इन महिलाओं ने अपनी अटल मेहनत से ऐसा मुकाम जहां, जहां आज उनके सम्मान के बड़े-बड़ों की सिर झुकते हैं।
‘तब मैं बहुत छोटी थी। करीब दस साल की। पीने के पानी का इंतजाम आसपास नहीं था। मां कोसों दूर से पानी का घड़ा सिर पर लादकर लाती थी। हम काफी पिछड़े इलाके में रहते थे। सुविधा और संसाधन दूर की बात थी। संघर्षों के साथ पल-बढ़कर मैंने लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने का सपना बुना। कोशिश की, मेहनत की और आखिरकार आज मैं उस मुकाम पर हूं, जिसके बूते मुझमें लोगों की मदद करने की शक्ति है। मेरे कॉलेज के दिनों में आधुनिकता बहुत कम थी। सोच-विचार की आजादी भी उतनी नहीं थी, लेकिन अब सोच बदली है।
महिलाओं को समाज में पहले के मुकाबले अधिक सम्मान मिलता है। बेटा और बेटी के बीच की खाईं भी काफी कम हुई है। इसी का नतीजा है कि आज महिलाएं अंतरिक्ष में जा रही हैं। विदेश, कपड़ा और रक्षा जैसे अहम मंत्रालय संभाल रही हैं। निजी क्षेत्र में भी महिलाएं अपना परचम फहरा रही हैं। महिलाओं को भगवान से स्पेशल गिफ्ट मिलता है कि वो परिवार की देखरेख के साथ-साथ समाज में समानता बनाए रखती हैं’। यह कहना है महिला सशक्तीकरण मंत्री रेखा आर्या का।
अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता और लगन ही मेरा फलसफा है। एक बार जो सोच लिया जाए, उस दिशा में आगे बढ़ने की सोचनी चाहिए। बार-बार अपने लक्ष्य में बदलाव न करें। कई बार महिलाएं दूसरों की सोच के आधार पर अपने कामकाज का तरीका या फिर आचार-विचार बदलती हैं, जो मेरे हिसाब से सही नहीं है। अपने तरीके से अपनी शर्तों पर जीना चाहिए। महिला सशक्तीकरण महकमा मेरे पास है और इस नाते महिलाओं के लिए तमाम योजनाएं पेश करना मेरा दायित्व है। इसके लिए मैं लगातार कोशिश कर रही हूं। महिलाओं के सशक्तीकरण को लेकर एकल महिलाओं को ई-रिक्शे दिए जाएंगे, जिससे वे रोजगार कर अपना जीवन बिना किसी पर निर्भर हुए जी सकें। पशुपालन और मत्स्यपालन के लिए उन्हें एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण देंगे। इससे पूर्व मैं नवजात बच्चियों के लिए वैष्णवी किट, साइकिल यात्रा, सेनेटरी पैड की जानकारी और लिंग अनुपात, भ्रूण हत्या पर रोक के कई कार्यक्रम कर चुकी हूं, ताकि समाज जागरूक हो और महिला सशक्तीकरण की ओर अग्रसर हो सके ।
आज के दिन को ऐतिहासिक दिवस के रूप में मनाएं और संकल्प लें कि हमें समाज में आगे बढ़ते रहना है। पुरुषों के साथ कंधे से कं धा मिलाकर देश की एकता को मजबूत करना है। वहीं, राज्य को सेनेटरी प्रूफ बनाना है। सरकार की स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसी पहल से देश को मजबूत बनाएं।
कमजोर को ध्यान में रखकर योजना बनाएं तो बने बात
पहाड़ की महिलाओं का जज्बा और लक्ष्य तक पहुंचाने की क्षमता की आज देश और दुनिया में सराहाना हो रही है। कठोर मेहनत से कुछ अलग हटकर समाजसेवा करने के लिए डोईवाला की महिलाएं भी पहचान बनाने लगी हैं। इनमें से एक है, कविता राणा।
कविता राणा मिशन बनाकर विकास की मुख्यधारा से दूर रहने वाले दिव्यांग बच्चों को शिक्षित बनाने की मुहिम चला रही हैं। कुछ साल पहले कुछ निर्धन परिवारों के दिव्यांग बच्चों की हालत देखकर व्यथित हुई कविता ने बेहद गरीब परिवारों के दिव्यांग बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। दो साल में 50 से अधिक बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा है।
कविता बताती हैं कि डोईवाला नगर और ग्रामीण परिवेश के निर्धन परिवारों में सैकड़ों की तादाद में दिव्यांग बच्चे अशिक्षित हैं। ऐसे ही बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया तो सास यशोदा देवी ने भी भरपूर सहयोग दिया। इसके बाद यशोदा फाउंडेशन का गठन कर चांदमारी गांव में अस्तित्व स्पेशल स्कूल खोलकर दिव्यांग बच्चों को शिक्षित करने की मुहिम शुरू की गई है। कविता के मुताबिक सरकारी आंकड़ों के अनुसार क्षेत्र में दो सौ से अधिक दिव्यांग बच्चे हैं, लेकिन यह आंकड़ा कहीं अधिक है।
