महाराष्ट्र में उग्र हुआ किसानों का आंदोलन, इस तरह हुई दूध टैंकरों की सप्लाई
जानकारी के मुताबिक, स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता एवं सांसद राजू शेट्टी ने आधी रात को पंढरपुर में विट्ठल रुक्मिणी मंदिर के सामने आंदोलन किया। इसके बाद पुणे के प्रसिद्ध दगडू सेठ गणपति मंदिर में दुग्धाभिषेक करने के साथ राज्यभर में आंदोलन शुरू किया गया। अमरावती में आंदोलनकारियों ने टैंकर में तोड़फोड़ की जबकि नासिक में दुग्ध संकलन केंद्रों पर किसानों से दूध नहीं लिया गया।
पुणे के आंबेगांव में गोवर्धन दूध के टैंकर तोड़ दिए गए। मुंबई से सटे विरार में अमूल दूध की आपूर्ति रोक दी गई। किसानों ने शाहूनगर और इचलकरंजी में दूध मुफ्त में बांटा। पुणे, अमरावती, नासिक, अहमदनगर, नागपुर और कोल्हापुर सहित कई इलाकों में आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच टकराव की स्थिति बनी। आंदोलन के कारण मुंबई जाने वाले वाशी महामार्ग पर पूरी तरह जाम लग गया।
किसान संगठन के 100 से अधिक कार्यकर्ता हिरासत में
नासिक आंदोलन कर रहे स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के 100 से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। वहीं, कभी राजू शेट्टी के सहयोगी रहे सूबे के कृषि राज्यमंत्री सदाभाऊ खोत ने आंदोलन की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि हमें पता है, दूध में कितना पानी है।
विधानसभा में भी उठा मामला
नागपुर में चल रहे महाराष्ट्र विधानमंडल मानसून सत्र में भी आंदोलन की गूंज सुनाई दी। भारी शोरगुल और हंगामे की वजह से विधानसभा और विधान परिषद की कार्यवाही स्थगित कर देनी पड़ी। विपक्ष ने कहा कि सरकार कर्नाटक की तरह दूध उत्पादक किसानों को पांच रुपये की प्रोत्साहन राशि सीधे उनके खाते में जमा कराने का बंदोबस्त कराए।
पुलिस सुरक्षा के बीच मुंबई भेजे दूध के टैंकर
पुलिस की कड़ी सुरक्षा में नासिक और अहमदनगर से 15 जबकि कोल्हापुर से 12 दूध के टैंकर मुंबई भेजे गए। दुग्ध विकास मंत्री महादेव जानकर ने कहा कि मुंबई सहित अन्य शहरों में दूध की आपूर्ति में कमी नहीं आने दी जाएगी। शहरों में पुलिस सुरक्षा के बीच दूध पहुंचाने का काम किया जाएगा।
आंदोलनकारियों से बातचीत को तैयार : फडणवीस
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि सरकार आंदोलनकारियों से बातचीत के लिए तैयार है। दूध उत्पादकों को दी जाने वाली मदद राशि सीधे उनके बैंक खाते में जमा करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि केवल 40 फीसदी किसान सहकारी दुग्ध संघों को दूध बेचते हैं जबकि 60 फीसदी संकलन निजी डेयरी के जरिए होता है। इसका सरकार के पास कोई हिसाब नहीं होता है। किसानों को सीधे मदद देने से भारी घोटाला सामने आ सकता है। आंदोलन का यह तरीका ठीक नहीं है।