पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए बेशक सरकारें हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही हों, लेकिन धरातल पर जानलेवा बने प्रदूषण का असर बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली, यूपी, हरियाणा और पंजाब में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा कहर है। साल 2017 में वायु प्रदूषण की वजह से देश में करीब 12.5 फीसदी यानी 12.4 लाख लोगों की मौत हुई है। मौत के आंकड़े में यूपी, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल सबसे आगे हैं।
प्रदूषण की ये चौंकान्ने वाली रिपोर्ट पर्यावरण थिंक टैंक सीएसई के स्टेट ऑफ इंडियाज इन्वायरन्मेंट (एसओई) ने विश्व पर्यावरण दिवस पर जारी की। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण के कारण सालाना देश में 1 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है, जबकि लोगों की जीवन आयु भी 1.7 वर्ष घटी है। संक्रमण और गैर संक्रमणकारी रोगों से बचाने वाले डॉक्टरों को लेकर भी देश गंभीर स्थिति से जूझ रहा है। प्रदूषित हवा के कारण भारत में 10 हजार लड़कों में से औसतन 8.5 की 5 साल की आयु से पहले मौत हो जाती है, जबकि लड़कियों में यह खतरा ज्यादा है।
10 हजार में से 9.6 लड़कियों की मौत 5 की होने से पूर्व हो जाती है। घर के अंदर के प्रदूषण की बात करें तो वर्ष 2016 में ही 30,817 लड़के और 36,073 लड़कियों की मौत हुई। हालांकि, इस तरह की रिपोर्ट पर स्वास्थ्य मंत्रालय भरोसा नहीं करता है। उनका मानना है कि ऐसे आंकड़ों की वजह से पैनिक स्थिति पैदा होती है। अधिकारियों का ये भी मानना है कि प्रदूषण को लेकर अभी बहुत कुछ करना बाकी है। उधर, दिल्ली अपोलो अस्पताल के समूह निदेशक एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुपम सिब्बल का कहना है कि प्रदूषण का बच्चों पर वाकई बुरा असर पड़ रहा है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
एम्स के विशेषज्ञ डॉ. करण मदान का कहना है कि प्रदूषण को सीधे तौर पर लोगों की मौत से जोड़ना मुश्किल है। दिल्ली सहित देश के तमाम बड़े शहरों में प्रदूषण की वजह से करोड़ों जिंदगियां दांव पर लगी हैं। वहीं पुणे चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक डॉ. संदीप साल्वी का कहना है कि प्रदूषण के कारण ही भारत में सीओपीडी की बीमारी दूसरी सबसे ज्यादा मौत वाली बन गई है। देश में करीब 60 फीसदी से ज्यादा मौत गैर संक्रमणकारी रोगों से हो रही हैं।
सालभर इंडेक्स दिखी लाल
साल 2017 में लासेंट में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार, दिल्ली में प्रदूषण का सालाना औसत 200 से ज्यादा देखने को मिला है। ठीक ऐसा ही हाल यूपी, हरियाणा और पंजाब में भी देखने को मिला है। हाल ही में सामने आई ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली को बताया गया।
5 साल में 60 फीसदी घटे डॉक्टर
सीएसई रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 से 2017 के बीच 5 साल में 60 फीसदी डॉक्टरों की कमी देखने को मिली है। वर्ष 2013 में जहां 45,106 एमबीबीएस धारकों का स्टेट मेडिकल काउंसिल में पंजीयन हुआ। वहीं 2017 में ये घटकर 17,982 ही रह गया। असम, गोवा और तमिलनाडु में सबसे ज्यादा कमी देखने को मिली है। दिल्ली में 2013 की तुलना में 2017 में 60 फीसदी कम 1722 डॉक्टर बने हैं। इनके अलावा देश के स्वास्थ्य केंद्रों में 35 फीसदी कर्मचारियों के पद ही खाली पड़े हैं। इनमें से 26 फीसदी मेडिकल ऑफिसर के हैं।
22 मई तक 2.8 लाख ई वाहन मिले
सीएसई की रिपोर्ट ये भी बताती है कि ई-वाहनों की संख्या 22 मई 2019 तक महज 2.8 लाख थी, जो तय लक्ष्य से काफी पीछे है। इस रिपोर्ट में जल, स्वास्थ्य, कचरा उत्पादन एवं निस्तारण, वनों एवं वन्यजीवों को शामिल किया है।
17 सालों में आपदा से 37 हजार लोग मरे
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 17 सालों में भारत के विभिन्न हिस्सों में हुई आपदा में 37 हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए, जबकि साढ़े 6 करोड़ हेक्टेयर खेती को नुकसान भी हुआ है। इनमें हाल के वर्ष 2017-18 की बात करें तो आपदा से 2,057 लोग, 46,488 पशु की मौत हुई, जबकि 915,878 घर और 4744 लाख हेक्टेयर खेती तबाह हो गई।