प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जिम्मेदार संगठनों का मनोबल बढ़ाया

भ्रष्टाचार को यदि भारत के संदर्भ में देखा जाए तो यहां इसका सबसे अधिक मतलब रिश्वत से निकाला जाता है और कहा जाता है कि सरकारी विभाग में कोई काम कराना हो तो सबसे पहले रिश्वत देना होगा। यही कारण है कि देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा सदैव चर्चा में रहता है और होना भी चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसे नियंत्रित किए बिना विकास के संदर्भ में अनुकूल परिणाम प्राप्त करना कठिन है। मालूम हो कि भ्रष्टाचार केवल उच्च श्रेणी में ही नहीं है, बल्कि निचले स्तर के सरकारी कामकाज में भी बुरी तरह पैठ बनाए हुए है। इसका सीधा दुष्प्रभाव जन-सेवाओं की अनियमितता पर पड़ता है। इससे प्रभावित होने वालों में ज्यादातर गरीब और वंचित तबके के ही लोग होते हैं। राशन, पेंशन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए इन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ती है।

वैसे इस संबंध में अभी एक अच्छी बात यह है कि देश के वर्तमान प्रधानमंत्री इन सभी तथ्यों से पूरी तरह अवगत हैं। संभवत: इसी कारण पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विज्ञान भवन में केंद्रीय सतर्कता आयोग के ‘सतर्कता जागरूकता सप्ताह’ के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान पीएम मोदी ने सीवीसी के नए ‘शिकायत प्रबंधन प्रणाली’ पोर्टल का शुभारंभ किया। साथ ही कार्यक्रम में संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने वाले सीवीसी अर्थात केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी एजेंसियों को डरने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार उन्होंने देश के भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियों का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि निहित स्वार्थों वाले लोग भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने वाली संस्थाओं एवं एजेंसियों के काम में बाधा डालने और उन्हें बदनाम करने की कोशिश करते रहेंगे, इससे भ्रष्ट तत्वों के दुस्साहस का पता चलता है।

इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अभी देश में वैसी स्थितियां बनी हुई हैं, जिसमें भ्रष्टाचारी सरकारी एजेंसियों को बदनाम करने में सक्षम हो जाते हैं। इन स्थितियों को प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि आदर्श स्थिति यही है कि भ्रष्ट तत्व भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों से भयभीत दिखें। इस प्रकार प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्य करने वाली एजेंसियों को अपना पूरा समर्थन देने और खुलकर काम करने का संदेश दिया। लेकिन इसी के साथ ही इस बात पर भी गौर करना होगा कि किसी भी हालत में सरकारी एजेंसियां अनियंत्रित न होने पाएं और वे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नाम पर लोगों का उत्पीड़न न करने लगें। क्योंकि शक्ति सदैव सीमा का उल्लंघन करती है और शक्ति भ्रष्ट करती है और परम शक्ति परम भ्रष्ट। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि जब भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों को शक्ति दी जाए तो उसके नियंत्रण हेतु उपाय भी निर्धारित होने चाहिए। अन्यथा जनता-प्रशासन संबंध सुधरने की बजाय और बिगड़ जाने की आशंका होगी।

राजनीतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश

वर्तमान में देश की दो सबसे बड़ी समस्या है- भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद या परिवारवाद। एक तरफ वे लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है, तो दूसरी तरफ वे लोग हैं जिनके पास अवैध रूप से कमाया हुआ धन रखने के लिए जगह नहीं है। ये दोनों ही स्थितियां अच्छी नहीं है। इसलिए देश को भ्रष्टाचार के विरुद्ध पूरी ताकत से लड़ना होगा। विदित हो कि राजनीतिक दल चुनावों के दौरान बेतहाशा खर्च करते हैं। चुनाव प्रचार के लिए हेलीकाप्टर, कारों के काफिलों का प्रयोग तथा ड्रग्स और शराब का वितरण करते है। लगभग सभी दल विभिन्न तरीकों से दान के रूप में धनराशि भी लेते हैं। इस राशि का अधिकांश भाग काले धन के रूप में लिया जाता है। आडिट के दौरान राजनीतिक दलों के कागजातों में इसका कोई लेखा-जोखा नहीं होता। ऐसे मामले भी अक्सर सामने आते हैं जिनमें यह आरोप लगाया जाता है कि रिश्वत न मिलने के कारण सरकारी विभागों में अलग-अलग स्तर पर फाइलों को रोक लिया जाता है। राजनीति में यह भ्रष्टाचार नौकरशाही या सरकारी कर्मचारियों के मिले बिना होना मुश्किल है। अतः राजनीति और प्रशासनिक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के विष वेल को नियंत्रित किए बिना विकास अधूरा ही रहेगा।

