बिहार गया में मांझियों के हाथ में है गठबंधनों की पतवार

पटना। प्राचीन तीर्थ और शांति भूमि होने के अलावा इस बार गया संसदीय क्षेत्र की सियासी पहचान भी व्यापक होने वाली है। बिहार में दलितों की सबसे ज्यादा आबादी वाले इस क्षेत्र पर देशभर की निगाहें होंगी। माहौल बता रहा है कि दोनों गठबंधनों की ओर से कोई न कोई ‘मांझी’ ही प्रत्याशी होगा। जाहिर है, मंझधार में पतवारों की परीक्षा होगी और मुकाबला मजेदार होगा।बिहार गया में मांझियों के हाथ में है गठबंधनों की पतवार

टिकट के दावेदारों की कमी नहीं

चुनावी साल में प्रवेश करने से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने खेमा बदल कर गया को महत्वपूर्ण बना दिया है। अभी यहां से भाजपा के हरी मांझी सांसद हैं। पिछले चुनाव में राजद ने रामजी मांझी को टिकट दिया था, लेकिन नए संदर्भ में महागठबंधन में जीतनराम के आ जाने से रामजी की संभावना कमजोर हो गई है।

महागठबंधन की राजनीति में दोनों ओर से दावेदारों की कमी नहीं है।

हम प्रमुख ने कुछ दिन पहले चुनाव नहीं लडऩे का ऐलान करके राजद-कांग्रेस और हम के अन्य दावेदारों की बेताबी बढ़ा दी है। राजद-कांग्रेस दोनों की तैयारी है। कांग्रेस का दावा इसलिए है कि पिछले दो चुनाव से यहां राजद प्रत्याशी की हार होती रही है। कांग्रेस ने पूर्व सांसद रामस्वरूप राम के पुत्र शंकर स्वरूप, कुटुंबा के विधायक राजेश कुमार, गया के रामचंद्र दास एवं शिवशंकर चौधरी समेत नौ दावेदारों का नाम आगे बढ़ाया है, किंतु यह तभी संभव है जब राजद अपना दावा वापस लेकर गया को सहयोगी दलों की झोली में डाल दे।

राजद में बोधगया के विधायक कुमार सर्वजीत बड़े दावेदार हैं। पूर्व सांसद राजेश कुमार के पुत्र हैं और तेजस्वी के चहेते भी। वैसे रामजी मांझी भी कतार में हैं। सक्रिय भी। भाजपा के पूर्व सांसद ईश्वर चौधरी के पुत्र देव कुमार चौधरी ने भी लालटेन थाम लिया है। लालू तक अपनी बात भी पहुंचा दी है।

भाजपा के वर्तमान सांसद हरी मांझी के लिए दो-तरफा मुश्किलें आने वाली हैं। पहला तो पार्टी के अंदर टिकट के लिए मचलने वालों की सूची लंबी हो गई है। टेकारी के गनौरी मांझी का कद बढ़ाकर भाजपा ने हरी मांझी को सावधान कर दिया है। गनौरी को नित्यानंद की टीम में प्रदेश मंत्री बनाया गया है।

बोधगया वाले विजय मांझी भी पटना की दौड़ लगाने लगे हैं। हरी मांझी अगर किसी तरह टिकट बचाने में कामयाब हो गए तो उन्हें हम प्रमुख से मुकाबला करना होगा। जीतनराम ने भले ही बयान दिया है कि वह चुनाव लडऩे की दौड़ में नहीं हैं, किंतु तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री प्रत्याशी रहने पर उनके पास दिल्ली जाने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होगा। इसलिए उनका चुनाव लडऩा तय है। वैसे विधान पार्षद पुत्र संतोष सुमन की बात भी हवा में है, किंतु उनके लिए मुफीद बिहार की राजनीति ही होगी।

अतीत की राजनीति

गया से विज्ञेश्वर मिश्र, ब्रजेश्वर प्रसाद, रामधनी दास, ईश्वर चौधरी, रामस्वरूप राम, राजेश कुमार, भगवती देवी, कृष्ण कुमार चौधरी, रामजी मांझी, राजेश कुमार मांझी और हरी मांझी चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। चुनाव के दौरान ईश्वर चौधरी और राजेश कुमार की हत्या कर दी गई थी। ङ्क्षहदुओं और बौद्धों का अति प्राचीन तीर्थ गया को चंद्रवंशी राजा गय ने बसाया था। यह पिंडदान और तर्पण के लिए प्रसिद्ध है। मानपुर में 15 जनवरी 1761 को मुगल सम्राट शाह आलम की सेना के साथ अंग्र्रेजों का युद्ध हुआ था। 1857 में गया दस दिनों के लिए आजाद हो गया था। यह स्वामी सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन का केंद्र भी रहा है।

2014 के महारथी और वोट

हरी मांझी : भाजपा : 326230

रामजी मांझी : राजद : 210726

जीतनराम मांझी : जदयू : 131828

अशोक कुमार : झामुमो : 36863

देव कुमार चौधरी : निर्दलीय : 19651

विधानसभा क्षेत्र

शेरघाटी (जदयू), गया शहर (भाजपा), बाराचट्टी (राजद), बोधगया (राजद), बेलागंज (राजद), वजीरगंज (कांग्रेस)

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