जोश में नियम भूलकर सिद्धू ने मेयर को पहले किया निलंबित और फिर लेना पड़ा वापस

चंडीगढ़। पूर्व क्रिकेटर और पंजाब के स्‍थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू जोशिेले नेता हैं और अपने खास अंदाज के लिए मशहूर हैं। इसी जोश में उनको मोहाली के मेयर के मामले में नियमों का ध्‍यान नहीं रहा और उन्‍हें निलंबित करने का आदेश कर दिया। नियमानुसार मेयर को सरकार निलंबित नहीं कर सकती। उसे बनाने का हटाने का फैसला नगर निगम सदन ही कर सकता है।जोश में नियम भूलकर सिद्धू ने मेयर को पहले किया निलंबित और फिर लेना पड़ा वापस

जब सिद्धू का इस ओर ध्‍यान गया तो निलंबन का फैसला वापस लेकर मेयर को नोटिस जारी किया गया। बता दें कि सिद्धू ने लाखों रुपये के अनियमितता के आरोप में वीरवार को मोहाली के मेयर कुलवंत सिंह काे निलंबन का आदेश जारी किया था। देर शाम सरकार ने फैसला वापस ले लिया और उनको नोटिस भेज दिया। नगर निगम एक्ट 1976 के तहत मेयर को असीमित अधिकार दिए गए हैं। 

मेयर के चयन व हटाने का फैसला सदन ही कर सकता है, नगर निगम एक्ट 1976 के तहत असीमित अधिकार

मेयर के चयन नगर निगम सदन करता है और उसे हटाने का अधिकार भी इस सदन को ही है। अगर सरकार ऐसा कदम उठाती हे आैर मेयर के समर्थन में दो तिहाई पार्षद होते हैं तो सरकार को यह फैसला उल्टा पड़ सकता है। यही वजह रही कि जब जागरण ने इस बारे में स्‍थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू से इस बारे में पूछा तो चार घंटे में ही मेयर के निलंबन का फैसला वापस ले लिया गया।

इसके बाद कुलवंत सिंह को कारण बताओ नोटिस भेज कर 21 दिनों में जवाब देने को कहा। अगर 21 दिनों में कुलवंत सिंह अपना जवाब दे देते हैं और सरकार उससे संतुष्ट होती है तो उनके खिलाफ मामला खत्म हो जाएगा। अगर सरकार संतुष्ट नहीं होती है तो भी उन्हें पद से हटाने का अधिकार सरकार के पास नहीं है। यह नगर निगम की मंजूरी के बाद ही संभव है। हाउस ने मेयर को निलंबित नहीं कर सकता है, बल्कि उसे बहुमत के अाधार पर पद से हटा सकता है।

नोटिस देकर पार्षद पद से हटा सकती है सरकार

नगर निगम के एक्ट 1976 की धारा 36 के तहत किसी भी पार्षद के खिलाफ भ्रष्टाचार या सामाजिक तौर पर किसी अपराध में शामिल होने की पुष्टि होने के बाद सरकार के पास यह अधिकार है कि वह उसे नोटिस देकर पार्षद पद से हटा सकती है। एक्ट के एक्सपर्ट निगम के रिटायर अधिकारी एएस सोंधी कहते हैं कि ऐसे मामले में नोटिस देने के बाद उससे संतुष्ट न होने पर सरकार पार्षद का निलंबन कर सकती है।

कुलवंत ने लड़ा था लोकसभा चुनाव

मेयर कुलवंत सिंह ने अकाली दल की टिकट पर फतेहगढ़ साहिब से 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। चुनाव हारने के बाद अकाली दल के साथ मोहाली निगम चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर मतभेद हो गए थे। कुलवंत ने अपना आजाद ग्रुप बनाकर 11 पार्षदों के साथ हाउस पहुंचे थे। कांग्रेस का समर्थन अंदरखाते लेकर वह मेयर बनने में सफल रहे थे। मौजूदा समय में हाउस के 50 में से 36 पार्षद अकाली-भाजपा के हैं और 14 कांग्रेस के हैं। अब अगर हाउस में अकाली दल ने कुलवंत का साथ न दिया तो उनकी किरकिरी होना तय है। 

बड़े नेताओं के साथ हैं अच्छे संबंध

कुलवंत सिंह के कांग्रेस व अकाली-भाजपा में तमाम बड़े नेताओं के साध मधुर संबंध बताए जाते हैं। एक दशक से ज्यादा समय से मोहाली व आसपास के इलाकों में रीयल स्टेट के कारोबार में भी कुलवंत का खासा दबदबा रहा है। यही वजह है कि सरकार अब इस मामले में आनन-फानन में कार्रवाई के बाद आगे की कार्रवाई कानूनी माहिरों की राय लेकर कर रही है।

खरीद में सदन की मंजूरी नहीं ली इसलिए फंस सकते हैं

पूरे मामले में मेयर के तौर पर कुलवंत सिंह बच जाते, लेकिन उन्होंने मशीन की खरीद के मामले को नगर निगम सदन से पास नहीं करवाया है। सदन की मंजूरी के बिना मशीन खरीद संबंधी फाइल उन्होंने मेयर के विवेकाधीन अधिकारों के तहत तैयार करवाई और कमिश्नर ने साइन कर दी। अगर इस मामले में सदन ने मंजूरी दी होती और इसके खरीद का फैसला होता तो मेयर बच जाते।

लटका है आईएएस अफसरों के निलंबन का मामला

नवजोत सिद्धू ने इससे पहले आईएएस अफसर सोनाली गिरी, जीएस खैरा व घनश्याम थोरी और जालंधर, अमृतसर व लुधियाना नगर निगम के चार सुपरिंटेंडेंट (एसई) को सस्पेंड कर दिया था। उन्होंने इसका सीधा आदेश जारी कर दिया था, लेकिन आईएएस लॉबी के दबाव में अभी तक तीनों अफसरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकी है। जालंधर, अमृतसर व लुधियाना के एसई के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई को अदालत में चुनौती दी गई है।

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