कुछ इस तरह सोशल मीडिया पर हीरो बन गए लखनऊ के पासपोर्ट अधिकारी

लखनऊ। सूबे की राजधानी लखनऊ में इन दिनों तन्वी सेठ उर्फ सादिया अनस के पासपोर्ट प्रकरण की चर्चा सोशल मीडिया पर जोरदार ढंग से जारी है। इस पासपोर्ट के प्रकरण में अपनी ईमानदारी तथा कर्तव्यपरायणता की मिसाल पेश करने वाले वरिष्ठ अधीक्षक विकास मिश्रा सोशल मीडिया पर हीरो बन गए हैं।कुछ इस तरह सोशल मीडिया पर हीरो बन गए लखनऊ के पासपोर्ट अधिकारी

तन्वी सेठ प्रकरण के कारण गोरखपुर का तबादला झेलने वाले विकास मिश्रा यूं ही सोशल मीडिया में नहीं छा गए। लखनऊ में तन्वी के पासपोर्ट आवेदन के दौरान कई कॉलय में विकास मिश्रा की आपत्ति पर पहले भले ही जबरदस्त हंगामा हुआ, लेकिन धीरे-धीरे जिस तरह इस पूरे मामले की परतें खुलीं वैसे-वैसे इस अफसर की काबिलियत का लोग लोहा मानने लगे।

लखनऊ की तन्वी सेठ उर्फ सादिया अपना नया पासपोर्ट बनवाना चाहती थीं, लेकिन धर्मातरण के कारण वह कुछ जानकारियां देने से बच रही थीं। जब अपनी ड्यूटी करते हुए विकास मिश्र ने उनके आवेदन को लेकर कुछ आपत्तियां उठाईं तो सादिया ने उन पर धार्मिक भेदभाव के गंभीर आरोप लगा दिए। विकास मिश्र अपनी बात पर कायम रहे और आज स्थिति यह है कि उनकी आपत्तियां कुल मिलाकर सही साबित होती नजर आ रही हैं।

यह पूरा मामला जिस तरह सामने आया उसमें विकास मिश्र को सोशल मीडिया पर जबरदस्त साथ मिला। ऐसा हो भी क्यों नहीं, विकास मिश्र को करीब से जानने वाले लोग अच्छी तरह जानते हैं कि उनका जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनके वाट्सअप प्रोफाइल के साथ पंक्ति ‘सरलता ही जीवन का आधार है’ उन्होंने खुद लिखी और उसे अपने जीवन में आत्मसात किया।

मेधावी छात्र रहे विकास मिश्र का सपना आइएएस-आइपीएस बनने का था। उनके बैच के साथी इस मुकाम तक पहुंच भी गए, लेकिन पिता की मौत के बाद चार वर्ष तक कभी पेंट बेचकर तो कभी और छोटे काम करके विकास ने अपने कॅरियर की दिशा तय की। उन्होंने 750 रुपये की स्कालरशिप से लखनऊ के काल्विन ताल्लुकेदार्स कॉलेज से हाईस्कूल व इंटर की पढ़ाई की।

इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से गणित से बीएससी व एमएससी की। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर ही रहे थे कि 1988 में पिता की मौत हो गई। चार वर्ष तक घर का खर्च चलाने के लिए छोटे-मोटे काम किए। 1992 में कस्टम व सेंट्रल एक्साइज में नौकरी मिल गई। यहां दस महीने काम करने के बाद विकास मिश्र का कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा में सफलता के बाद पासपोर्ट विभाग में चयन हो गया। इन 25 वर्ष के दौरान पासपोर्ट ग्रांट करने की उनकी कार्यकुशलता विभाग ने भी मानी।

मार्च 2012 में जब गोरखपुर पासपोर्ट सेवा केंद्र खोला गया तो वहां पहली तैनाती विकास मिश्र की ही हुई। इसके बाद गोरखपुर की तरह वाराणसी और कानपुर पासपोर्ट सेवा केंद्र में विकास मिश्र ने अपना काम बखूबी अंजाम दिया। 

आइएस की लड़ाई के बीच जाना था इराक

इराक में जब 2014 में आइएस की क्रूरता चरम पर थी, उस समय वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित वापस भेजने के लिए विदेश मंत्रलय ने पासपोर्ट विभाग की एक टीम वहां भेजने का निर्णय लिया था। लखनऊ से केवल विकास मिश्र ही थे। वह दुबई तक पहुंच गए थे, लेकिन आगे जाने की अनुमति ऐन वक्त इराक की ओर से नहीं मिली। उनको वहीं से वापस लौटना पड़ा।

सादगी से निपटाते हैं काम

विकास मिश्र के साथ करने वाले सहयोगियों की मानें तो वह कभी तनाव नहीं लेते। नियमों की जानकारी उनको सबसे अधिक है। जिस दिन 20 जून को तन्वी सेठ उर्फ सादिया रतन स्क्वायर स्थित पासपोर्ट कार्यालय में अपना पासपोर्ट आवेदन करने गई थीं उसी दिन एक 78 वर्ष की वृद्ध महिला को अकेले बाहर खड़ा देख विकास मिश्र उनको सम्मान के साथ भीतर लेकर गए। वृद्ध महिला ने बताया कि उनकी बेटी भी साथ आई है। इस पर विकास मिश्र ने बेटी को भी भीतर बुलाया और आवेदन प्रक्रिया को पूरा कराया। इसी तरह सैकड़ों लोग उनके काम के मुरीद हैं।

होली-दीवाली से ज्यादा गहरी ईद की मिठास

विकास मिश्र पर भले ही धार्मिक भेदभाव का आरोप लगा हो, लेकिन लोग बताते हैं कि उनको जितना होली की गुझिया और दीपावली की मिठाई का स्वाद भाता है उतना ही वह ईद आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। विकास की पुरानी दोस्ती अमीनाबाद, कसाई बाड़ा और गणोशगंज जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले शोएब और इदरीस जैसे मित्रों से है। 

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