जानिए क्या है तोगड़िया जी के इन आंसुओं के पीछे का सच ?

प्रवीण तोगड़िया अस्पताल में रोते रोते अपने समर्थकों से शांति बनाये रखने की अपील करते हैं। बहुत टूटे हुए हैं। एक काबिल डॉक्टर, एक कट्टर हिन्दूवादी और संघ परिवार के खासमखास रहे डॉ तोगड़िया के पीछे उन्हीं की भाजपा सरकारें आखिर क्यों लग गई हैं? राजस्थान वाले, गुजरात वाले और दिल्ली वाले सबके सब उनके दुश्मन क्यों हो गए? आखिर अपने ही गुजरात में इस हिन्दूवादी नेता की ये हालत कैसे हो गई? उन्हें एनकाउंटर का डर क्यों सताने लगा?  

जैन्ये क्या है तोगड़िया जी के इन आंसुओं के पीछे का सच ?क्या तथाकथित हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना, हिन्दू धर्म को लेकर खड़ा किया गया आंदोलन और आक्रामक हिन्दुत्व का दर्शन बदलते वक्त और सियासी समीकरणों के साथ अपने मायने खो चुका है? क्या अशोक सिंघल वाले विश्व हिन्दू परिषद के मौजूदा कर्ता धर्ता प्रवीण तोगड़िया के आंसुओं के पीछे यही बेबसी है या कुछ और? किसी ज़माने में अपने साथ स्कूटर पर बैठाकर नरेन्द्र मोदी को जगह जगह घुमाने वाले डॉ तोगड़िया आखिर इस हद तक अलग थलग कैसे हो गए?

कई सारे सवाल अचानक सतह पर उभर आए हैं। प्रवीण तोगड़िया ने अपनी किताब ‘सैफ्रन रिफ्लेक्शंस-फेसेज़ एंड मास्क्स’ में जिस तरह भाजपा पर हमले किए हैं और मोदी सरकार पर तीखे तंज कसे हैं, उससे उनके भीतर की बेचैनी साफ झलकती है। जिस राम मंदिर, धारा 370, समान नागरिकता कानून, गोवंश हत्या जैसे सवालों को लेकर भाजपा सत्ता में आई, तोगड़िया अपने इसी एजेंडे को सरकार पर अपने तरीके से लागू करने का दबाव बनाते रहे हैं। बेशक भाजपा सरकार आने के बाद से देश में इन मुद्दों के कई आयाम अलग अलग रूपों में सामने आते रहे हों और देश के माहौल को लेकर भी कमज़ोर ही सही, लेकिन आवाज़ उठती रही हो, बावजूद इसके तोगड़िया जिस तरह का हिन्दूकरण चाहते हैं, वो किसी भी सरकार के लिए लागू कर पाना आसान नहीं है।

यह बात संघ के नेता भी समझते हैं, लेकिन विहिप और हिन्दू जागरण मंच जैसे संगठनों का वजूद भी इसीलिए बनाया गया है कि बीच बीच में वो असली एजेंडे की याद दिलाते रहें। संघ की यह पुरानी रणनीति रही है कि वो अपनी सरकार के साथ तो रहेगी ही लेकिन तमाम एजेंडों को लेकर अपने विरोध के स्वर को भी मुखर करती रहेगी। संघ परिवार बहुत बड़ा है, इसकी इतनी शाखाएं हैं कि आम आदमी समझ ही नहीं पाता कि कब वह इसके प्रभाव में आ गया और उसका चिंतन उस धारा की तरफ मुड़ गया। और यही संघ की सबसे बड़ी ताकत है। तोगड़िया भी ये तथ्य जानते हैं। लेकिन यहां बात चिंतन और विचारधारा से अलग कुछ और लगती है।

उसी राम मंदिर आंदोलन की फायरब्रांड साध्वी अपने फायर की तपन खत्म करके सत्ता का आनंद बरसों से ले रही हैं। तमाम भगवाधारी सत्ता सुख भोग रहे हैं। लेकिन जो ताल ठोंककर अपने तल्ख हिन्दू चेहरे के साथ संगठन चलाता रहा, वो हाशिये पर पहुंच गया। उसपर भीतर ही भीतर पटेलों के आंदोलन को हवा देने का आरोप इसलिए लगा कि वो खुद पटेल है।       

सियासत बड़ी जालिम चीज़ है। आप दिखाएं या न दिखाएं, लोगों के लिए महान और त्यागी बनने का लबादा ओढ़े रहें लेकिन आपके भीतर की महात्वाकांक्षाएं आपको एक न एक दिन हाशिए पर धकेल ही देती हैं। हिन्दू अपने आप में बेहद दिलचस्प दर्शन है। लेकिन कोई भी दर्शन अपने आप में जितने बड़े आयाम समेटे रहता है और जितने व्यापक मायने उसमें समाये होते हैं, उसे आप किसी मंदिर या समाज के किसी खास हिस्से या दायरे में नहीं बांध सकते। अपने देश में हिन्दुओं के हितैषियों की कमी नहीं। हिन्दू संगठनों की भरमार है। हिन्दू मान्यताओं और परंपराओं के साथ साथ हिन्दू प्रतीक चिन्हों और मंदिरों पर सियासत का एक लंबा इतिहास रहा है। संस्कृतियों के टकराव यहां सदियों से चलते रहे हैं, लेकिन देश का आम आदमी इन मान्यताओं और धारणाओं के साथ रोज़मर्रा की ज़िंदगी की जद्दोजहद में सदियों से लगा रहा है और आज भी लगा है।
 
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