिपोर्ट में हुआ है। इसके मुताबिक, एशिया के समुद्री सतह तापमान में भी बीते दशकों में वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी रफ्तार से बढ़ोतरी हुई है।
रिपोर्ट बताती है कि 1961–1990 और 1991–2024 की दो प्रमुख अवधि में आर्कटिक तक फैले सबसे बड़े भूभाग वाले महाद्वीप एशिया की धरती और महासागर औसत से अधिक तेजी से गर्म हुए। इसका क्षेत्र आर्कटिक तक फैला होने के कारण इसकी जलवायु संवेदनशीलता बढ़ जाती है। साल 2024 में एशिया का औसत तापमान 1991–2020 के औसत से 1.04 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह डाटा सेट के आधार पर इसे रिकॉर्ड पर सबसे गर्म या दूसरा सबसे गर्म साल बनाता है। इस वर्ष क्षेत्र के कई हिस्सों में अत्यधिक गर्मी की घटनाएं देखी गईं।
रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की लहरें
एशिया के कई हिस्सों में लंबे समय तक चलने वाली भीषण गर्मी देखी गई। अप्रैल से नवंबर तक पूर्वी एशिया (जैसे जापान, कोरिया और चीन) में गर्मी के रिकॉर्ड लगातार टूटते रहे। भारत ने इस साल 48,000 लू के जानलेवा मामले और 159 मौतें रिपोर्ट कीं, जो जलवायु परिवर्तन के खतरनाक असर को दिखाता है।
समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ा
डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, एशिया के प्रशांत और हिंद महासागर तटों पर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत से तेज गति से बढ़ा है, जिससे निचले तटीय इलाकों पर खतरा और बढ़ गया है। सर्दियों में बर्फबारी कम होने और गर्मियों में अत्यधिक गर्मी ने ग्लेशियरों पर बेहद बुरा असर डाला है। मध्य हिमालय और तियान शान में, 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान कम हो गया यानी बर्फ में कमी आई। इससे ग्लेशियल झील के फटने, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ गया है और जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक खतरा पैदा हो गया है।
बाढ़, चक्रवात और सूखे का कहर
भारी बारिश, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और सूखे ने इस साल एशिया में भारी तबाही मचाई। इन आपदाओं से जान-माल का बड़ा नुकसान हुआ। सूखे के कारण बड़े पैमाने पर आर्थिक और कृषि हानि हुई।
समाज और पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा असर
डब्ल्यूएमओ महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा कि यह रिपोर्ट तापमान, ग्लेशियर और समुद्र स्तर जैसे प्रमुख जलवायु संकेतकों में आए बदलावों को उजागर करती है, जो समाज, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर तौर से प्रभावित कर रहे हैं। चरम मौसम अब असहनीय हद तक नुकसान पहुंचा रहा है।
अब नहीं चेते तो हो जाएगी देर
एकीकृत पर्वतीय विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (आईसीआईएमओडी) के महानिदेशक पेमा ग्यामत्शो ने कहा कि एशिया की कमजोर आबादी को जलवायु लक्ष्यों पर निष्क्रियता की सबसे बड़ी सजा भुगतनी पड़ रही है। उन्होंने चेताया कि यह दशक ग्लेशियर जैसे जरूरी संसाधनों की रक्षा के लिए आखिरी मौका है।