लिहाजा ऐसे बच्चों को चिह्नित कर उनके अभिभावकों से शिक्षा देने के लिए विद्यालय भेजने का अनुरोध किया जाता है। विद्यालय में ढाई से 14 साल तक के बच्चों को पढ़ाया जाता है। विद्यालय में 34 बच्चे पंजीकृत हैं। विद्यालय को एक वाहन की दरकार है जो दिव्यांग बच्चों को स्कूल तक ला सके। इसके लिए जनप्रतिनिधियों और सरकार तक आवाज पहुंचाई जा रही है। पढ़ाई के साथ बच्चों को नृत्य, संगीत, पुस्तकों, खेलों और सामाजिक गतिविधियों से अवगत कराया जाती है। कविता कहती हैं कि यदि हम समाज के सबसे कमजोर को ध्यान में रखकर योजना बनाते हैं तब हम दुनिया को सबके लिए बेहतर जगह बनाते हैं।
श्रीनगर की वर्तिका जोशी ने किया आईएनएसवी तारिणी का नेतृत्व
श्रीनगर। आईएनएसवी तारिणी पर सवार होकर दुनिया के सफर पर निकली नौसेना की छह महिला अधिकारियों को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इन महिला अधिकारियों को यह पुरस्कार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में आयोजित सम्मान समारोह में दिया जाएगा। महिला अधिकारियों की यह टीम इस समय दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन में है। टीम का नेतृत्व श्रीनगर की वर्तिका जोशी कर रही हैं।
ले. कमांडर वर्तिका जोशी के पिता प्रो. पीके जोशी ने बताया कि उन्हें मंगलवार रात को नेवी मुख्यालय से फोन आया था। फोन पर उन्हें बताया गया कि दुनिया के सफर पर निकली नेवी की महिला अधिकारियों की पूरी टीम को अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर सम्मानित किया जाएगा। प्रो जोशी ने बताया कि पुरस्कार ग्रहण करने के लिए टीम की सदस्य विजया देवी राष्ट्रपति भवन पहुंच रही हैं। पुरस्कार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों दिया जाना है।
प्रो. जोशी ने बताया कि अभियान की शुरुआत 10 सितंबर 2017 से की गई थी। इस समय टीम दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन में है। इस वर्ष अप्रैल माह के अंत तक अभियान पूरा होने की संभावना है। अभियान के दौरान दल को करीब 27 हजार 500 नौटिकल मील का सफर तय करना है। टीम में ले. कमांडर वर्तिका जोशी (टीम लीडर), ले. पायल गुप्ता, ले. कमांडर पी स्वाति, ले. विजया देवी व ले. बी ऐश्वर्या शामिल हैं।
पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश में जुटीं
मेरा बचपन से आईपीएस बनने का कोई ख्वाब नहीं था। बस एक ही टारगेट था कि यूपीएससी एग्जाम पास करना है। जिस परिवार से मैं आती हूं, वहां आईएएस और आईपीएस का ज्यादा क्रेज नहीं था। 2006 में आईपीएस बनी तो महसूस किया कि पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए यह सशक्त माध्यम है। तब से ही इसी सोच के साथ अपनी ड्यूटी और दायित्व का निर्वाह करती आई हूं। पुलिस अधिकारी के साथ अपनी सामाजिक भूमिका को भी निभाने की हर संभव कोशिश की है। कभी महिलाओं और पुरुषों में भेद नहीं समझा। पिछले साल मैंने महिला दिवस पर महिला चीता मोबाइल संचालित करने की नई पहल शुरू की थी, जिसके बाद हरिद्वार में भी महिला चीता मोबाइल को सड़क पर उतारा गया।
सामाजिक कार्यों में भागेदारी सुनिश्चित की
मैं बचपन से ही भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने वाली पहली महिला आईपीएस किरण बेदी से बेहद प्रभावित थी। तब से ही आईपीएस बनने का सपना संजोया था, जो 2005 में साकार हुआ। ट्रेनिंग के दौरान मुझे कई अवार्ड मिले। कानून का पालन कराने के साथ सामाजिक कार्यों में भी अपनी भागेदारी सुनिश्चित की है। एसएसपी ऊधमसिंह नगर के अलावा अल्मोड़ा, चंपावत, उत्तरकाशी जिले की कमान संभालने के बाद फिलहाल मैं स्पेशल टास्क फोर्स की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के रूप में क्रिमिनल और साइबर क्राइम रोकने के लिए कार्य कर रही हूं। प्रदेश के एकमात्र साइबर थाने के कार्यों के पर्यवेक्षण का जिम्मा भी मेरे ऊपर है।
