उद्धव ठाकरे ने बारसू-सोलगांव में रिफाइनरी लगाने का दिया था प्रस्ताव..

केंद्र सरकार द्वारा कोंकण में प्रस्तावित मेगा रिफाइनरी के निर्माण में शिवसेना के राजनीतिक विरोध के अलावा अब वहां स्थित पुरातात्विक महत्त्व की शैल कलाएं (जियोग्लिफ्स) भी आड़े आ सकती हैं। ये शैल कलाएं पिछले वर्ष ही यूनेस्को की अस्थाई धरोहर सूची में शामिल की गई हैं।

अरमाओ एवं एएनडीओसी के साथ मिलकर लगाने की योजना

बारसू और सोलगांव में प्रस्तावित एशिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी को भारत की तीन बड़ी तेल कंपनियों इंडियन आयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम द्वारा संयुक्त रूप से खाड़ी देशों की दो बड़ी तेल कंपनियों सऊदी अरमाओ एवं एएनडीओसी के साथ मिलकर लगाने की योजना है।

रिफाइनरी लगाने का दिया था प्रस्ताव

यह रिफाइनरी पहले रत्नागिरि के ही नाणार में स्थापित की जानी थी। लेकिन वहां स्थानीय लोगों के विरोध के कारण महाविकास आघाड़ी सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने स्वयं प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस परियोजना को रत्नागिरि के ही बारसू-सोलगांव में लगाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन, पिछले वर्ष जून में महाविकास आघाड़ी सरकार के गिर जाने के बाद अब शिवसेना ठाकरे सरकार द्वारा ही सुझाए गए इस स्थल पर रिफाइनरी लगाने का विरोध करने लगी है।

उद्धव ठाकरे ने शिंदे सरकार को घेरा

इस परियोजना का विरोध कर रहे गांव वालों से मिलने शनिवार को बारसू-सोलगांव पहुंचे उद्धव ठाकरे ने ठीकरा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट पर फोड़ने की कोशिश करते हुए कहा कि यह सही है कि मैंने ही इस स्थल का प्रस्ताव दिया था। लेकिन, तब उन्हीं गद्दारों ने मुझे बताया था कि यह स्थल रिफाइनरी के लिए सबसे उत्तम है। उद्धव अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बारसू के शैल कलाओं वाले स्थल को भी देखने गए।

यह विरोध अब सिर्फ राजनीतिक नहीं रहेगा

वहां कोई निर्माण न होने देने की प्रतिबद्धता जताई। उनके चचेरे भाई एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे ने भी शनिवार को एक अलग रैली कर कहा कि जहां-जहां कातल शिल्प (शैल कलाएं) हैं, वहां से तीन किलोमीटर की दूरी तक कोई निर्माण नहीं करने दिया जाएगा। माना जा रहा है कि यह विरोध अब सिर्फ राजनीतिक नहीं रहेगा। जल्द ही पुरातत्व के क्षेत्र में काम करने वाले सरकारी-गैरसरकारी संगठनों की भी निगाह यहां पड़ेगी।

भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में पाई जाती हैं ये शैल कलाएं

क्या हैं शैल कलाएंसदियों पहले चट्टानों को जोड़कर, हटाकर या उन पर तरह-तरह की आकृतियां बनाकर शैल कलाओं (जियोग्लिफ्स या पेट्रोग्लिफ्स) का प्रदर्शन किया जाता था। भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में ये शैल कलाएं पाई जाती हैं, जो उस क्षेत्र विशेष में मानव सभ्यता का पुरातात्विक प्रमाण भी मानी जाती हैं। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग से लेकर गोवा तक सैकड़ों किलोमीटर की पट्टी में जगह-जगह ये शैल कलाएं पाई जाती हैं।

कार्बन डेटिंग के अनुसार

कोंकण के रत्नागिरि जिले में ऐसी शैल कलाओं के 1,500 से अधिक टुकड़े हैं। यहां ये करीब 70 स्थलों में फैली हुई हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में ‘कातल शिल्प’ कहा जाता है। कार्बन डेटिंग के अनुसार, ये स्थल 1,200 से 2,000 वर्ष पुराने माने जाते हैं। कोंकण क्षेत्र में पाई जाने वाली शैल कलाओं में मानव आकृतियों के अलावा हिरन, हाथी, बंदर, जंगली सुअर, गैंडा, दरियाई घोड़ा जैसे जानवरों की आकृतियां भी बनी हुई हैं।

विश्व धरोहर स्थलों की अस्थाई सूची

गैंडों के पाए जाने के प्रमाण कोंकण क्षेत्र में पिछली कई सदियों से नहीं मिलते। इसके बावजूद वहां की शैल कलाओं में उनके चित्रों का पाया जाना दर्शाता है कि कभी वहां गैंडे भी पाए जाते रहे होंगे। अप्रैल 2022 में कोंकण क्षेत्र के इन स्थलों को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थाई सूची में शामिल किया गया था। इस सूची में रत्नागिरि जिले के सात स्थलों उक्षी, जंभरुण, काशेली, रुंधे ताली, देवीहसोल, बारसू, देवाचे गोठाने का जिक्र है। इसके अलावा सिंधुदुर्ग जिले के कुडोपी गांव एवं गोवा के फनसामल स्थित नौ स्थलों का भी जिक्र है।

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