कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की शुरुआत इलाहाबाद से होनी चाहिए: अटल

इलाहाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात लगभग अपनी हर चुनावी सभा में करते हैं, लेकिन कांग्रेस मुक्त भारत का नारा कोई नया नहीं है। तीन दशक पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कांग्रेस मुक्त भारत का बिगुल फूंक चुके हैं। वह भी इलाहाबाद की ऐतिहासिक धरती से। कांग्रेस की नीतियों का विरोध करते हुए उसे सत्ता से बाहर करने का आह्वान किया, जो धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया। अटल बिहारी वाजपेयी सबसे पहले 1988 में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी वीपी सिंह के समर्थन में चुनावी जनसभा संबोधित करने आए थे।कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की शुरुआत इलाहाबाद से होनी चाहिए: अटल

वीपी सिंह के समर्थन में सभा

अमिताभ बच्चन के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई इलाहाबाद लोकसभा सीट पर वीपी सिंह कांग्रेस से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ रहे थे, जबकि कांग्रेस ने सुनील शास्त्री को प्रत्याशी बनाया था। वीपी सिंह के समर्थन में पीडी टंडन पार्क सिविल लाइंस में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए अटल ने कहा था कि कांग्रेस से मुक्ति ही देश की तरक्की का आधार है। कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने करने की शुरुआत इलाहाबाद की धरती से होनी चाहिए। यहां जो बदलाव होगा उसका देशव्यापी असर नजर आएगा…।

यह अटल की सभा का असर रहा कि वीपी सिंह चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल करने में सफल रहे। इसके बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने पीडी टंडन पार्क में चुनावी जनसभा को संबोधित किया। इसके बाद 1996 में वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी के समर्थन में सेवा समिति विद्या मंदिर इंटर कालेज में चुनावी जनसभा को संबोधित किया। इसके अलावा भी उन्होंने कई चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया।

वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्रदेव पांडेय रुंधे गले से अटल से जुड़ी यादें साझा करते हैं। बताते हैं कि 2004 में सेवा समिति विद्या मंदिर इंटर कालेज में वह प्रधानमंत्री के रूप में चुनावी जनसभा को संबोधित करने आए थे। मैं जिलाध्यक्ष होने के नाते सभा की अध्यक्षता कर रहा था। मेरे बाएं ओर अटल बिहारी व दाएं ओर डॉ. मुरली मनोहर जोशी बैठे थे। अध्यक्ष के रूप में मेरा नाम देखकर बोले, राजनीति के अलावा और क्या करते हो पांडेय जी? मैंने जवाब दिया, सर वकालत करता हूं। बोले, ठीक से वकालत करना क्योंकि राजनीति में पैसा मिलता नहीं, सिर्फ समाजसेवा करनी है। इसके बाद ठहाका लगाकर हंसने लगे। 

बहुत सुनी है अमरूद की ख्याति

अटल बिहारी वाजपेयी को इलाहाबादी अमरूद भी काफी पसंद था। वह 1999 में इलाहाबाद चुनावी सभा संबोधित करने आए थे। सभा संबोधित करने से पहले सर्किट हाउस में कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ थोड़ी देर चाय पीते हुए चर्चा कर रहे थे। चर्चा के दौरान संगम, आनंद भवन, खुसरोबाग की खासियत का सबने बखान किया, लेकिन इलाहाबादी अमरूद के बारे में किसी ने नहीं बताया। नरेंद्रदेव पांडेय बताते हैं कि अटल बिहारी ने कहा कि अरे यहां के अमरूद के बारे में नहीं बताया। मैंने तो उसकी खूब ख्याति सुनी है। दिल्ली में अमरूद मंगाने से पहले बोल देता हूं कि वह इलाहाबादी ही होना चाहिए। यह सुन लोग ठहाका लगाने लगे। 

वाजपेयी स्वादिष्ट व्यंजन के बेहद शौकीन

बनारसी कचौड़ी-जलेबी हो या फिर ठंडाई अथवा मूंग की दाल या खिचड़ी, ये सब अटल जी को बहुत भाते थे। उनके साथ वर्षों काम करने वाले सुभाष गुप्ता बताते हैं कि उनकी सादगी हर कार्यकर्ता को संजीवनी देती थी। जब आते सामान्य कार्यकर्ता के यहां ही भोजन करते। शिक्षक पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और फिर प्रधानमंत्री बने। समय के साथ व्यस्तता बढ़ती गई लेकिन, जुबां से व्यंजनों का स्वाद नहीं उतरा। काशी में उनकी अंतिम सभा 2005 में कचहरी पर हुई है।

इससे पूर्व कई बार उनका काशी आगमन हुआ। वे जब बनारस आए ठंडाई का स्वाद लेना नहीं भूले। सादा भोजन को तवज्जो देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी मूंग की दाल व खिचड़ी बड़े चाव से खाते थे। अटल जी के पुराने साथी भाजपा एमएलसी अशोक धवन बताते हैं कि काशी प्रवास के दौरान उनका मेरे आवास पर कुल पांच बार ठहरना हुआ। घर का ही भोजन करते और रसोईघर में भी सहजता से पहुंच जाते। उन्हें बनारसी ठंडाई बहुत पसंद थी इसलिए उनके सेवा-सत्कार में ठंडाई को जरूर स्थान दिया जाता। जाते-जाते बच्चों से मिलना कभी नहीं भूलते। 

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