अकेले रहने की आदत आपको बना देती हैं इस गभीर बीमार का शिकार

सुकून के कुछ पल पाने के लिए कभी-कभी तो अकेलापन ठीक है, लेकिन अकेले रहने की आदत ‘लाइफस्टाइल डिसऑर्डर’ है, जो दिलो-दिमाग को बीमार बना देती है। अकेलापन आपको न सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी बीमार बना सकता है। लंबे समय तक अकेले रहने से मेटाबॉलिज्म पर विपरित असर पड़ता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भी बुरी तरह प्रभावित होती है। यहां तक कि आप दिल संबंधी बीमारियों के शिकार भी हो सकते हैं। बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में किए गए अध्ययन के अनुसार, सामाजिक तौर पर सबसे मिलने जुलने और साथ रहने वाले लोग अकेलेपन के शिकार लोगों की तुलना में अधिक जीते हैं। इसमें शोधकर्ताओं ने 308,849 लोगों पर अध्ययन किया।अकेले रहने की आदत आपको बना देती हैं इस गभीर बीमार का शिकार

अकेलेपन से अवसाद, तनाव, व्याकुलता और आत्मविश्वास में कमी जैसी मानसिक समस्याएं तो होती ही हैं, लेकिन एक नवीनतम शोध में ऐसे तथ्य भी मिले हैं, जिससे पता चलता है कि लंबे समय तक अकेले रहने वाले व्यक्ति में शारीरिक बीमारियां होने के जोखिम भी बढ़ जाते हैं। यहां तक कि इससे कुछ बीमारियों के होने और आगे चलकर उनके खतरनाक रूप ले लेने की आशंका होती है।

मनोवैज्ञनिकों के अनुसार, ”अपनी इच्छा से अकेले रहना अलग बात है और समूह में रहते हुए भी अकेलापन महसूस करना पूरी तरह से एक अलग बात है।” हालांकि, शोधकर्ता यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि अकेलापन शरीर पर ऐसा क्या असर डालता है, जो लोगों को बीमारी और मौत की ओर धकेल देता है। स्तन कैंसर से पीड़ित 2800 महिलाओं पर किए गए एक शोध से पता चला कि ऐसी रोगी जो तुलनात्मक रूप से परिवार या दोस्तों से कम मिलती थीं, उनकी बीमारी से मौत की आशंका पांच गुना तक अधिक थी।

शिकागो यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया कि सामाजिक रूप से अलग-थलग लोगों की प्रतिरोधक क्षमता में बदलाव आने लगता है। फिर यही बदलाव उनमें स्थायी सूजन और जलन का कारण बनता है। यह सूजन लंबे समय तक रहे तो हृदयवाहिनी के रोग और कैंसर का कारण बन सकती है। शोध में शामिल डॉ जारेम्का के अनुसार, ”लंबे वक्त तक डॉक्टरों को यह समझने में दिक्कत हुई कि अकेलेपन का स्वास्थ्य पर कितना प्रभाव पड़ता है। अब हम जानते हैं कि मरीज के सामाजिक बर्ताव को समझना कितना जरूरी है।”

बड़ी संख्या में स्वस्थ लोगों में सुबह और शाम के वक्त कोर्टिसोल की मात्रा की जांच कर वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि अकेलेपन का शिकार लोग रोजमर्रा के कामों को अधिक तनावकारी पाते हैं। डॉ जारेम्का कहती हैं, “अकेले होने का मतलब शारीरिक रूप से अकेले होना नहीं, बल्कि जुड़ाव महसूस न होना या परवाह न किया जाना भी है। हमें अकेलेपन के शिकार लोगों की मदद का तरीका ढूंढना होगा। दुर्भाग्य से हम सबको यह नहीं कह सकते कि बाहर निकलो और अपनी दुनिया बदलो। हमें इसके सहायक नेटवर्क बनाने की जरूरत है।”

अकेले रहने से मेटाबॉलिज्म बिगड़ जाता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही, शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसे लोगों की शारीरिक क्रियाकलाप कम हो जाती है। दिमाग के काम करने का अलर्टनेस, ध्यानपूर्वक काम करने की क्षमता आदि प्रभावित होती है। ऐसा व्यक्ति अपने आसपास के सामाजिक वातावरण से कट जाता है। समय, स्थान या व्यक्ति विशेष से उसका संबंध खत्म हो जाता है। ऐसा व्यक्ति खुद में ही सीमित होता है। अकेलेपन के शिकार व्यक्ति में कोर्टिसोल नामक हार्मोन का निर्माण ज्यादा होता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। लंबे समय तक अकेले रहने से इंडोक्राइम सिस्टम प्रभावित होता है, जिसका असर कार्डियोवस्कुलर सिस्टम पर पड़ता है और हृदय संबंधी बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।

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