रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा चला तो रेलवे की आमदनी पर पड़ेगा बड़ा असर, फंस जाएंगे कंटेनर

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के बाद इसका असर रेलवे की आमदनी पर भी पड़ेगा। ट्रेन के माध्यम से हरियाण, पंजाब से कंटेनर रेल टर्मिनल (सीआरटी) से गुजरात के मुंदरा बंदरगाह (पोर्ट) तक पहुंचाए जाते हैं। यहीं से समुद्री जहाजों की मदद से दवाएं, चावल, कपड़ा, साइंस उपकरण आदि यूक्रेन तक पहुंचाए जाते हैं। इन कंटेनरों को पंजाब के चावा पायल, ढंढारी कलां, साहनेवाल और हरियाणा के पानीपत में बने कंटेनर शेड तक पहुंचाए जाते हैं। यदि युद्ध लंबा चला तो अंबाला और फिरोजपुर मंडल की आमदनी पर असर पड़ेगा। रेलवे की आमदनी मालभाड़ा और कंटेनर के माध्यम से ही होती हैं। रेलवे आकलन करने में जुट गया है कि अब तक जो सामान गुजरात तक पहुंचाया गया है, उसकी स्थिति क्या है। यदि यूक्रेन की स्थिति और बिगड़ी तो बंदरगाह पर भी कंटेनर रखने मुश्किल होंगे।

हरियाणा व पंजाब से करीब बीस हजार कंटेनर प्रतिमाह जाते हैं। एक कंटेनर (बीस फीट) का किराया चालीस हजार रुपये के करीब है। यदि कंटेनर बड़ा (करीब चालीस फीट) का किराया 75 हजार रुपये है। बता दें कि पंजाब में पटरी और रेलवे सीमा के आसपास चले लंबे समय चले किसान आंदोलन से रेलवे को करीब 22 करोड़ 58 लाख रुपये का नुकसान हुआ था। सबसे बड़ा क्षेत्र दिल्ली, पंजाब, हरियाणा रहा था। इसका असर रेलवे की आय पर पड़ा था। उस समय भी सामान से लदे 13500 कंटेनर लुधियाना के ढंढारी कलां में अटके रहे थे। अभी इस घाटे से रेलवे उबर रहा था कि अब फिर से उसकी आमदनी पर असर पड़ सकता है।

करोड़ों की दवाइयां भेजी थी यूक्रेन

अंबाला से यूक्रेन के लिए कोरोना काल में काफी दवाएं भेजी गईं थीं। कोविड काल में करीब 35 लाख रुपये की दवाइयां भेजी थीं। अब जो स्थिति है, उससे दिख रहा है कि फार्मा उद्योगों पर भी इसका असर पड़ सकता है। यदि हालात ज्यादा बिगड़ते हैं, तो यूक्रेन के साथ लगते देशों को भी दवा सप्लाई में दिक्कतें होंगी। मैकनील एंड आग्रस फार्मास्यूटिकल के मालिक जीडी छिब्बर ने बताया कि अंबाला, हिमाचल से काफी दवाएं यूक्रेन भेजी गई थीं। साल 2020-21 में छिब्बर की फर्म ने करीब 52 करोड़ की दवाओं की सेल की थी। उन्होंने बताया कि साल 1996 में 2.3 मिलियन क्विंटल चावल भी यूक्रेन भेजे थे।

साइंस उपकरण भी होते हैं निर्यात

अंबाला से साइंस उपकरण भी यूक्रेन सहित आसपास के देशों में सप्लाई किए जाते हैं। जिस तरह से यूक्रेन संकट गहरा रहा है, उससे साइंस इंडस्ट्री पर भी पड़ सकता है। उद्योगपति संजीव गुप्ता ने बताया कि अंबाला की साइंस इंडस्ट्री का करीब 85 प्रतिशत डोमेस्टिक सप्लाई है। इसके अलावा एक्सपोर्ट भी होता है। यूक्रेन या इसके आसपास के देशों की बात करें, तो यहां पर भी उपकरण सप्लाई करते हैं। यदि यह संकट लंबा चलता है, तो इसका असर साइंस उद्योग पर भी पड़ेगा।

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