खत्म होंगे टोल प्लाजा, अब ऐसे होगा टोल संग्रह…

भविष्य में टोल प्लाजा के बगैर भी टोल संग्रह संभव होगा। एनएचएआई टोल संग्रह की पांच नई तकनीकों पर विचार कर रहा है। इनमें एक तकनीक जीपीएस/जीपीआरएस आधारित ई-टोलिंग की है। इसमें ईंट-गारे से बने टोल प्लाजाओं की जरूरत नहीं पड़ती। बल्कि ये काम कंप्यूटर के जरिए कंट्रोल रूम में बैठ कर किया जा सकेगा।

इस प्रणाली की खास बात ये है कि वाहन चालक को केवल चली गई दूरी का टोल अदा करना पड़ेगा। मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग में अगले टोल प्लाजा तक की दूरी, अर्थात 60 किलोमीटर के लिए टोल अदा करना पड़ता है। मौजूदा प्रणाली तभी सुविधाजनक है जब प्रत्येक वाहन में फास्टैग लगा हो। तमाम प्रयासों के बावजूद अभी तक केवल 35 लाख वाहन स्वामियों ने फास्टैग खरीदा है।

ज्यादातर वाहन अभी भी बिना फास्टैग के हैं, जिन्हें इलेक्ट्रानिक गेट के बजाय सामान्य गेटों से गुजरना पड़ता है और नगद भुगतान करना पड़ता है। इसमें समय लगने से अक्सर टोल प्लाजाओं पर वाहनों की कतारें देखने को मिलती हैं। वर्चुअल प्लाजा इन सारे झंझटों से निजात देगा। इससे एनएचएआई को भी लाभ होगा। क्योंकि अनेक टोल प्लाजा बनाने और चलाने के बजाय केवल एक वर्चुअल प्लाजा पर खर्च करना होगा।

एनएचएआई ने इस प्रणाली को आजमाने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके प्रारंभिक परिणाम उत्साहवर्धक हैं।इस तकनीक में जीपीएस के जरिए वाहनों के हाईवे में प्रवेश और निकासी पर निगरानी रखी जाती है। इसके आधार पर वाहन जितनी दूरी तय करता है उतना टोल वाहन के प्रीपेड कार्ड से वसूला जाता है।

एनएचएआई टोल संग्रह की चार अन्य तकनीकों पर भी विचार कर रहा है। इनमें एक तकनीक एनएफसी यानी “नियर फील्ड कम्युनिकेशन कार्ड” की है। इसमें वाहन चालकों को टोल गेट पार करने के लिए मेट्रो जैसे प्रीपेड कार्ड का इस्तेमाल करना पड़ता है। टोल गेट के स्क्रीन पर कार्ड को टच कराते ही टोल राशि कट जाती है।

तीसरी तकनीक एएनपीआर अर्थात “आटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्नीशन सिस्टम” की है। इसमें वाहनों की नंबर प्लेट पढ़ने वाली मशीनों के जरिए आटोमैटिक टोल संग्रह होता हैं। चौथी तकनीक “मल्टी लेन फ्री फ्लो यानी एमएलएफएफ” नाम से जानी जाती है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग को सभी लेनों में लागू किया जाता है।

 

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