8 महीने पानी में डूबा रहता है ये मंदिर, यहाँ पांडवों ने बनाई थी स्वर्ग की सीढ़ियां

हमारा देश अध्यात्म और आस्था का केंद्र माना जाता है.. यहां के हर राज्य, हर क्षेत्र में कई सारी ऐसी जगहें हैं जिनका अपना पौराणिक महत्व रहा है। आज हम आपको ऐसे ही एक विशेष मंदिर के बारे बता रहे हैं.. जिसकी कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है। साथ ही इस हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित इस मंदिर एक विशेषता ये भी है कि ये साल के आठ महीने पानी में डूबे रहता है। चलिए आपको विस्तार से इस मंदिर की सभी विशेषताओं के बारे में जानते हैं।

महाभारत की कहानी तो हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं.. कुछ लोग इसे जहां सिर्फ एक लिखा हुआ ऐतिहासिक ग्रंथ बताते हैं तो वही आज भी देश में ऐसे कई स्थान है जहां आज भी इससे जुड़े प्रमाण मिलते हैं .. आज हम जिस मंदिर के बारे में आपको बता रहे हैं उसका सम्बंध भी महाभारत से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इसका निर्माण महाभारत काल में पाण्डवो के द्वारा ही हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिरों को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान बनवाया था और वो भी सिर्फ एक रात में। साथ ही इसके बारे में ये भी कहा जाता है कि पांडवों ने यहां स्वर्ग के लिए सीढ़ी बनवाने का भी प्रयास किया था, पर वो अधूरा रह गया था।

दरअसल कहा जाता है कि अज्ञातवास पर निकले पांडव जहां कहीं भी विश्राम के लिए रुकते थे, वहीं वो अपने रहने के लिए निर्माण कार्य शुरू कर देते थे… ऐसे में बाथू की लड़ी में मंदिर के निर्माण के दौरान उन्होंने स्वर्ग में जाने के लिए सीढ़ी बनाने का निर्णय लिया पर ये काम आसान नहीं था। इसलिए पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण से आग्रह किया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को वरदान दिया और उस वरदान के मुताबिक पांडवों को स्वर्ग की सीढ़ी बनाने के लिए 6 महीने का वक्त दिया गया.. और भगवान ने पूरे 6 महीने तक रात कर दिया।लेकिन पाण्डव फिर भी ये मंदिर नहीं बना सके।

 

वैसे ये सिर्फ एक मंदिर नही है बल्कि ये मंदिरो का पूरा समूह है .. जिसके साथ ये भी मान्यता जुड़ी है कि एक समय में यहां साक्षात भगवान शिव विराजमान रहे, ऐसे में पौराणिक महत्व रखने वाले इस मंदिर को देखने के लिए यहां हर साल हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं।आपको बता दें कि इस मंदिर तक पहुंचने का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है। गग्गल हवाई अड्डे से इस दिव्य मंदिर की दूरी की मात्र डेढ़ घंटे की है… ऐसे में पर्यटक रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से ज्वाली पहुंच सकते हैं और वहां से इस मंदिर की दूरी 37 किमी की है। सबसे विशेष बात कि लोग इस मंदिर में केवल मई-जून के महीने में ही जा सकते हैं क्योंकि बाकी महीने यह मंदिर पानी में डूबा रहता है।

 

दरअसल इस मदिंर के जलमग्न रहने का कारण पास में स्थित पोंग बाँध है, जिसका हमेशा पानी चढ़ता-उतरता रहता है। पोंग बांध के महाराणा प्रताप सागर झील में डूबे इस मंदिरों को बाथू मंदिर के नाम से जाना जाता है। वहीं स्थानीय लोग इसे ‘बाथू की लड़ी’ कहते हैं। इस मंदिर में गर्मी के मौसम में केवल चार महीनों के लिए बांध का जलस्तर कम होने पर पहुंचने योग्य होते हैं..ऐसे में साल के बाकी आठ महीने ये पानी में डूबे रहते हैं, ऐसे में यहां केवल नाव से ही पहुंचा जा सकता है।

 
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