अभी-अभी : एक बार फिर मोदी सरकार पर चली सुप्रीम कोर्ट की लाठी, इस फरमान से रोयेंगे खून के आंसू अगर…

नई दिल्ली। हमारा भारतभी कितना महान देश है यहां जनता के प्रतिनिधि, जिन्हें जनता चुनाव के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचाती है वे अपने आप को एक सामाज सेवक और जन प्रतिनिधि बताते हैं जिनकी जड़ें इस मिट्टी से जुड़ी हुई हैं लेकिन असल में अगर हम हकीकत जानने का प्रयास करते हैं तो जो सच निकल कर सामने आता है वो वाकई हम सभी को हिलाने वाला है।

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वो जनप्रतिनिधि अपने आप को समाज सेवक और मिट्टी से जुड़ा हुआ बताते हैं उनमें अधिकतर के तो पैर ही जमीन पर कभी कभी ही पड़ते हैं। गलती उनकी नहीं है गलती हमारी ही है कि हम बिना पूरा सच जाने ऐसे आदमी को अपना सेवक चुनते हैं जो पहले से ही अकूत संपत्ति का मालिक हो या जिसके ऊपर पहले से ही कई आपराधिक मामलों के केस दर्ज होते हैं। इसीलिए शायद एक बार राजनीति में आने वाला व्यक्ति कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता।

लेकिन राजनीति में केवल मलाई काटने वाले नेताओं पर अब सुप्रीम कोर्ट की नजर टेढ़ी हो चुकी है। बता दें कि तमाम नेताओं की अचानक बढ़ी अकूत संपत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त हो चुका है और कहा है कि ऐसे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित करके त्वरित सुनवाई करने की जरूरत है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस वार का बचाव करने को लेकर केंद्र सरकार ने अदालत में इसका विरोध शुरू कर दिया है और कहा है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड संतोषजनक काम कर रहा है।

हाल ही में तमाम समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों ने यह सवाल उजागर किया था कि जो आदमी जनता का सेवक होता है और जिसका काम उनकी समस्याएं सुनना और उसका निदान कराना होता है आखिर कैसे वह इन सब को नजरंदाज कर एक बिजनेस मैन की तरह काम करता है। इन्हीं मामलों को लेकर बीते सोमवार को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि देश में कई सांसदों और विधायकों की संपत्तियों में काफी तेजी से इज़ाफा हुआ है। जिनमें 98 विधायक और सात सासंद शामिल हैं। यही नहीं सीबीडीटी ने इन नामों को सार्वजनिक किए जाने की भी मांग की थी।

यही नहीं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने भी ऐसे ही कुछ नेताओं के नाम पेश किए थे जिनकी संपत्ति में 12 सौ से लेकर 21 सौ फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। वहीं हिंदी दैनिक समाचार पत्र हिंदुस्तान का कहना है कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं की बेहिसाब संपत्ति को लेकर जबरदस्त वकालत की, लेकिन केंद्र सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया। उसका कहना है कि इन मामलों में सीबीडीटी संतोषजनक काम कर रहा है और इसके लिए अलग से कोई व्यवस्था बनाने की जरूरत नहीं है।’

वहीं न्यायालय ने यह सवाल पूछा था कि क्या इन नेताओं पर आपराधिक मुकदमे नहीं चलाए जाने चाहिए। आखिर क्यों इन्हें आयकर कानून के अंदर ही रखकर आंका जा रहा है। उसके इस सवाल के जवाब में अटॉर्नी जनरल का कहना था कि बेहिसाब संपत्ति की जांच करना ही सीबीडीटी का उद्देश्य है। खबर के मुताबिक उच्चतम न्यायालय ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के जल्द से जल्द निपटारे के लिए सरकार से फास्ट ट्रैक कोर्ट के निर्माण को लेकर कानून बनाने पर विचार करने को कहा है।

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सांसदों और विधायकों की अकूत संपत्ति को लेकर न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा है कि यह संसद के दायरे में आता है और कानून बनाने के लिए उसके पास जरूरी अधिकार है। उन्होंने कहा है कि इस विषय में जल्द से जल्द कानून बनना भी चाहिए और ऐसा करने से आगे इस तरह के मामलों में कमी भी आएगी। जो कि इस दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।

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