RSS चीफ मोहन भागवत के आगमन से सशंकित

लेखक: तारकेश्वर मिश्र
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत लगभग एक वर्ष के बाद पश्चिम बंगाल के तीन दिवसीय प्रवास पर आने वाले हैं। देश के विशेष सुरक्षा प्राप्त लोगों में शामिल होने के कारण उनके बंगाल प्रवास की सूचना स्थानीय प्रशासन को भी दी गयी है। इस सूचना के अनुसार भागवत आगामी 22 सितंबर को कोलकाता आयेंगे और 24 सितंबर तक कोलकाता में रहेंगे। यहां संघ के पदाधिकारियों के साथ संगठनात्मक बैठकों के बाद 25 सितंबर की सुबह वह ओडिशा प्रवास के लिए प्रस्थान करेंगे। देखा जाये तो यह एक सामान्य सूचना ही है। संघ से जुड़े संगठनों के कामकाज का जायजा लेने के लिए संघ के प्रमुख पहले भी बंगाल के दौरे पर आते रहे हैं। लेकिन राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेता भागवत के इस बार के आगमन को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। कारण यह है कि लोकसभा के पिछले चुनाव में भाजपा को मिली अप्रत्याशित सफलता का आकलन करने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने जिन्हें दायित्व दिया था, उसके अनुसार पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सफलता दिलाने में नरेन्द्र मोदी का नाम और स्वयंसेवक संघ के विस्तार की मुख्य भूमिका रही।
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बात कुछ सही भी लगती है। डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी का गृह राज्य रहने के बावजूद बंगाल में दशकों तक आरएसएस का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं रहा था, लेकिन अब स्थिति बदलने लगी है। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पश्चिम बंगाल में वर्ष 2010 तक लगभग 7 सौ शाखाएं थीं। 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद के केवल नौ वर्षों में पश्चिम बंगाल में संघ की सांगठनिक शक्ति लगभग तीन गुना बढ़ चुकी है। पहले केवल कोलकाता और कुछ जिलों तक सीमित संघ की शाखाएं अब राज्य के हर जिले में विस्तार पा चुकी हैं। ममता के सत्ता में आने के 5 साल बाद 2016 तक संघ शाखाओं की संख्या 1100 और 2019 के लोकसभा चुनाव तक लगभग 1400 हो चुकी थी। विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त सूचना के अनुसार अब यह संख्या 2000 तक पहुंच चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2016 के बाद से संघ की शाखाओं या संघ से जुड़े अन्य संगठनों का विस्तार पश्चिम बंगाल के उन सुविधाहीन ग्रामीण इलाकों में तेजी से हुआ है, जहां नागरिकों को शिक्षा समेत तमाम नागरिक सुविधाएं ठीक से नहीं मिल पा रही हैं।
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संघ के अनुशांगिक संगठन भी तेजी से प्रसार कर रहे हैं। राष्ट्रीय पर्व और त्यौहार से जुड़े आयोजनों से स्थानीय लोग बड़ी संख्या में जुड़ते जा रहे हैं। मोहन भागवत के कोलकाता प्रवास के बारे में आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि वह अपने प्रवास के दौरान संघ के सहयोगी संगठन आरोग्य भारती, शिक्षा भारती, क्रीड़ा भारती, सक्षम (शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए) और सेवा भारती के प्रमुखों के साथ बातचीत करेंगे। इन संगठनो के पदाधिकारी उन्हें बंगाल में अब तक की उपलब्धियों और समस्याओं से अवगत करायेंगे और साथ ही भविष्य की योजनाओं पर मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले आरएस प्रमुख पिछले साल 1 अगस्त, 31 अगस्त और 19 सितंबर को कोलकाता आये थे। प्रदेश के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार सरसंघचालक बंगाल के 341 ब्लॉकों में से प्रत्येक में कम से कम एक पूर्ण रूप से सक्रिय शाखा देखना चाहते हैं। वर्तमान में बंगाल में शाखाओं की संख्या बढ़ी है, लेकिन ये शाखाएं सभी राज्य के सभी प्रखंडों में समान रूप से नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं और संगठनों का तेजी से विस्तार होने के पीछे सबसे बड़ा कारण राज्य की बहुसंख्यक आबादी के मनोभाव में हो रहा परिवर्तन बताया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राज्य में 34 वर्षों तक सत्ता में रहे वाममोर्च की और इस सामय सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की नीतियाँ हमेशा से अल्पसंख्यक वोट पर पकड़ बनाये रखने की रही है। इससे उनका लगभग 30 प्रतिशत वोट बैंक सुरक्षित होता आया है। इस नीति का लाभ लेकर वामदलों ने राज्य में 34 वर्ष शासन किया और बाद में तृणमूल कांग्रेस ने इस नीति को आत्मसात कर लिया। माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विस्तार होने के बाद राज्य की लगभग 70 प्रतिशत बहुसंख्यक आबादी को अल्पसंख्यक वोट बैंक और राजनीतिक तुष्टीकरण के खिलाफ मुखर हो रही है।
बहुसंख्यक आबादी में पनप रही असुरक्षा की भावना का प्रतिफल लोकसभा के पिछले चुनाव में भी देखने को मिला था। सच कहा जाये तो केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को लगभग 40 प्रतिशत वोट और 42 में से 18 सीटें मिलने के पीछे का समीकरण भी इसी कारण से बन पाया था। अन्यथा भाजपा की बंगाल इकाई अपने नेतृत्व और संगठन के बल पर तब भी इतनी सीटें नहीं पा सकी थी जब 1992 के राम मंदिर आन्दोलन से बंगाल के लोग उद्वेलित थे और तब तपन सिकदर जैसे जनप्रिय नेता के हाथों में बंगाल भाजपा की कमान थी।
भागवत के आगमन से तृणमूल के नेताओं की बेचैनी के पीछे एक अन्य कारण संघ से जुड़े संगठनों और लोगों की जनस्वीकार्यता भी बताई जा रही है। राज्य में पिछले कुछ वर्षों के दौरान किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में संघ से जुड़े स्वयंसेवकों ने निःस्वार्थ सेवा से अपनी एक अलग छवि और पहचान बनाई है। चाहे वो बड़ाबाजार में पुल गिरने का हादसा हो या फिर हाल ही में तबाही बरपाने वाला अम्फान तूफान की विनाशलीला, निःस्वार्थ भाव से आम आदमी की मदद को तत्पर स्वयंसेवकों ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। एक तरफ भाजपा के नेता सत्ताधारी दल के लोगों और प्रशासन पर राहत कार्य में अडंगा डालने के आरोपों की झड़ी लगाते रहे तो दूसरी तरफ संघ से जुड़े लोग चुपचाप सेवा में लगे रहे। लाखों पीड़ितों की मदद की। न तो उन्होंने किसी के बारे में शिकायत की और न ही उनके बारे में किसी की शिकायत सुनी गयी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि बंगाल के प्रायः हर जिले में संघ के विस्तार ने अब जो गति पकड़ी है वो भागवत के आगमन से और तेज हो सकती है और यह निश्चित रूप से तृणमूल कांग्रेस के लिए चिंता का वाजिब कारण है।
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