एंटी एजिंग नाम की बीमारी स्किन को पहुंचाती है नुकसान

इन्ट्रिंसिक एजिंग जैसा कि नाम से जाहिर है यह अंदरूनी कुदरती एजिंग प्रक्रिया से संबंधित है, जो अनिवार्य है और लगातार होती है। यह हमारे 20 के दशक के मध्य से ही शुरू हो जाती है जब हमारे शरीर की कुदरती पुनर्निर्माण (रिजेनेरेटिव) प्रक्रिया धीमी पड़ने लगती है। त्वचा की पुरानी एपिडर्मल सेल्स नयी सेल्स द्वारा बदलने की गति धीमी हो जाती है कोलेजेन और इलास्टिन की कमी होने से त्वचा में शिथिलता शुरू हो जाती है। कोलेजेन और इलास्टिन, प्रोटीनों के प्रकार हैं जो शरीर की त्वचा और टिश्यूज में पाये जाते हैं। ये त्वचा को मज़बूत बनाये रखने में और लचीलेपन में क्रमशः सहायक होते हैं। ये बदलाव वर्षों तक नजर ही नहीं आते क्योंकि ये बहुत धीमी गति से होते हैं। इन्ट्रिंसिक एजिंग पर जेनेटिक्स और अंदरूनी कारणों जैसे हार्मोन स्तरों का असर पड़ता है।एंटी एजिंग नाम की बीमारी स्किन को पहुंचाती है नुकसान

क्या है एजिंग और इसका उचार

एक्सट्रिंसिक एजिंग या बाहरी कारणों से होने वाली एजिंग, एजिंग की नार्मल प्रक्रिया से जुड़कर हमारी त्वचा पर समय से पहले उम्र का असर दिखाने लगती है। प्री-मेच्योर एजिंग के सबसे कॉमन बाहरी कारणों में शामिल हैं- सन एक्सपोजर (फोटो-एजिंग) और स्मोकिंग। अन्य बाहरी कारणों में हैं बार-बार दोहराए जाने वाले फेशियल एक्सप्रेशंस, स्लीपिंग पोजिशंस और ग्रेविटी।

जैसे-जैसे हम बडे होते हैं, 50 की उम्र के बाद त्वचा में पतलापन आने लगता है और आंखों के आसपास और माथे पर फाइन लाइन्स (फाइन लाइन्स) बनने लगती हैं जो बार-बार दोहराए जाने वाले फेशियल मूवमेंट्स के कारण बनती हैं। त्वचा और मसल्स के बीच फैटी टिश्यूज कम होते जाते हैं (सबक्यूटानियस सपोर्ट) जो उभरे गालों और आंखों के सॉकेट्स के रूप में मौजूद होते हैं और गर्दन तथा हाथों में भी कसावट कम हो जाती है। घटती रक्त वाहिनियों के कारण त्वचा अपनी आभा खो बैठती है। इन बदलावों के अलावा ग्रेविटी अपनी भूमिका निभाती है और त्वचा शिथिल होती जाती है।

यह पतली हो जाने वाली त्वचा नाजुक और असुरक्षित हो जाती है और नार्मल हीलिंग में काफी वक्त लगने लगता है। रिंकल्स, फाइन लाइन्स आदि सभी क्षतिग्रस्त त्वचा की ही विशेषताएं हैं। एजिंग के साथ सीबम तैयार करने वाली ग्रंथियां कम काम करती हैं जिससे त्वचा ड्राइ, संवेदनशील और आसानी से डैमेज हो सकने वाली हो जाती है। आपकी त्वचा पर मोल्स(तिल) को किसी दिखावटी बदलाव जैसे कि आकार-प्रकार में बदलाव, ब्लीडिंग और खराश आदि के लिये जांचना चाहिये। किसी बदलाव के होने पर डॉक्टर से सलाह लें क्योंकि यह त्वचा कैंसर का शुरूआती लक्षण हो सकता है।

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