भ्रष्टाचारियों का बहिष्कार

अक्सर देखा जाता है कि जेल की सजा होने तथा भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद कई बार भ्रष्टाचारियों का गौरव गान किया जाता है। वास्तव में यह स्थिति भारतीय समाज के लिए चिंताजनक है। आज भी समाज में ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो दोषी पाए जा चुके भ्रष्टाचारियों के पक्ष में भांति-भांति के तर्क देते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। अतः ऐसे लोगों को समाज द्वारा अपने कर्तव्य का बोध कराया जाना बेहद आवश्यक हो जाता है। प्रत्येक नागरिक को ध्यान रखना चाहिए कि वह जब भी मतदान करने जाए तो अपने जन प्रतिनिधि के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करे। अक्सर देखा गया है कि मतदान के दौरान व्यक्ति लालच में अपने मतदान का दुरुपयोग कर जाता है। परिणामस्वरूप समाज में भ्रष्टाचारी और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शासन में आ जाते हैं और जनता का शोषण करते हैं। अतः मतदान के दौरान सतर्कता भी भ्रष्टाचार नियंत्रण में सहायक साबित होगी।

भ्रष्टाचार में मिले दंड का हो प्रचार

कुछ समय पहले सरकार ने भ्रष्ट नौकरशाहों पर सख्त रवैया अपनाते हुए उन्हें समय पूर्व सेवानिवृत्त कर दिया था। वास्तव में यह सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए भ्रष्टाचार को कम करने की ओर इंगित करता है। इसी तरह राजनेताओं पर भी भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियों का शिकंजा कसना यह दिखाता है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी हो या नेता या व्यापारी सभी पर कार्रवाई होगी। भ्रष्टाचार में दंडित नेताओं के नाम तो राजनीतिक कारणों से खूब उछाला जाता है, लेकिन प्रतिवर्ष जो हजारों सरकारी अधिकारी दंडित होते हैं, उनके कारनामों से कम ही लोग अवगत हो पाते हैं। लोगों में इस बात के प्रति जागरूकता की कमी है कि भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए सरकारी अधिकारी दंडित भी होते हैं। वैसे तेजी से बढ़ता ई-गवर्नेंस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का माध्यम बनता दिख रहा है। फिलहाल इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि तकनीक के उपयोग ने व्यवस्था को पारदर्शी बनाने का काम किया है। लेकिन अभी इस क्षेत्र में और काम करने की आवश्यकता है। चुनावी बांड की व्यवस्था के बाद राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया पारदर्शी अभी भी नहीं बन सकी है। अतः सरकार को चतुर्दिक प्रयास करना होगा, तभी आधुनिक नवाचारी भ्रष्टाचार पर अंकुश संभव होगा।

भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों को सक्षम बनाने के साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए लोगों को समय रहते सही सजा मिले। आम तौर पर अभी ऐसा नहीं होता। ऐसे में लोगों के मामले लंबे समय तक खिंचते रहते हैं। इससे समाज को कोई सही संदेश नहीं जाता। अतः सरकार को सबसे पहले मामलों के समय रहते निपटाने पर नीति निर्माण और प्रचालन की व्यवस्था करनी होगी। तभी वास्तविकता में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। इसी तरह यह भी नहीं कहा जा सकता कि निचले स्तर के भ्रष्टाचार में कोई बड़ी कमी आई है। सच यह है कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार बेरोक-टोक जारी है। जैसे निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, वैसे ही रोजमर्रा के उस भ्रष्टाचार पर भी, जिससे आम लोग दो-चार होते हैं। भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि उन कारणों का निवारण किया जाए, जिनके चलते वह पनपता और फलता-फूलता है।

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