राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव आज, आंकड़ों की जाल में उलझा जीत का सियासी गणित

राज्यसभा के उपसभापति के लिए आज चुनाव होगा। राजनीति में कभी कुछ तय नहीं होता। राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव पर यह कहावत सटीक बैठ रही है। अब हालत यह है कि विपक्ष और खासकर कांग्रेस अपने ही बिछाए जाल में उलझ गई है। अंतत: कांग्रेस को राज्यसभा में उपसभापति के लिए अपने वरिष्ठ नेता बी.के. हरिप्रसाद को ही चुनाव में उतारकर नामांकन कराना पड़ा।

हरिप्रसाद के मुकाबले में जद(यू) के सांसद हरिबंश नारायण सिंह मैदान में हैं। हरिबंश नारायण सिंह ठीक दो दिन पहले लोक लेखा समिति का चुनाव हार चुके हैं और इस बार मौजूदा परिस्थिति में उनका उपसभापति बनना करीब-करीब तय माना जा रहा है।

उल्टा पड़ा दांव

विपक्ष राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव चाहता था और सत्ता पक्ष इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रहा था। विपक्षी दलों को उम्मीद थी कि सभी दल मिलकर सत्ता पक्ष को आईना दिखा देंगे। उनके पास बहुमत है और एनडीए की अपना उपसभापति बनाने की मंशा धरी की धरी रह जाएगी। लेकिन अब विपक्ष का ही गणित गड़बड़ा रहा है।

पहले विपक्ष ने उपसभापति पद के लिए डीएमके के तिरुचि शिवा और एनसीपी की वंदना चह्वाण के नाम पर चर्चा शुरू की। 50 सदस्यों वाली कांग्रेस ने विपक्षी एकता का संदेश देने के लिए अपना प्रत्याशी उतारने से परहेज किया। वंदना का नाम करीब-करीब फाइनल भी हो गया, लेकिन जनता दल(के) प्रमुख और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने विपक्ष की योजना पर पानी फेर दिया। बताते हैं राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने खुद नवीन पटनायक से बात की, लेकिन उधर से कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला।

राज्यसभा में जनता दल(बीजू) के 9 सदस्य हैं। नवीन पटनायक के जवाब के बाद विपक्ष का गणित गड़बड़ाने लगा और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने जोखिम उठाने से परहेज करते हुए वंदना शिवा के नाम को वापस ले लिया। कांग्रेस ने अन्य सहयोगियों से बात की और किसी ने भी उपसभापति के चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी देने का जोखिम नहीं उठाया। हालांकि सभी ने विपक्ष के उम्मीदवार को समर्थन देने की बात की। इसके बाद मंगलवार को देर रात बीके हरिप्रसाद को ही उम्मीदवार बनाने पर निर्णय लिया जा सका।

क्या है गणित

244 सदस्यीय राज्यसभा में 123 मत पाने वाले प्रत्याशी के सिर पर जीत का सेहरा बंधना तय है। सदस्यों के मतदान में हिस्सा न लेने से यह संख्या घट और बढ़ सकती है। फिलवक्त भाजपा के 73, जद(यू) के 6, जनता दल (बीजू) 9, अकालीदल 3,शिवसेना 3, बोडो पीपुल्स फ्रंट, नगा पीपुल्स फ्रंट, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और आरपीआई के 1-1 सदस्य हैं। तीन अन्य और तीन मनोनीत एनडीए के उम्मीदवार को वोट दे सकते हैं। एआईएडीएमके के 13 सदस्य, टीआरएस के 6 भी एनडीए के साथ हैं। इस गणित के आधार पर एनडीए का पलड़ा भारी है। हालांकि शिवसेना और अकाली नाराजगी दिखा रहे हैं, लेकिन सूत्र बताते हैं कि ये दल एनडीके के प्रत्याशी को ही अपना समर्थन देंगे।

विपक्ष के खेमें में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के 50 सदस्य हैं। तृणमूल कांग्रेस 13, समाजवादी पार्टी 13, टीडीपी के 6, राजद 5, सीपीएम 5, डीएमके 4, बसपा 4, एनसीपी 4,आम आदमी पार्टी 3, सीपीआई2, इंडियन नेशनल लोकदल 1, जद(एस)1, केरल कांग्रेस 1, मुस्लिम लीग 1, और पीडीपी के दो सदस्य हैं। दो अन्य और एक मनोनीत सदस्य कांग्रेस के प्रत्याशी को वोट दे सकता है। पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने पहले ही मतदान में हिस्सा न लेने की घोषणा कर दी है। हालांकि कांग्रेस के नेताओं ने महबूबा मुफ्ती से समर्थन लेने के लिए संपर्क साधा है।

राजनीति में होता है चमत्कार
चमत्कार राजनीति में ही होता है। यहां कब क्या हो जाए और आखिरी क्षण बाजी किसके हाथ चली जाए कहा नहीं जा सकता। उपसभापति चुनाव के लिए उत्साह के साथ सत्ता पक्ष पर दबाव बना रहा विपक्ष चुनाव की घोषणा होने के एक दिन बाद ही झटका खा गया। उसे सामने दिखाई दे रही जीत थोड़ा मुश्किल दिखाई देने लगी है।

राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि विपक्ष का साझा उम्मीदवार मैदान में है। विपक्षी दलों का हमारे पास समर्थन है। रहा सवाल चुनाव  का तो इसमें हार या जीत होती है। जो भी निर्णय होगा वह 9 अगस्त को पता चल जाएगा। वहीं कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि राजनीति ट्वंटी-ट्वंटी मैच की तरह है। पासा पलटते देर नहीं लगती।

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