कोरोना संक्रमित लोगो के लिए राहत भरी खबर, इस वैक्सीन से मौत का खतरा हुआ कम…

ट्यूबरक्लोसिस (तपेदिक) के खतरे से बचाने वाली सस्ती और बड़े पैमाने पर प्रयोग की जाने वाली दवा ‘बैसिलस कैलमेट-गुएरिन’ (बीसीजी) वैक्सीन कोरोना वायरस से संक्रमण और उससे होने वाली मौत को रोकने में भी प्रवाभी है। पिछले हफ्ते जारी किए गए दो अध्ययनों में इसकी समीक्षा की गई है। इसमें से एक अध्ययन का नेतृत्व दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक भारतीय शोधकर्ता ने किया है। 

जेएनयू के अध्ययन में पाया गया कि वैक्सीन बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बीसीजी स्ट्रेन पर सुरक्षा की गुणवत्ता निर्भर करती है। इस अध्ययन को ‘सेल डेथ एंड डिजीज’ में प्रकाशित किया गया था, जो ‘नेचर ग्रुप’ पत्रिका का हिस्सा है। 
वहीं, दूसरे अध्ययन को अमेरिका में किया गया है और इसमें भी बीसीजी वैक्सीन को कोविड-19 मौतों को कम करने में प्रभावी माना गया है। इस अध्ययन को ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ प्रकाशित किया गया। 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन के चेयरपर्सन और अध्ययन के लेखक गोबरधन दास ने कहा कि दुनिया के कई देशों में सामने आए 1000 से अधिक संक्रमण के मामलों पर किए गए विश्लेषण में पता चला कि जिन लोगों को भारत के अलावा अन्य देशों में बीसीजी वैक्सीन मिला, वे उन लोगों की तुलना में अधिक सुरक्षित पाए गए, जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी थी। 

उन्होंने कहा कि बीसीजी वैक्सीन से जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मिलती है, वो संक्रमण से बचने और उसकी गंभीरता दोनों को कम करने में मदद करेगी। 

भारत में 1949 से बच्चों को बीसीजी वैक्सीन लगाना शुरू किया गया था। 2019 में पैदा हुए 2.6 करोड़ बच्चों में से 97 फीसदी बच्चों को बीसीजी वैक्सीन लगाई गई। यह वैक्सीन बचपन में होने वाली टीबी और मेनिन्जाइटिस से बचाती है, लेकिन वयस्क फुफ्फुसीय टीबी से सुरक्षा प्रदान नहीं करती है। यही वजह है कि दुनियाभर के कई देशों ने इस वैक्सीन का प्रयोग बंद कर दिया है। 

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