जींस पहनना खतरनाक: जींस पहनते हैं तो उसे धोए नहीं, आपकी जिन्दगी से जुड़ा है यह राज

नई दिल्ली। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में खाने-पीने के साथ-साथ पहनना और रहना सभी का संबंध पर्यावरण से सीधे तौर पर सम्बंधित है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए जो लोग शिद्दत से काम करते हैं, उनका रहन-सहन कैसा है और वो किस तरह के फैशन की वकालत करते हैं। जिज्ञासा होना चाहिए कि आपके किस एक्शन से पर्यावरण पर क्या असर पड़ सकता है।

जींस के सूक्ष्म पार्टिकल नदियों, झीलों या समुद्रों करते हैं नुकसान

हमें अपने पर्यावरण के संरक्षण के हिसाब से ही अपना रहन सहन अपनाना चाहिए । क्या आप जीन्स पहनते हैं? आधी से ज़्यादा दुनिया ब्लू या किसी और रंग के डेनिम जीन्स पहनने का शौक रखती है, लेकिन इस फैक्ट से बेखबर हैं कि इस जीन्स के सूक्ष्म पार्टिकल नदियों, झीलों या समुद्र में जाकर मिलते हैं और नुकसान करते हैं।

जींस पहनना खतरनाक: जींस पहनते हैं तो उसे धोए नहीं, आपकी जिन्दगी से जुड़ा है यह राज

जींच से निकलते हैं सूक्ष्म रेशे

रिसर्च में पता चला है कि जीन्स जब धोई जाती है, तो सूक्ष्म रेशे उसमें से निकलते हैं और व्यर्थ पानी के साथ बह जाते हैं। हालांकि रिसर्च में अभी यह पता नहीं चला है कि इससे वाइल्डलाइफ और पर्यावरण को किस तरह नुकसान होता है, लेकिन चिंता ज़रूर जताई गई है। कहा गया है कि भले ही डेनिम कॉटन से बनता है, लेकिन इसमें कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल होता है, जिनमें माइक्रोफाइबर भी शामिल हैं।

जलस्रोतों की तलछट में मिले कई सूक्ष्म रेशे

जितनी बार जीन्स धोई जाती है, ये रेशेनुमा माइक्रोफाइबर हर बार निकलते हैं और व्यर्थ पानी के साथ नदियों, झीलों या अन्य जलस्रोतों में पहुंच जाते हैं और प्रदूषण का कारण बनते हैं। रिसर्च में वैज्ञानिकों ने जलस्रोतों की तलछट में मिले कई सूक्ष्म रेशों का परीक्षण कर पता किया कि वो जीन्स से निकले सूक्ष्म कण ही हैं।

झीलों की तलछट में डेनिम माइक्रोफाइबर का प्रदूषण पाया गया

अमेरिका और कनाडा के कई हिस्सों में कई छोटी बड़ी झीलों की तलछट में डेनिम माइक्रोफाइबर का प्रदूषण पाया गया। चूंकि दुनिया में कई लोग जीन्स पहन रहे हैं इसलिए शोधकर्ताओं ने इस प्रदूषण को जीन्स के साथ जोड़कर रिसर्च की। ये भी पता चला कि जीन्स की लिए सिंथेटिक डाय का इस्तेमाल होता है। सिंथेटिक प्राकृतिक पदार्थ नहीं है और जीन्स बनाने में इस्तेमाल होने वाले कुछ पदार्थ तो ज़हरीले तक भी होते हैं।

प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मनुष्यों की सेहत को करते हैं नुकसान

ये फाइबर्स अस्ल में, सूक्ष्म प्लास्टिक होते हैं, जिनमें पर्यावरण के लिए नुकसानदायक केमिकल होते हैं। वैज्ञानिक अभी पूरी तरह नहीं जानते कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों से मनुष्यों की सेहत को किस तरह खतरे होते हैं। लेकिन कुछ के बारे में पता चल चुका है जैसे पॉलीविनाइल क्लोराइड कैंसर का कारण बन सकता है, तो कुछ केमिकल्स हॉर्मोन संबंधी गड़बड़ियां पैदा करते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक को लेकर सतर्क रहना ज़रूरी

इस स्टडी का कहना यही है कि माइक्रोप्लास्टिक को लेकर सतर्क रहना ज़रूरी है। प्राकृतिक माइक्रो फाइबर वाले डेनिम में भी चूंकि केमिकल हैं इसलिए इसे लेकर भी चिंता की जाना चाहिए। एक बात और समझना चाहिए कि वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में 83 से लेकर 99 फीसदी तक इस तरह के माइक्रो प्लास्टिक को ट्रीट कर दिया जाता है। तो फिर क्यों इसे लेकर चिंता है?

जीन्स एक बार धोने में 50 हज़ार माइक्रो फाइबर निकलते हैं

जीन्स एक बार धोने में 50 हज़ार माइक्रो फाइबर निकलते हैं, तो इसका एक परसेंट जो ट्रीट नहीं हो पाता, वह भी 500 फाइबर का है। यह संख्या भी कम नहीं है। ये एक जोड़ी जीन्स का गणित है। यानी एक जोड़ी जीन्स से 500 फाइबर ट्रीट नहीं हो पा रहे, तो अब अंदाज़ा लगाइए कि दुनिया की आधी आबादी अगर जीन्स पहन रही है तो हर बार धोने में कितने फाइबर पानी में जाकर मिल रहे हैं!

 

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