हरियाणा के इन किसानों ने कुछ इस तरह बदली अपनी किस्मत बदली
रोहतक। सोच, जज्बा आैर नए प्रयोग से हरियाणा के एक किसान ने कामयाबी की नई इबारत लिख दी। एमए पास 42 साल के किसान हरबीर सिंह ने परंपरागत खेती का मोह छोड़ नए प्रयोग किए और उनकी तकदीर बदल गई। कुरुक्षेत्र के गांव डाडलू के हरबीर देश ही नहीं विदेश में अपनी पहचान बना चुके हैं। वह ने परंपरागत खेती के स्थान पर जैविक सब्जियां उगाते हैं।
हरबीर ने साल २००० से सब्जियां उगाना शुरू किया। जैविक सब्जियां उगाने की राह में सबसे बड़ी अड़चन थी जैविक नर्सरी का न होना। हरबीर ने हार नहीं मानी और सारी बाधाओं को पार कर जैविक पौध उगाने लगे। उन्होंने नर्सरी के क्षेत्र में नए प्रयोग किए तो पहचान और सफलता मिलती गई। अब वह खासा कमा रहे हैं, साथ ही 200 से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं। इसमें 100 से अधिक महिलाएं शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने उन्हें नर्सरी तैयार करने के लिए बीते साल सम्मानित भी किया। पिछले दिनों रोहतक में आयोजित तृतीय कृषि नेतृत्व शिखर सम्मेलन-2018 में हरबीर को नर्सरी रत्न अवार्ड भी मिला है।
ऊपर टमाटर होगा काला, अंदर लाल
अब हरबीर की तैयारी है कि वह लाल के बजाय काले टमाटर का उत्पादन करें। उन्होंने प्रयोग करने के लिए 2000 काले टमाटर की पौध आस्ट्रेलिया से मंगवाई है। इस टमाटर की ऊपरी परत काली होगी, जबकि वह अंदर लाल ही होगा। काले टमाटर उत्पादन के बाद उम्मीद के मुताबिक बिके तो नए प्रयोग करेंगे और फिर बड़े उत्पादन का कारोबार करेंगे। हरबीर की जैविक पौधों की डिमांड पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश से लेकर इटली, आस्ट्रेलिया तक है।
परंपरागत खेती छोड़ी तो लोगों ने दिए ताने
जब हरबीर ने राजनीति विज्ञान से एमए किया तो उस समय रोजगार का एकलौता साधन खेती थी। इसलिए 1995 में खेती करना शुरू कर दिया। गेहूं की खेती में मन नहीं लगा। सन् 2000 में सब्जियों की खेती शुरू कर दी। 2005 में सब्जियों की पौध यानी नर्सरी खुद ही तैयार करने की शुरुआत की, वह भी पूरी तरह से जैविक। दो एकड़ जमीन से शुरू की गई खेती अब १४ एकड़ में फैल चुकी है।
पातली कलां के रणबीर ने भी लिखी कामयाबी की नई कहानी
पलवल (पातली कलां) के किसान रणबीर सिंह ने भी नई सोच और आधुनिक खेती से कामयाबी की नई कहानी लिखी है। वह आठ एकड़ में परंपरागत खेती करते थे। शुरुआत में उन्हें हर फसल में सात-आठ हजार रुपये एकड़ तक ही ही बचत थी। यहां तक कि वह कर्ज में भी डूब गए थे, लेकिन अब वह सालाना 45 लाख रुपये तक कमा रहे हैं। रणबीर ने बताया कि पहले वह गेहूं, धान से लेकर दूसरी परंपरागत खेती ही करते थे। 1996 में गांव के निकट ही किसी ने अमेरिकी कंपनी की मदद से पॉली हाउस तैयार कराया था। एक बार पॉली हाउस को देखने का मौका मिला तो अपना नजरिया ही बदल लिया और फूलों की खेती करने की ठानी। फैसले पर सभी ने अचरज जताया, लेकिन रणबीर के परिवार ने उनके फैसले को गंभीरता से लिया। फिलहाल इनके फूलों की डिमांड दिल्ली की बड़ी मंडियों में है।
आठ एकड़ में फूलों की खेती
रणबीर के बेटे ने बताया कि शुरुआत में दो एकड़ में फूलों की खेती करते थे, लेकिन अब आठ एकड़ में ग्लेड, गुलाब, लिली, रजनीगंधा, गुलदावरी, ब्रासिका आदि फूल खिलते हैं। परंपरागत खेती के चलते सिर्फ छह माह बाद ही कमाई होती थी। लेकिन फूलों की खेती से तो हर माह आमदनी हो रही है। परिवार के अलावा बाहरी लोगों को भी रोजगार मिल रहा है।