राजनीति के माहिर खिलाड़ी हरीश रावत का सियासी ‘कद’ बढ़ा और ‘भूमिका’ भी
देहरादून। मंगलवार का दिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिये दोहरी सौगात लेकर आया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उम्रदराज होने के बावजूद हरीश रावत को अपनी टीम में बतौर राष्ट्रीय महामंत्री शामिल कर लिया। इतना ही नहीं उन्हें असम का प्रदेश प्रभारी भी बनाया गया है।
हालांकि चर्चा यह भी है कि केंद्र में हरीश को महामंत्री जैसी अहम जिम्मेदारी देकर राज्य की सियासत से दूर रखा जाना है। राहुल कतई नहीं चाहते कि हरीश का उत्तराखण्ड की सियासत में सीधा हस्तक्षेप रहे। उत्तराखण्ड में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बावजूद हरीश रावत राजनीति में सक्रिय रहे।
उन्होंने त्रिवेन्द्र सरकार पर सियासी वार करने का कोई मौका नहीं गंवाया। इधर, प्रीतम सिंह को प्रदेश कांग्रेस की कमान मिलने के बाद हरीश की संगठन में सक्रियता घटती चली गई लेकिन उन्होंने पार्टी संगठन के समानान्तर अपने समर्थकों के साथ तमाम कार्यक्रम आयोजित कर खुद को सुर्खियों में बनाए रखा।
उनकी अति सक्रियता से प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश अहसज महसूस कर रहे थे। गाहे-बगाहे इन दोनों नेताओं ने हरीश का न सिर्फ खुलकर विरोध किया बल्कि उन्हें लेकर हाईकमान के सामने भी आपत्ति जताई। राहुल ने भी कई बार कांग्रेस के सूबाई नेताओं को गुटबाजी दूर करने की नसीहत दी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।
ऐसे में हाल ही में राहुल ने हरीश, किशोर उपाध्याय, प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश को दिल्ली बुलाकर प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह से इनके बीच की गुटबाजी दूर करने को कहा। साथ ही उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री अशोक गहलौत को भी इस गुटबाजी को दूर करने की विशेष जिम्मेदारी सौंपी।
इत्तेफाक यह रहा कि गहलौत हरीश के पुराने मित्र व शुभचिंतक हैं। दोनों ने ही युवा कांग्रेस में साथ काम किया है। गहलौत की राय पर हरीश के अनुभव और संगठनात्मक कौशल को पूरी तवज्जो देते हुये उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री का पद सौंपा गया। जबकि उत्तराखण्ड की सियासत से उन्हें करने के लिये असम का इंजार्च भी बनाया गया।
कुल मिलाकर इस दोहरी सौगात से हरीश का राजनैतिक कद और भूमिका देनों बढ़ी है। यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस मिशन-2019 के लिये हरीश को ‘असरदार’ रॉल में देखना चाहती है।