एंटीबायोटिक्स सेवन का अंधा खेल, जिससे हो रही जिन्दगी फेल
- विश्व एंटीबायोटिक्स दिवस पर सुनील यादव ने किया जागरूक
- छोटी-मोटी बीमारियों में सीधे एंटीबायोटिक देना आम होता जा रहा
- 18 नवम्बर से 24 नवम्बर तक मनाया जा रहा एंटीबायोटिक्स जागरूकता सप्ताह
लखनऊ। जिस प्रकार एंटीबायोटिक का अंधाधुंध तरीके से प्रयोग किया जा रहा है, इस परिप्रेक्ष्य में कल्पना कीजिये कि किसी को हल्की सी भी कोई बीमारी होने पर कोई दवा नहीं काम करे तो कितनी चिंता की बात होगी !!! जी हां, वर्तमान में यह कल्पना है लेकिन इस कल्पना को हकीकत बनने में कुछ ही साल लगेंगे अगर हमने अपनी कार्यप्रणाली विशेषकर चिकित्सकों ने उपचार प्रणाली अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक का प्रयोग न रोका।
इस चिंता से चिंतित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल सिविल अस्पताल के चीफ फार्मेसिस्ट, उत्तर प्रदेश फार्मेसी कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष सुनील यादव ने अपने विचारों को लोगों के बीच रखा है। इस वर्ष 18 नवम्बर से 24 नवम्बर तक एंटीबायोटिक्स जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है। इस मौके पर सुनील यादव ने कहा कि एंटीबायोटिक्स का जिस तरह धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है वह उपचार प्रणाली को अंधेरे में ले जा रहा है। उनका कहना है कि आज भारत मे कोई एंटीबायोटिक पालिसी या प्रोटोकॉल स्पष्ट रूप से लागू नही है, अस्पतालों में बढ़ती भीड़ और कम संसाधन, जागरूकता की कमी के कारण एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग आम हो गया है, जिससे एंटीबायोटिक का प्रतिरोध पनप रहा है जो भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
यादगार सेक्स के लिए घर नहीं इन जगहों को चुने, आएगा दोगुना मजा
आपको बता दें कि एंटीबायोटिक्स जागरूकता सप्ताह पूरे देश मे नवम्बर माह में मनाया जाता है, इस वर्ष 18 नवम्बर से 24 नवम्बर तक यह सप्ताह मनाया जा रहा है । जिसमें चिकित्सक और फार्मेसिस्ट विशेषज्ञों द्वारा आम जनता को एंटीबायोटिक औषधियों के सही प्रयोग की सलाह दी जाती है ।
यह जानकारी देते हुए सिविल अस्पताल के चीफ फार्मेसिस्ट, उत्तर प्रदेश फार्मेसी कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि देश मे आधे से अधिक आबादी के लोग मानव चिकित्सा या पशु चिकित्सा के लिए सुरक्षित और योग्य लोगों से नहीं मिलते । ग्रामीण क्षेत्रो में अप्रशिक्षित लोगों द्वारा चिकित्सा व्यवसाय खुले तौर पर जारी है ऐसे में एंटीबायोटिक के सही प्रयोग की बात सोचना बेमानी है।
उनका कहना है कि वास्तविकता तो यह है कि गांवों में किराने की दुकान पर भी बुखार की दवा मिलती है। इन औषधियों के दुरुपयोग का प्रमुख कारण स्वचिकित्सा है। मरीज खुद से अपना इलाज बिना उचित सलाह के करने लगता है जो अत्यंत घातक है।
वहीं प्रदेश में फार्मेसी व्यवस्था उचित प्रतिनिधित्व नही पा रही है , कम संसाधन के कारण मेडिकल स्टोरों का उचित पर्यवेक्षण भी संभव नही है। चिकित्सालयों की बात करें तो मरीज अपने पुराने पर्चे नहीं लाते जिससे अक्सर पहले से चल रही दवाओं की जानकारी चिकित्सक और फार्मेसिस्ट को नहीं हो पाती जो अत्यंत घातक है ।
अप्रशिक्षित लोगों द्वारा की जा रही चिकित्सा में अक्सर बिना आवश्यकता के एंटीबायोटिक के प्रयोग किया जाता है, जिससे जब एंटीबायोटिक की वास्तव में आवश्यकता होती है उस समय उस औषधि का प्रतिरोध पैदा हो चुका होता है ।
श्री यादव ने इस अवसर पर मरीजो को सलाह दी कि स्वचिकित्सा से हमेशा बचें और योग्य चिकित्सक से ही उपचार लें । साथ ही अपने फार्मेसिस्ट से ही औषधियां लें जिससे आवश्यकता पड़ने पर ही डॉक्टर एंटीबायोटिक्स की सलाह दें। चिकित्सक के पास जाते समय पुराने पर्चे साथ रखें ।