अमेरिकी टैरिफ का जवाब देने के लिए भारत तैयार, कृषि उत्पाद जाएंगे जापान

अमेरिकी टैरिफ के बीच भारत ने कृषि निर्यात के लिए नई रणनीति अपनाई है। एपीडा प्रमुख अभिषेक देव ने बताया कि भारत जापान, यूरोप, रूस और फिलीपीन जैसे बाजारों में पकड़ मजबूत कर रहा है। जैविक उत्पादों से निर्यात को नई ताकत मिली है। पिछले साल कृषि निर्यात 28.6 अरब डॉलर पहुंचा, ऑर्गेनिक निर्यात में 34% की बढ़त दर्ज की गई।
अमेरिकी टैरिफ के कारण कृषि उत्पादों का निर्यात प्रभावित न हो, इसके लिए भारत ने खास रणनीति बनाई है। ट्रंप टैरिफ का जवाब देने के लिए तैयार भारत अब जापान, फिलीपीन और यूरोप समेत अन्य बड़े बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत करने के साथ निर्यात बढ़ाने पर जोर दे रहा है। कुछ वर्षों में कृषि निर्यात तेजी से बढ़ा है। इसमें बड़ी भूमिका ऑर्गेनिक उत्पादों की भी है। कृषि निर्यात बढ़ाने और नए प्रोटोकॉल विकसित करने समेत विभिन्न मुद्दों पर कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के चेयरमैन अभिषेक देव से शैलेश अरोड़ा की खास बातचीत…
अमेरिकी टैरिफ से कृषि उत्पादों के निर्यात पर क्या असर पड़ेगा?
हमें विश्वास है कि हमारे निर्यात लचीले रहेंगे। हमें बहुत परेशानी नहीं दिख रही। हम लगातार स्टेक होल्डर्स से चर्चा कर रहे हैं। अमेरिका के साथ और भी हाई वैल्यू मार्केट पर काम कर रहे हैं। उनके कोई घरेलू मुद्दें हैं, तो उनका समाधान करें।
किन देशों को बड़े बाजार के रूप में देख रहे हैं?
हमारी ग्रोथ सभी सेक्टर में है। सीआईएस देशों में रूस में 20-30 फीसदी की ग्रोथ आ रही है। गल्फ रीजन पहले से मजबूत है। अब देख रहे हैं कि कैसे यूरोपीय बाजार, जापान, फिलीपीन में काम करें। ट्रेड फेयर हो रहे हैं। अभी मॉस्को में होगा, फिर अन्य देशों में। भारत में भी सितंबर में वर्ल्ड फूड इंडिया में 500-600 इंटरनेशनल बायर्स को बुलाएंगे। भारत इंटरनेशनल राइस कॉन्फ्रेंस में 1000 से अधिक इंटरनेशनल बायर्स को बुलाएंगे। देश में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे निर्यात में कैसे वृद्धि हो रही है?
पिछले साल हमारा कृषि निर्यात 12 फीसदी बढ़कर 28.6 अरब डॉलर रहा। चावल, दाल, प्रसंस्कृत उत्पाद, फल और सब्जी सभी में वृद्धि हुई। ऑर्गेनिक निर्यात भी 34 फीसदी बढ़कर 66.6 करोड़ डॉलर था। हमारे निर्यात में 9 फीसदी की ग्रोथ आई है। ऑर्गेनिक निर्यात 12 फीसदी बढ़ा है।
निर्यात के लिए नए प्रोटोकॉल विकसित करने की दिशा में क्या काम हो रहा है?
गत वर्ष केले, अनार के निर्यात का प्रोटोकॉल विकसित किया गया। इसके बाद इन्हें हम समुद्री रास्ते से यूएसए और ऑस्ट्रेलिया भेज पाए। वहां से फीडबैक मिला कि लागत 40 फीसदी कम हुई है। समुद्री मार्ग से कृषि उत्पाद भेजें तो वह सस्टेनेबल मोड है, अधिक मात्रा में निर्यात भेज सकते, कॉम्पिटेटिव प्राइस दे सकते हैं। हमारे कई उत्पाद भारी और उनकी शेल्फ लाइफ कम है, उसमें समुद्री प्रोटोकॉल विकसित करना जरूरी है जिससे निर्यात बढ़ सके।
इस साल अधिक से अधिक अनार समुद्री मार्ग से जाएंगे। आम की विभिन्न वैरायटी हैं, एक राउंड का समुद्री प्रोटोकॉल पूरा कर चुके, दूसरे राउंड का अगले सीजन में करेंगे। लीची में एक राउंड का प्रोटोकॉल बनाया जिससे उसकी शेल्फ लाइफ 15 दिन बढ़ी। एक यूरोपियन तकनीक पर अभी बात कर रहे जिससे लीची की शेल्फ लाइफ 30 से 60 दिन की हो जाएगी। जल्द अपना डेलिगेशन भेजेंगे। सब सही रहा तो उसे लागू करेंगे।
कन्साइनमेंट वापस लौटाने की मुख्य वजह क्या है?
सभी देशों की अपनी जरूरत है। जब भारी मात्रा में निर्यात होता है, तो एक-दो वापस होते हैं। यह एक स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है। कई बार गुणवत्ता मानकों पर हमारे निर्यातकों से चूक हो जाती है। कई बार उत्पाद में नहीं लेबलिंग में इश्यू आ जाते हैं। एपीडा चेयरमैन निर्यात को लेकर सबसे बड़ी चुनौती क्या देखते हैं? जितने भी हमारे उत्पादक हैं, उत्पादन छोटे स्तर पर है, कॉम्पैक्ट होल्डिंग्स हैं। उसको एग्रीगेट करना, उसकी क्वालिटी एक रखना, मार्केटिंग करना उस पर काम चल रहा है। उम्मीद है आने वाले दिनों में उत्पादन और निर्यात बढ़ा पाएंगे।
हम धान के बड़े उत्पादक हैं। प्रोसेस्ड फूड को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन, क्या जितना पोटेंशियल है, उतना निर्यात कर पा रहे हैं? हमारा पोटेंशियल असीमित है। हम हॉर्टिकल्चर में सेकंड लार्जेस्ट प्रोड्यूसर हैं, राइस के हम इस साल लार्जेस्ट हो गए, दालों के लार्जेस्ट, ऑयल सीड अच्छी मात्रा में करते हैं। चावल में उत्पादन बढ़ रहा, इसलिए अतिरिक्त है निर्यात के लिए। हमारे यहां केले का अच्छा उत्पादन, लेकिन दूर के बाजार में भेजना मुश्किल है।