भारत-चीन सीमा पर स्थित नीती घाटी के सुदूरवर्ती गमसाली क्षेत्र में इन दिनों 23 युवा ले रहे Military Training..

भारत-चीन के बीच उत्तराखंड में 345 किमी लंबी सीमा है। देश में सेना का यह इस तरह का पहला अभियान है। इसमें देश के विभिन्न राज्यों के 23 युवा शामिल हैं। प्रशिक्षण तीन अप्रैल को शुरू हुआ जो चार जून तक चलेगा।

चमोली जिले में भारत-चीन सीमा पर स्थित नीती घाटी के सुदूरवर्ती गमसाली क्षेत्र में इन दिनों खासी चहल-पहल है। यहां करीब दो दर्जन युवा सैन्य गतिविधियों का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

इसमें ट्रेकिंग, माउंटेनियरिंग, राक क्लाइंबिंग, रिवर राफ्टिंग के साथ सेल्फ डिफेंस का प्रशिक्षण भी शामिल है। इसका उद्देश्य सीमांत क्षेत्र को जीवंत बनाने के साथ युवा पीढ़ी को सुदूरवर्ती क्षेत्र की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार करना है।

विभिन्न राज्यों के 23 युवा शामिल

देश में सेना का यह इस तरह का पहला अभियान है। इसमें देश के विभिन्न राज्यों के 23 युवा शामिल हैं। समुद्रतल से 12 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित इस सुदूरवर्ती क्षेत्र में इनका दो माह का प्रशिक्षण तीन अप्रैल को शुरू हुआ, जो चार जून तक चलेगा।

इसके बाद प्रशिक्षुओं को सात दिन के विशेष अभियान से गुजरना पड़ेगा, जिसमें हुनर के साथ उनकी क्षमता परखी जाएगी। इस दौरान वह समुद्रतल से 18,600 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित अमृत गंगा ग्लेशियर को पार करेंगे। यह अभियान 10 जून को घांघरिया से शुरू होगा और 16 जून को इसका समापन होगा।

भारत-चीन के बीच उत्तराखंड में 345 किमी लंबी सीमा है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में सीमा क्षेत्र के कई गांवों को खाली करा दिया गया था। इनमें से कई गांव आज भी निर्जन हैं। देश की सीमा से लगे ये गांव द्वितीय रक्षा पंक्ति का काम करते थे।

केंद्र सरकार ने सीमांत गांवों के लिए वाइब्रेंट विलेज योजना भी शुरू की है। इसके पीछे ध्येय यह भी है कि देश के अधिकांश युवा ऐसे सुदूरवर्ती क्षेत्रों की चुनौतियों से रूबरू हों और विषम परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए स्वयं को तैयार करें।

शीतकाल में निर्जन हो जाते हैं नीती-मलारी घाटी के गांव

चमोली जिले में भारत-चीन सीमा से लगी नीती-मलारी घाटी में नीती, बाम्पा, फरकिया, कैलाशपुर, गुरगुटी, गमसाली समेत दर्जनभर से अधिक गांव हैं। शीतकाल में ये गांव बर्फ की चादर ओढ़ लेते हैं। ऐसे में यहां के निवासी निचले इलाकों में प्रवास पर चले जाते हैं।

ग्रीष्मकाल के दौरान वह फिर घाटी में लौट आते हैं। इस अभियान का एक उद्देश्य सीमावर्ती गांवों को जीवंत करना भी है, ताकि पलायन कर चुके लोग वापस अपने गांव लौट सकें। इन गांवों में पर्यटन गतिविधि बढ़ाने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार कई योजनाएं चला रही हैं। जिससे यहां के निवासियों को रोजगार मिले और उनकी आर्थिकी मजबूत हो।

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