तो इतने वर्षों का सीता माता ने दिया था इन 4 जीवों को श्राप, जो आज भी भुगत रहे है…. जानें इसके पीछे की कहानी
हिन्दू धर्म में हर महिना खास होता हैं| लेकिन सभी महीनो में श्राद्ध का महीना बहुत खास होता हैं| इस महीने में लोग सदियों से चली आ रही कई नियमों की पालना करते हैं| श्राद्ध का महिना ना केवल हमारे वर्तमान बल्कि हमारे पूर्वजों से भी जुड़ा हुआ हैं| पौराणिक ग्रंथो में श्राद्ध को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं| रामायण में भी इस महीने का जिक्र है| हम आपको आज श्राद्ध से जुड़ी एक ऐसे ही कहानी बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे| यह कहानी एकदम सच्ची है| इस कहानी को भगवान राम से भी जोड़ा जाता है|
प्राचीन समय के लोगों के मुताबिक जब भगवान राम लक्ष्मण और सीता मैया 14 सालों के वनवास पर गए थे तो इसी बीच उन्हें सूचना मिली थी उनके पिता राजा दशरथ का निधन हो गया है| इस सूचना को पाते ही तीनो लोग बहुत दुखी हो गए थे| चुकी वो राजा दशरथ की संतान यहे इस लिए उन्हें अपना कर्तव्य भी निभाना आवश्यक था| ऐसे में सीता मैया ने लक्ष्मण जी को पिंडदान करने के लिए समान लाने का आदेश दिया| सीता मैया का आदेश पाते ही लक्ष्मण जी पिंडदान के लिए समान लाने चले गए| लेकिन काफी समय गुजर जाने के बाद भी वो वापस नहीं लौटे तब सीता मैया को उनकी चिंता होने लगी|
इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए सीता मैया ने बुद्धि का इस्तेमाल कर खुद पिंडदान के समान का प्रबंध किया| बताया जाता है कि इस पिंडदान में सीता मैया ने पंडित, गाय, फल्गु, नदी और कौवे को साक्षी माना था| जब भगवान राम सीता मैया के पास लौटे तो उन्होने बताया कि उन्होंने पिंडदान पूरी रस्मों-रिवाजो के साथ कर दिया है| यदि उन्हें उन पर विश्वास नहीं तो वो इन चारों से पूछ सकते हैं| सीता मैया को विश्वास था कि वो चारों भगवान राम जी के सामने सत्य ही बोलेंगे लेकिन वो चारों ही अपनी बातों से मुकर गए और पिंड दान की बात कि चारों ने झुठला दिया|
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इस बात पर भगवान राम सीता मैया पर क्रोधित हो गए| सीता मैया ने भगवान राम जी के क्रोध से बचने के लिए अपने श्वसुर यानि राजा दशरथ की आत्मा को सामने आने की विनती करने लगी| थोड़े ही समय में राजा दशरथ की आत्मा वहां प्रकट हुयी और राजा दशरथ ने बताया कि उनका पिंडदान सीता मैया के द्वारा किया जा चुका है| उन्होने यह भी बताया कि ये चारों लोग झूठ बोल रहे हैं| उन चारो के झूठ बोलने पर सीता मैया बहुत क्रोधित हुयी उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया जिसका भुक्तभोगी वो आज भी हैं|
आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि सीता मैया ने पंडित को श्राप देते हुए कहा कि, “तुम्हें भले ही कितना भी अच्छा भोजन क्यों ना मिल जाए या फिर कोई राजा-महाराजा भी अपनी सारी संपत्ति क्यों ना दे दे फिर भी तुम गरीब के गरीब बने रहोगे| पंडित को श्राप देने के बाद सीता मैया ने फल्गु नदी को सुखी रहने का श्राप दे दिया और गाय जो कि सबसे पवित्र मानी जाती हैं तथा लोग इसे गौ माता कहते हैं|
सीता मैया ने गाय को श्राप दिया कि तुम पूज्य होने के बावजूद इधर-उधर भटकती रहोगी और लोगों का जूठा खाना खाओगी| अंत में सीता मैया ने कौवे को अकेले भूखे रहने और लड़-झगड़ कर खाने का श्राप दे दिया| सीता मैया के श्राप को वो आज तक झेलते आ रहे हैं|