इस भारतीय कंपनी का दावा, 6 महीने में बना लेंगे कोरोना की दवा

कोरोना वायरस को लेकर देश में दहशत के माहौल के बीच इस संक्रमण की दवा को लेकर बड़ी खबर आई है। अगर सब कुछ सही रहा तो भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनी सिप्ला अगले 6 महीने में लाइलाज कोरोना वायरस के उपचार के लिए दवा का बना लेगी। अगर ऐसा होता है तो स्वास्थ्य समस्याओं विशेषकर सांस लेने से जुड़ी दिक्कतों और फ्लू के बेहतर इलाज का ईजाद करने वाली मुंबई बेस्ड कंपनी सिप्ला भारत की पहली कंपनी हो जाएगी, जो कोविड-19 की दवा बनाएगी।

दरअसल, भारतीय दवा कंपनी सिप्ला वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) के साथ मिलकर कोविड-19 के उपचार के लिए दवा बनाने के लिए आगे आई है। कंपनी सरकारी प्रयोगशालाओं के साथ मिलकर कोरोना की दवा विकसित करने के साथ ही इस संक्रमण से सांस लेने से संबंधित तकलीफों में ली जाने वाली दवा, अस्थमा में ली जाने वाली एंटी वायरल दवाओं और एचआईवी की दवाओं के इस्तेमाल पर भी प्रयोग कर रही है। इसके लिए सिप्ला ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी से सक्रिय फार्मा अवयवों (एपीआई) को बनाने के लिए मदद मांगी है। 

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आईआईसीटी के निदेशक एस चंद्रशेखर और प्रमुख वैज्ञानिक प्रथम एस मेनकर ने कहा कि सिप्ला के अध्यक्ष वाईके हामिद ने उनसे एंटी वायरल कंपाउंड – फेविपिरावीर, रेमेडिसविर और बोलैक्सेविर तैयार करने के संबंध में संपर्क किया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में कई एंटी-वायरल दवाओं की खोज की गई थी, लेकिन मांग में कमी के कारण क्लिनिकल ट्रायल के बाद रोक दिया गया था।

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में सिप्ला दवा कंपनी के प्रमोटर यूसुफ हामिद ने कहा कि हम अपने सबी संसाधनों को देश के फायदे के लिए लगाना राष्ट्रीय कर्तव्य मान रहे हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी ने इन दवाओं का दोगुना उत्पादन कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि अगर भारतीय चिकित्सा फैटरनिटी निर्णय करता है तो कंपनी के पास और भी दवाएं हैं, जिसका इस्तेमाल फेफड़ों से जुड़ी गंभीर समस्याओं के इलाज में किया जा सकता है।

हामिद का कहना है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए एंटी वायरल कंपाउंड जैसे -फेविपिराविर, रेमिडेसिविर तथा बोलैक्सेविर का उत्पादन शुरू किया जाएगा। बता दें कि कोविड-19 अब तक एक लाइलाज बीमारी है और अब तक इससे दुनियाभर में करीब 11 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। कई देश इसके उपचार पर शोध कर रहे हैं। 

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