उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति और शासन के बीच तनातनी में जुड़ रहे नित नए अध्याय…

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति और शासन के बीच तनातनी में नित नए अध्याय जुड़ रहे हैं। कुलपति डा सुनील कुमार जोशी की प्रोफेसर पद की सेवाओं और पदोन्नति पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह मामला हाईकोर्ट में भी है। शासन के तमाम आदेशों के बावजूद कुलपति ने प्रभारी कुलसचिव को न तो बदला और न ही शासन की ओर से इस पद पर भेजे गए व्यक्ति को कार्यभार ग्रहण करने दिया है। इसे लेकर तलवारें हद से ज्यादा खिंच चुकी हैं।

आदेशों की अनदेखी के बाद अब शासन कुलपति की शैक्षिक योग्यता और पद के लिए पात्रता की पड़ताल में जुट गया है। इस बीच राजभवन में कुलपतियों की बैठक हुई। कुलाधिपति होने के नाते राज्यपाल की नजरें विश्वविद्यालयों पर रहती हैं। राजभवन ने इस तनातनी पर नसीहत दी कि सरकार और विश्वविद्यालय एक-दूसरे के पूरक की तरह कार्य करें। नसीहत पर अमल होना अभी बाकी है।

वेद, गीता भी पढ़ेंगे विद्यार्थी

उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जो विद्यालयी पाठ्यक्रम में वेद, गीता और रामायण को शामिल करेगा। नए पाठ्यक्रम में राज्य के इतिहास के बारे में भी जानकारी दी जाएगी। दरअसल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को लेकर प्रदेश का उत्साह देखने योग्य है। पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर तक नई नीति के लिए ढांचा तैयार किया जा रहा है। इसे क्रमश: 2030 तक तैयार किया जाना है। इस नीति के अंतर्गत ही राज्यों को यह छूट भी दी गई है कि 30 से 40 प्रतिशत तक अपना पाठ्यक्रम तय कर सकते हैं। शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत ने नए बनाए जाने वाले पाठ्यक्रम के स्वरूप को लेकर भी जानकारी दी है। सरकार पर नए पाठ्यक्रम को थोपने के आरोप न लगें, इसे देखते हुए मंत्रीजी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यह कदम शिक्षाविदों और जनता के सुझाव लेकर ही उठाया जाएगा।

भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृत

राज्य सरकार प्रयास कर रही है कि भारतीय ज्ञान परंपरा वर्तमान शिक्षा पद्धति का हिस्सा बने। विद्यालयी शिक्षा के साथ संस्कृत शिक्षा में भी इन प्रयासों को मूर्त रूप देने की तैयारी है। विशेष रूप से संस्कृत में शोध कार्यों को बढ़ावा देने पर मंथन चल रहा है। संस्कृत शिक्षा के विकास का कार्य एकीकृत तरीके से हो, इसे ध्यान में रखकर राज्य में स्थापित संस्कृत परिषद, संस्कृत अकादमी और संस्कृत शिक्षा निदेशालय की जिम्मेदारी नए सिरे से तय की जाएंगी। साथ में संस्कृत शिक्षा की नियमावली भी बनेगी। शिक्षा व संस्कृत शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत इस पहल के प्रति गंभीर हैं। राज्य पहले ही संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दे चुका है। सरकार के इस कदम का परिणाम यह रहा कि विधानसभा में मंत्रियों की नाम पट्टिकाएं संस्कृत में दिखाई दीं। इससे अधिक कुछ नहीं हुआ। मंत्रीजी अब कुछ सार्थक करने का मन बना चुके हैं।

शिक्षकों को दिया जाए प्रशिक्षण

विद्यालय निजी हों या सरकारी, सभी में बाल अधिकारों के संरक्षण की पैरवी की जाती है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में इस पर विशेष बल दिया भी गया है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद विद्यालयों के वातावरण में कुछ परिवर्तन देखा गया है, लेकिन आवश्यकता से यह अब भी कोसों दूर ही है। पूर्व प्राथमिक, कक्षा एक से लेकर प्राथमिक कक्षाओं में पढऩे वाले बच्चों के साथ विद्यालयों और वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों का आचरण कई बार बाल मनोविज्ञान की धज्जियां उड़ाता नजर आता है। शिक्षा बाल या छात्र केंद्रित हो, यह विषय तमाम मंचों, संगोष्ठियों की शोभा बढ़ाता है, लेकिन धरातल पर अमल नहीं दिखता। अब राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक आउटफ्रेम तैयार करने की बात कही है। इसके अंतर्गत बच्चों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने को विभिन्न कार्यक्रम होंगे। बेहतर होगा कि बच्चों से अधिक शिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाए।

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