पाकिस्तान: ‘हर बार चैं पैं चैं पैं होती है और लोकतंत्र ढ़र्रे पर लौट आता है’

जिसे आप भारत में राज्यसभा कहते हैं उसे हम पाकिस्तान में सीनेट कहते हैं। सीनेट के 104 सदस्य छह साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। हर तीन साल बाद छह साल पूरे करने वाले सीनेट के आधे सदस्यों की जगह नए सदस्य आ जाते हैं।

सीनेट के सदस्य को राष्ट्रीय संसद और चारों प्रदेशों यानी पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान की विधानसभाएं चुनती हैं। राष्ट्रीय संसद में तो हर प्रदेश की सीटें आबादी के हिसाब से कम ज्यादा होती हैं मगर सीनेट में हर प्रदेश की बराबर सीटें होती हैं।

यानी सीनेट पाकिस्तानी संघ का वो तराजू है जिसके पलड़े बराबर के हैं। सीनेट का काम ये है कि वो कोई ऐसा कानून न बनने दे जो किसी खास गुट या प्रांत के हित में हो इसलिए ही राष्ट्रीय संसद में पारित होने वाले किसी भी कानून को सीनेट से मंजूरी अनिवार्य है।

चुनांचे सीनेट में बुद्धिजीवी लोगों को होना चाहिए। मगर पिछले कई सालों से राजनीतिक लोगों ने सीनेट को ऐसी सभा बना दिया है जिसमें भेजने के लिए काबिलियत कम, जी हुजूरी, भाई भतीजावाद, पैसा, सिफारिश और ताकत को ज्यादा देखा जाता है।

जैसे ही सीनेट चुनाव करीब आते हैं मंडी खुल जाती है, बोली लगनी शुरू हो जाती है, ताकत कम है तो दूसरी पार्टी के सदस्यों को खरीदने की कोशिश होती है। एस्टेबलिशमेंट किसी खास गुट को ऊंचा या नीचा दिखाना चाहती हो तो भी प्रदेश विधानसभाओं के सदस्यों को कठपुतली की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश से नहीं चूकती।

और फिर ऐसे ऐसे चमत्कार होते हैं जैसे बलूचिस्तान में कहने को नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग (एन) सबसे बड़ी पार्टी है मगर सीनेट इलेक्शन से पहले उसमें बगावत हो गई और सारे सीनेट सदस्य बागियों के धड़े से चुन लिए गए।

खैबर पख्तूनख्वा में पीपुल्ज पार्टी की छह सीटें है मगर उसने इमरान खान की पार्टी के बीस से अधिक सदस्यों को नोट दिखाकर अपने हित में वोट डलवा लिए और दो सीनेट सीटें ले उड़ी। इमरान खान मुंह देखते रह गए।
‘चैं पैं चैं पैं’

इमरान खान की पार्टी के ही एक सदस्य ने पंजाब विधानसभा में नवाज शरीफ की पार्टी के चौदह सदस्यों से वोट पकड़ लिए, हालांकि नवाज शरीफ और इमरान खान कट्टर विरोधी हैं। सिंध प्रांत में भी यही हुआ और जिसका जोर और पैसा चला, उसने सीटें उचक लीं। अब जो इस रास्ते से सीनेट में आएगा वो पहले अपना मालपानी खर्चा पूरा करेगा या देश या अपने प्रांत की बेहतरी के बारे में सोचेगा।

ये लोकतंत्र है कि मायातंत्र। हर बार चैं पैं चैं पैं होती है और फिर जीवन अपने टेढ़े ढर्रे पर उस वक्त तक चलता रहता है जब तक अगली चुनाव मंडी नहीं लग जाती।

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