बचपन से मेरा सपना सिविल सर्विस या फॉरेनर सर्विस में जाने का था। अजमेर से मेरी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पूरी हुई और मैं हमेशा कुछ हटकर काम करना चाहती हूं। आईपीएस को मैंने चुनौती की तरह लिया और 2008 में आईपीएस बनने के बाद विभाग में अपनी अलग छवि बनाई। पहली पोस्टिंग से लेकर देहरादून एसएसपी बनने तक का मेरा सफर उपलब्धियों के साथ चुनौतियों से भी भरा रहा है। मेरी कोशिश पुलिसिंग को आम आदमी से जोड़कर बेहतर बनाने की है। देहरादून से पहले मैंने हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, बागेश्वर, पौड़ी जिले के अलावा सीबीसीआईडी और लंबे समय तक सीपीयू की कमान भी संभाली। हाल में ही एक माह तक महिलाओं को अधिकारों और कानूनी पहलुआें को लेकर जागरूक किया गया।
वन सेवा की नौकरी की तो लोग देखने आते थे
मैंच पश्चिम बंगाल काडर की पहली महिला भारतीय वन सेवा अधिकारी रही। जब मैंने वन सेवा की नौकरी ज्वाइन की थी तो लोग मुझे देखने आते थे। वे वन सेवा में किसी महिला के आने पर हैरत करते थे। शादी के बाद जब वर्ष 1988 में मेरा काडर बदलकर हिमाचल हुआ तो मैं हिमाचल की भी पहली आईएफएस अधिकारी थी। मेरी सफलता के पीछे अध्यापक माता-पिता श्रीनिधि भारद्वाज और रमला भारद्वाज हैं। कभी भी मैं मुश्किलों से घबराई नहीं। हर मुश्किल का यह सोचकर सामना किया कि आगे और बड़ी मुश्किल आएगी। इससे दिक्कतें खत्म हो गईं। बुरा चाहने वाले भी बहुत होते हैं, लेकिन जुनून और पूरी मेहनत के साथ काम किया तो सफलता को कोई रोक नहीं पाया। जब भी मुश्किल पड़ी, इरादा मजबूत हुआ और सफलता मिली। किसी काम में सफलता के लिए कभी भी शॉर्ट कट रास्ता नहीं खोजा, लेकिन जुनून को बनाए रखा।
लोगों की सेवा के उद्देश्य से बनीं चिकित्सक
किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ से 1982 में एमबीबीएस और इसके बाद पीजी किया। मेरी पहली तैनाती अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र डोईवाला में हुई। इसके बाद दून महिला अस्पताल में ईएमओ और फिर उत्तराखंड हेल्थ सिस्टम डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में साढ़े छह वर्ष तक सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत रही। महिला अस्पताल में सीएमएस, अपर निदेशक, निदेशक के बाद सितंबर 2017 से मैं स्वास्थ्य महानिदेशक के पद पर कार्यरत हूं। पिता स्वर्गीय आरपी श्रीवास्तव प्रांतीय चिकित्सा सेवा, उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ चिकित्सक थे। बड़ी बहन भी डॉक्टर है। लिहाजा मैं खुद यह सोचकर कि लोगों की सेवा कर सकूं इस क्षेत्र में आई। मैंने एमबीबीएस किया तो पिता यह सोचकर बेहद खुश हुए कि उनकी दोनों बेटियां डॉक्टर बन गई। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी के बावजूद चिकित्सा सेवा में हरसंभव सुधार की मेरी कोशिश है।
मां के संघर्ष ने दी आत्मनिर्भर बनने की सीख
जब कक्षा आठ में पढ़ती थीं तो तभी पिता विनोद कुमार शर्मा की एक सड़क हादसे में मौत हो गई। मां पुष्पलता शर्मा ने अकेले दम पर तीनों बहनों को पढ़ाया। मां ने जिन चुनौतियों के बीच परिवार को पाला, इससे चुनौतियों का सामना करने और आत्मनिर्भर बनने की सीख मिली। मै छोटी उम्र से वाइल्ड लाइफ और पशु प्रेमी रही। यही वजह है कि आगे चलकर पशुओं के इलाज को कॅरियर बना लिया। पंतनगर यूनिवर्सिटी से वैटनरी में पीजी करने के बाद वर्ष 2003 में उन्होंने पशुपालन विभाग में पशु चिकित्सक के रूप में काम शुरू कर दिया। वर्ष 2014-15 में उन्होंने वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से पीजी डिप्लोमा किया। ऑफिस में बैठकर काम करना पसंद नहीं था। अगस्त 2015 में वे राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क में प्रतिनियुक्ति पर आ गईं। अब तक 10 गुलदारों और दो हाथियों का को ट्रैंकुलाइज कर चुकी हूं।