शरीर के अंदर छिपने के लिए इस तरह कोरोना करता है बदलाव…

दुनियाभर में कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए वैक्सीन बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके इलाज के लिए नई दवाओं के साथ रिपरपजिंग दवाओं का ट्रायल चल रहा है। इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समेत तमाम एजेंसियों को कोरोना के जीनोम के बारे में जो सूचनाएं मिल रही हैं वे बहुत चौकाने वाली हैं। दुनिया भर के 62 देशों से इस वायरस के 5300 जीनोम्स का विश्लेषण हमें चौंकाता है।

गार्जियन के अनुसार स्पाइक (एस) प्रोटीन से संबंधित दो बड़े बदलाव देखे गए हैं। इनमें से एक बदलाव ने इटली में कहर बरपाया था। अब वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि कोरोना वायरस बहुत बड़ा छलिया है और उसे इंसानी शरीर बहुत रास आ रहा है। वह खुद को इंसानी शरीर में आराम से छिपने के साथ उसमें बदलाव कर रहा है। ऐसे में किसी भी वैक्सीन के कारण कोरोना के जीनोम सीक्वेंस में आने वाले बदलाव पर कड़ी नजर रखनी होगी।वैक्सीन बनाने के लिए दुनियाभर में वैज्ञानिक कोरोना के जीनोम सीक्वेंस पर नजर बनाए हुए हैं।

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उनकी नजर उसके एस प्रोटीन पर टिकी हुई है। अपने ताकतवर स्पाइक के कारण ही वह इंसानी शरीर से बेहतरीन तरीके से चिपक जाता है। गार्जियन के अनुसार कोरोना वायरस की ही फैमिली के कारण 2002 में सार्स फैला था लेकिन, उसके स्पाइक इतने ताकतवर नहीं थे। ऐसे में वैज्ञानिक कोविड-19 की इसी ताकत को खत्म कर देना चाहते हैं, जिसके बाद वह बहुत मामूली वायरस बन जाएगा। कोरोना वायरस हर देश और परिस्थिति में खुद में कुछ बदलाव कर रहा है। भारत में ही अब तक 52 सीक्वेंस कोरोना के जीनोम में पहचाने जा चुके हैं। इसी तरह अन्य देशों में हजारों छोटे-छोटे बदलाव इसके जीनोम सीक्वेंस में हो चुके हैं। हालांकि चीन से निकलकर दुनिया के 202 देशों में फैल चुके कोविड-19 के वायरस का मूलस्वरूप अब भी वही है।

वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि जीनोम सीक्वेंस की संख्या दस हजार के पार भी जा सकती है। कोरोना वायरस 29,903 न्यूक्लियोडाइट्स (जैविक पदार्थ) या न्यूक्लियस बेस से बना है। कोरोना के बाहर फ्नल की तरीके के सेंसर हैं, जिन्हें स्पाइक (एस) प्रोटीन कहते हैं। यह उसका मूल ढांचा है, अंदर वह लगातार बदलाव कर रहा है। इसको ऐसे समझ लीजिए कि 29000 से अधिक ईंटों से मिलकर एक घर बना है, कोई भी इसे कई तरह से बना सकता है। बस उसका मूल ढांचा बाहर से एक जैसा है। अंदर उसके बहुत से बदलाव हो सकते हैं।

कोरोना अपने बिल्डिंग ब्लॉक्स (न्यूक्लियोडाइट्स) में बदलाव कर रहा है। इन्हें रखने के तरीके को बदलता है। इसी बदलाव को जीनोम सीक्वेंस कहते हैं। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसिन ने कहा है कि म्यूटेशन के कारण कोरोना की विशेषता में आए बदलाव पर अभी अध्ययन किया जा रहा है। लेकिन यह पक्की बात है कि हर म्यूटेशन ने इसे फैलने में मदद की है।

प्रमुख शोधकर्ता प्रो. मार्टिन हिबार्ड का कहना है कि हमें दुनियाभर में कोरोना पर कड़ी नजर रखनी होगी, क्योंकि शोध बता रहा है कि यह खुद में तेजी से बदलाव कर रहा है। कोरोना में दो बड़े म्युटेशन अब तक हुए हैं। दोनों ही एस प्रोटीन से संबंधित हैं। एस प्रोटीन की वजह से ही कोरोना इंसान की कोशिका के एसीई2 और टीएमपीआरएसएस2 प्रोटीन से चिपक जाते हैं। एसीई2 को ज्यादा आसानी से कोरोना निशाना बनाता है। इसी कड़ी को वैज्ञानिक तोड़ना चाहते हैं। एस प्रोटीन में हुए एक बदलाव को 788 जीनोम सीक्वेंस में देखा गया, जबकि दूसरे म्यूटेशन को 32 जीनोम सीक्वेंस में देखा गया।

प्रो. मार्टिन हिबार्ड कहते हैं कि लोग वैक्सीन और इसके इलाज का पता लगाने की कोशिशों में जुटे हैं। सभी को पता है कि इसके एस प्रोटीन को निशाना बनाना है, क्योंकि यह बेहतरीन लक्ष्य है। हालांकि हमें बहुत सचेत रहना होगा कि वैक्सीन या फिर दवाओं के ट्रायल के दौरान कहीं इसमें कोई म्युटेशन न हो जाए।

ये बदलाव (अभी तक नोटिस किए जाए चुके) बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं। लेकिन यह हमें चेतावनी दे रहे हैं। भविष्य में होने वाले म्युटेशन खतरनाक हो सकते हैं। हमें अपना निगरानी तंत्र मजबूत करना होगा, ताकि किसी वैक्सीन या दवा के ट्रायल के दौरान कोई म्युटेशन न हो जाए।

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